हापुड़:
हापुड़ के धौलाना में रहने वाली संतोष देवी के घर 10 दिसंबर को बेटी की शादी है. वो 10-12 दिन से धौलाना के जिला सहकारी बैंक के चक्कर लगा रही है. अब तक सिर्फ 4000 रुपये ही निकाल पाई है. संतोष देवी ने एनडीटीवी को बताया, 'शादी के लिए कम से कम 30,000 रुपये चाहिए. कैश की कमी की वजह से मैं शादी की तैयारी नहीं कर पा रही हूं. पति बीमार हैं, मेरी मदद करने में असमर्थ हैं.'
बेटी की शादी अच्छे से करने के लिए संतोष ने अपनी साढ़े चार बीघा जमीन बेचने की भी कोशिश की, लेकिन उसमें भी सफलता नहीं मिल पाई. कहती हैं कि खरीददार नहीं हैं.
उनके साथ बैठी शकुंतला को 14,000 रुपये चाहिए. उन्हें अपनी आंख का ऑपरेशन कराना है. डॉक्टर ने बुधवार की तारीख दी है. लाइन में जब तक नंबर आया, कैश खत्म हो गया. कहती हैं, अब पता नहीं बुधवार को ऑपरेशन हो पाएगा या नहीं.
बैंक मैनेजर अनिल कुमार बताते हैं कि सरकार ने नाबार्ड के ज़रिये सहकारी बैंकों तक 21,000 करोड़ रुपये पहुंचाने का ऐलान तो कर दिया लेकिन अब तक पैसा नहीं आया है. कैश की कमी की वजह से हर रोज़ सिर्फ 125-150 लोगों को 2000-2000 रुपये दे पाते हैं. कैश कम है इसलिए ज़्यादातर लोगों को खाली हाथ वापस भेजना पड़ता है.
बैंक की बैलेंस शीट बताती है कि किस तरह 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद कैश पेमेंट घटा है. 8 नवंबर को ज़िला सहकारी बैंक की धौलाना शाखा में स्थानीय खाताघारकों को 8.5 लाख रुपये की कैश पेमेंट दी गई, जबकि 28 नवंबर को सिर्फ 4.55 लाख की कैश पेमेंट लोगों को करना संभव हो सका, यानी करीब 50% कम. वो भी ऐसे वक्त पर जब रबी सीज़न की बुआई का पीक टाइम है और किसानों को ज्यादा कैश की जरूरत है.
जाहिर है किसानों और स्थानीय लोगों को कैश पेमेंट घटने से उनकी मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं. रणवीर दत्त शर्मा काफी बूढ़े हो चुके हैं. इलाज के लिए पैसे निकालने की जद्दोजहद करते-करते थक चुके हैं. कहते हैं, इतना परेशान हो चुके हैं कि अकाउंट रखना ही नहीं चाहते हैं. यानी ग्रामीण इलाकों में कैश की किल्लत बनी हुई है, जो लोगों के लिए बड़े संकट में बदलता जा रहा है.
बेटी की शादी अच्छे से करने के लिए संतोष ने अपनी साढ़े चार बीघा जमीन बेचने की भी कोशिश की, लेकिन उसमें भी सफलता नहीं मिल पाई. कहती हैं कि खरीददार नहीं हैं.
उनके साथ बैठी शकुंतला को 14,000 रुपये चाहिए. उन्हें अपनी आंख का ऑपरेशन कराना है. डॉक्टर ने बुधवार की तारीख दी है. लाइन में जब तक नंबर आया, कैश खत्म हो गया. कहती हैं, अब पता नहीं बुधवार को ऑपरेशन हो पाएगा या नहीं.
बैंक मैनेजर अनिल कुमार बताते हैं कि सरकार ने नाबार्ड के ज़रिये सहकारी बैंकों तक 21,000 करोड़ रुपये पहुंचाने का ऐलान तो कर दिया लेकिन अब तक पैसा नहीं आया है. कैश की कमी की वजह से हर रोज़ सिर्फ 125-150 लोगों को 2000-2000 रुपये दे पाते हैं. कैश कम है इसलिए ज़्यादातर लोगों को खाली हाथ वापस भेजना पड़ता है.
बैंक की बैलेंस शीट बताती है कि किस तरह 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद कैश पेमेंट घटा है. 8 नवंबर को ज़िला सहकारी बैंक की धौलाना शाखा में स्थानीय खाताघारकों को 8.5 लाख रुपये की कैश पेमेंट दी गई, जबकि 28 नवंबर को सिर्फ 4.55 लाख की कैश पेमेंट लोगों को करना संभव हो सका, यानी करीब 50% कम. वो भी ऐसे वक्त पर जब रबी सीज़न की बुआई का पीक टाइम है और किसानों को ज्यादा कैश की जरूरत है.
जाहिर है किसानों और स्थानीय लोगों को कैश पेमेंट घटने से उनकी मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं. रणवीर दत्त शर्मा काफी बूढ़े हो चुके हैं. इलाज के लिए पैसे निकालने की जद्दोजहद करते-करते थक चुके हैं. कहते हैं, इतना परेशान हो चुके हैं कि अकाउंट रखना ही नहीं चाहते हैं. यानी ग्रामीण इलाकों में कैश की किल्लत बनी हुई है, जो लोगों के लिए बड़े संकट में बदलता जा रहा है.
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