यह ख़बर 01 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

गोपाल सुब्रह्मण्यम के मामले में केंद्र सरकार के रुख से प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा नाखुश

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद पर नियुक्ति विवाद ने आज उस समय नया मोड़ ले लिया, जब प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढ़ा ने साफ किया कि कार्यपालिका ने 'एकतरफा' कार्यवाही करके उनका नाम अलग किया था जो 'सही नहीं' था।

प्रधान न्यायाधीश ने एक कार्यक्रम में नई सरकार के सत्ता में आने के एक महीने के भीतर हुए इस विवाद पर अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा, 'पहली बात तो मैंने गोपाल सुब्रमण्यम की फाइल कार्यपालिका द्वारा एकतरफा तरीके से अलग करने पर आपत्ति की थी। यह सही नहीं था।'

जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता उनके लिए सबसे ज्यादा अहम है। शीर्ष अदालत के न्यायाधीश डा. बी एस चौहान के रिटायर होने के मौके पर आयोजित समारोह में उन्होंने वकीलों से कहा, 'यह मत समझिए कि न्यायपालिका की आजादी के साथ समझौता किया गया है।'

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'मैं भारत की 1.2 अरब की आबादी से वायदा करता हूं कि न्यायपालिका की आजादी से समझौता नहीं होगा। अगर न्यायपालिका की आजादी से समझौता हुआ, तो मैं इस पद को त्यागने वाला पहला व्यक्ति होउंगा।'

जस्टिस लोढ़ा ने अपने विदेश प्रवास के दौरान ही सुब्रमण्यम द्वारा अपनी शिकायत सार्वजनिक करने पर भी नाखुशी जाहिर की। जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि 28 जून को लौटने पर उन्होंने सुब्रमण्यम से बैठक में उनसे फिर से विचार करने (जज के पद पर नियुक्ति की सहमति वापस लेने के उनके निर्णय) के लिए कहा। उन्होंने अगले दिन छह पंक्ति के पत्र में अपना निर्णय बताते हुए कहा कि वह इससे पीछे नहीं हट सकते।

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा कि कुछ दिन बाद प्रधान न्यायाधीश ने एक बार फिर उनसे बात की तो सुब्रमण्यम ने अपना फैसला दोहराया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, '29 जून को जब उन्होंने पत्र लिखकर अपनी स्थिति दोहराई तो मेरे पास प्रस्ताव (न्यायाधीश के रूप में सुब्रमण्यम की नियुक्ति की सिफारिश) वापस लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था।'

न्यायाधीशों की समिति द्वारा भेजे गए तीन नामों, कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा, उड़ीसा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल और प्रसिद्ध वकील रोहिन्टन नरिमन को सरकार ने स्वीकार कर लिया था।

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सुब्रमण्यम द्वारा अपनी सहमति वापस लेने का निर्णय सार्वजनिक किए जाने के बाद सरकार ने कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की, लेकिन कानून मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि सरकार को उनकी क्षमताओं पर कोई संदेह नहीं रहा है जबकि पद के लिये उनकी ‘उपयुक्तता’ को लेकर कुछ मसले थे।