देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज किए जाने के उपराष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका कांग्रेस ने मंगलवार को वापस ले ली. कांग्रेस के याचिकाकर्ता सांसदों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपे जाने पर सवाल उठाए.
याचिका में कहा गया था कि विपक्ष के महाभियोग नोटिस को खारिज करने का उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का फैसला 'गैरकानूनी और मनमाना' था, तथा बिना कोई जांच करवाए 'घमंडी, रहस्यमयी और अप्रत्याशित तरीके से' लिया गया.
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चुनौती देने वाली कांग्रेस की यह याचिका सुनवाई के लिए जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमन, जस्टिस अरुण मिश्रा तथा जस्टिस एके गोयल को सौंपी गई थी. न्यायमूर्ति बोबडे तथा न्यायमूर्ति रमन देश के अगले प्रधान न्यायाधीश होने की दौड़ में हैं. पीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायमूर्ति सीकरी सीनियॉरिटी के लिहाज़ से छठे स्थान पर हैं.
पिछले माह, राज्यसभा के 60 से ज़्यादा सांसदों के दस्तखतों वाला महाभियोग नोटिस दिया गया था, जिसके बारे में तीन ही दिन बाद उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा था, 'यह स्वीकार किए जाने योग्य नहीं' है.
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मंगलवार को याचिकाकर्ता कांग्रेसी सांसदों की ओर से कपिल सिब्बल ने पांच जजों की संविधान पीठ के गठन पर सवाल उठाते हुए कहा कि याचिका को अभी नंबर नहीं मिला, इसे एडमिट नहीं किया गया है, लेकिन रातोंरात यह पीठ किसने बनाई. यह जानना हमारे लिए ज़रूरी है कि इस पीठ का गठन किसने किया.
कपिल सिब्बल का कहना है कि चीफ जस्टिस इस मामले में प्रशासनिक या न्यायिक स्तर पर कोई आदेश जारी नहीं कर सकते, और संविधान पीठ को कोई भी मामला तभी भेजा जाता है, जब कानून का कोई सवाल उठा हो. कोई भी मामला सिर्फ न्यायिक आदेश के ज़रिये ही संविधान पीठ को भेजा जा सकता है, प्रशासनिक आदेश के ज़रिये नहीं.
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कपिल सिब्बल ने मांग की कि उन्हें वह आदेश दिया जाए कि किसने इस याचिका को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजा, और आदेश का अध्ययन करने के बाद वह इसे चुनौती देने पर विचार करेंगे.
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