CAA Protest: असम में नागरिकता कानून के विरोध में सड़कों पर महिलाएं, कहा- हमें शांति चाहिए, बांग्लादेशी नहीं

एक प्रदर्शनकारी महिला ने कहा, 'हमारा ये प्रदर्शन तब तक नहीं थमेगा जब तक इस कानून को वापस नहीं लिया जाएगा. हम शांति चाहते हैं, बांग्लादेशी प्रवासी नहीं. शांति तभी लौटेगी जब सरकार हमारी बात सुनेगी.'

CAA Protest: असम में नागरिकता कानून के विरोध में सड़कों पर महिलाएं, कहा- हमें शांति चाहिए, बांग्लादेशी नहीं

असम में महिलाओं ने नागरिकता कानून के विरोध में शांतिपूर्वक मार्च निकाला.

खास बातें

  • असम में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध
  • प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने सरकार से की मांग
  • 'हमें शांति चाहिए, बांग्लादेशी प्रवासी नहीं'
गुवाहाटी:

नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) का पूरे देश में विरोध हो रहा है. नागरिकता संशोधन बिल संसद में पेश किए जाने के बाद से ही पूर्वोत्तर में इसे वापस लेने की मांग की जा रही थी. बिल दोनों सदनों में पेश हुआ, पारित हुआ और कानून बन गया. जिसके बाद इस नए संशोधित कानून का विरोध बढ़ने लगा. पूर्वोत्तर राज्यों में हुए हिंसक प्रदर्शन में कई लोगों की मौत हो चुकी है. शनिवार को हजारों की संख्या में महिलाओं ने नागरिकता कानून के खिलाफ मार्च निकाला. महिलाओं ने कहा कि वह राज्य में शांति चाहती हैं, बांग्लादेशी प्रवासी नहीं.

प्रदर्शन के दौरान महिलाएं पारंपरिक परिधानों में नजर आईं. महिलाओं ने नारेबाजी करते हुए सरकार को याद दिलाया कि वह उन महान महिलाओं की वंशज हैं, जिन्होंने मुगलों से लोहा लिया था. प्रदर्शन में शामिल रूबी दत्ता बरुआ ने कहा, 'हम लोग देश की महान महिलाओं जैसे- मुला गबरू, कनकलता और बीर लचित बोरफुकोन की वंशज हैं. असम का अपना महान इतिहास है. असम ने हमेशा अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है और इस बार भी हम लोग राज्य के साथ अन्याय नहीं कर सकते. हम लोग नागरिकता कानून को लागू करने नहीं दे सकते. ये इस कानून को असम की महिलाओं की ओर से साफ न है.'

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एक अन्य महिला ने कहा, 'ये कानून हमारे राज्य को नुकसान पहुंचाएगा, ये हमारी भाषा, संस्कृति और सौहार्द को नुकसान पहुंचाएगा. हम इसके खिलाफ काफी लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है.' एक अन्य प्रदर्शनकारी महिला ने कहा, 'हमारा ये प्रदर्शन तब तक नहीं थमेगा जब तक इस कानून को वापस नहीं लिया जाएगा. हम शांति चाहते हैं, बांग्लादेशी प्रवासी नहीं. शांति तभी लौटेगी जब सरकार हमारी बात सुनेगी.'

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गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन बिल के संसद में पेश किए जाने के बाद से ही पूर्वोत्तर सहित पूरे देश में इसे वापस लिए जाने की मांग ने जोर पकड़ा था. लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने और राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद यह कानून बन गया. इस संशोधित कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. इसमें 6 समुदाय- हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसियों को रखा गया है. मुस्लिमों को इससे बाहर रखे जाने का विरोध हो रहा है. केंद्र सरकार का तर्क है कि इस कानून को इन तीन देशों में धार्मिक आधार पर सताए जा रहे अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने के लिए संशोधित किया गया है और इन तीनों ही देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं.

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