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This Article is From Apr 29, 2018

गर्म होती धरती को बचाने के लिये कबीलाई संस्कृति से बातचीत का सहारा

तलानोवा फिजी और दूसरे पैसेफिक देशों की कबीलाई संस्कृति से निकला शब्द है जिसे पिछले महासम्मेलन के दौरान उछाला गया.

गर्म होती धरती को बचाने के लिये कबीलाई संस्कृति से बातचीत का सहारा
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
नई दिल्‍ली: दिसंबर की कड़कड़ाती सर्दी में पोलैंड में जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन होगा जिसमें दुनिया के करीब 200 देश हिस्सा लेते हैं. संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत होने वाले इस सम्मेलन से पहले जर्मनी के बॉन शहर में एक महत्वपूर्ण वार्ता का दूसरा दौर सोमवार से शुरू हो रहा है. इसका नाम है तलानोवा डायलॉग. पिछला सालाना सम्मेलन भी बॉन में हुआ था लेकिन इसकी अध्यक्षता फिजी ने की थी.

तो आखिर ये तलानोवा डायलॉग या तलानोवा वार्ता क्या है. तलानोवा फिजी और दूसरे पैसेफिक देशों की कबीलाई संस्कृति से निकला शब्द है जिसे पिछले महासम्मेलन के दौरान उछाला गया. तलानोवा वार्ता के तहत तमाम कबीलों में शांतिपूर्ण तरीके से एक दूसरे की बातचीत सुनी जाती है और बिना किसी उत्तेजित माहौल के जटिल मुद्दे सुलझाए जाते हैं. जलवायु परिवर्तन वार्ता में अमीर, गरीब और विकासशील देशों के बीच कई ऐसे मुद्दे हैं जहां तीखी नोंकझोंक और तनातनी हो जाती है. इसलिये इस साल की शुरुआत से ही तलानोवा वार्ता के दौर शुरू हो गये. सोमवार को इसका दूसरा दौर शुरू हो रहा है. जानकारों को उम्मीद है कि ये दिसंबर में होने वाली महत्वपूर्ण वार्ता की राह आसान करेगा.

असल में दिसंबर में पोलैंड की महावार्ता से पहले सितंबर में IPCC की महत्वपूर्ण रिपोर्ट भी आनी है जिससे गर्म होती धरती के बारे में अधिक स्पष्ट अंदाजा लगेगा. 2015 की महत्वपूर्ण पेरिस वार्ता में धरती के तापमान में बढ़त 1.5 डिग्री तक सीमित करने की बात कही गई. IPCC की रिपोर्ट बतायेगी कि धरती को बचाने की जंग में हम किस हाल में खड़े हैं.

दिसंबर की पोलैंड वार्ता में
1) 2015 में हुई पेरिस डील को लागू करने के लिए नियमावली बनेगी.
2) अमीर देश बताएंगे कि उन्होंने 2020 से पहले कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए क्या कदम उठाये हैं.
3) जलवायु परिवर्तन पर ग्रीन फंड को लेकर बात होगी जिसमें विकसित देशों को गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन के असर से लड़ने के लिए पैसा और टेक्नोलॉजी देनी है.

ऐसे हाल में बॉन में शुरू हो रही तलानोवा का महत्व है.

इसमें तीन मुद्दों पर विचार होगा
1) अभी हम कहां हैं? यानी क्या कार्बन उत्सर्जन घटाने के लक्ष्य पेरिस वार्ता के अनुसार हैं या नहीं
2) हम कहां जाना चाहते हैं? यानी हम धरती की तापमान वृद्धि किस स्तर पर सीमित करना चाहते हैं.
3) हम लक्ष्य कैसे हासिल करेंगे? यानी क्या कदम उठाये जाएं.

VIDEO: जलवायु परिवर्तन की जंग : पेरिस समझौते को लागू करने के लिए बनेंगे नियम

ये बात अहम है कि दुनिया में पिछले डेढ़ सौ साल में सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाला और ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार अमेरिका पेरिस डील से बाहर निकल चुका है. हालांकि दूसरे विकसित और विकासशील देश कह रहे हैं कि वह धरती को बचाने के लिए कटिबद्ध हैं.

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