भारत लोटने के अगले दिन अपने माता-पिता के साथ ग्रुप कैप्टन नचिकेता (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
ग्रुप कैप्टन के. नचिकेता से जब मैंने पूछा कि 'उन्होंने आपको कितनी बुरी तरह प्रताड़ित किया?' तो वह थोड़ी देर तो चुप रहे, नीचे देखा और फिर सीधे मेरी आंखों में देखते हुए कहते हैं, 'वह टॉर्चर काफी बुरा था। एक ऐसा वक्त आता है, जब आपको लगता है कि 'मौत आसान है', लेकिन मेरी खुशकिश्मती थी, टॉर्चर का जो आखिरी हिस्सा थर्ड डिग्री होती है, वह मुझ पर शुरू नहीं की गई थी।' यह सब बताते हुए उनकी आवाज थोड़ी कांप जाती है।
1999 में करगिल युद्ध के दौरान 26 वर्षीय फायटर पायलट के. नचिकेता को करगिल में 17,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित पाकिस्तानी चौकियों को तबाह करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने लक्ष्य को निशाने पर लिया और अपने बमवर्षक विमान MiG 27 से एक शक्तिशाली गोला दागा, लेकिन तभी उन्हें ऐसे हालात का सामना पड़ा, जो कि किसी भी पायलट के लिए बुरे ख्वाब जैसा होता है। उनके इंजन में 'आग लग गई' और फिर वह बीच आसमान में ही बंद हो गया। ऐसे में उनका बस एक ही लक्ष्य था- 'इंजन को दोबारा शुरू करना'।
उनके MiG 27 में लगे तुमांस्की टर्बो जेट इंजन में तब कुछ जान बाकी थी और वह फिर से चलने लगा। पायलट इसे 'री-लाइट' कहते हैं। हालांकि युद्ध क्षेत्र से सफलतापूर्वक बाहर निकलने की जो उम्मीद इससे जगी थी, वह उतनी ही जल्दी धूमिल हो गई। इंजन अब तक अपनी पूरी क्षमता पर भी नहीं पहुंचा था और सामने बेहद तेजी से पहाड़ियां आने लगीं। वह खतरे से बाहर निकलने के लिए तेजी से ऊपर भी नहीं उठ सकते थे। वह कहते हैं, 'तो मेरा 'री-लाइट' कारगर रहा, लेकिन बीच में ही कहीं पर मुझे विमान से इजेक्ट करना पड़ा, क्योंकि मैं जमीन के बेहद करीब पहुंच चुका था। और तभी मैं इजेक्ट कर गया।'
इस घटना को याद करते हुए वह बताते है, 'इजेक्शन के दौरान कुछ देर के लिए आंशिक तौर पर बेहोश जैसा था, लेकिन मैं पक्के तौर पर अवगत था कि वहां क्या हो रहा है। मैं काफी जल्दी ही जमीन पर पहुंच गया। वह बहुत नीचे से किया गया इजेक्शन था। जहां पर मैं उतरा वहां चारों तरफ बर्फ की सफेद चादर फैली थी। उस जगह पर गोलियां बरस रही थी, जिससे इजेक्शन के झटके के बाद मुझे तुरंत होश आया और मेरा अगला लक्ष्य खुद को कवर करना था।'
इसके करीब आधे घंटे बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने उन पर घात लगाकर हमला किया, हालांकि इससे पहले नचिकेता उन पर गोलियों की अपनी मैगजीन खाली कर चुके थे। वह कहते हैं, 'हम हिफाजत के लिए एक छोटी पिस्टल रखते हैं। मैं देख सकता था कि जहां मैंने कवर ले रखा था, वहां पांच-छह लोग (मुझ पर) घात लगाए हैं। मैंने पहली गोली दागी। और इसके बाद मैंने उन्हें रोकने की कोशिश में सारी गोलियां दाग दी, ताकि वह मेरे पास नहीं आएं। बदकिस्मती से हमारी पिस्टल का रेंज महज 25 यार्ड था, जबकि उनके पास AK-56 थी। इसलिए, पक्का था कि उनकी गोलियां तो मुझ पर बरस रही हैं, लेकिन मेरी गोलियां उन तक नहीं पहुंच पा रहीं और इससे पहले की मैं दूसरी मैगजीन भरता, वह आए और मुझे बंधक बना लिया।'
नचिकेता को बंधक बनाने वाले पाकिस्तान के नार्दन लाइट इंफैन्ट्री के सैनिक बेहद क्रूर थे और उन्हें तब बुरी तरह पीटते रहे, जब उनके एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें पीछे हटने को नहीं कहा। नचिकेता बताते हैं, 'मुझे पकडने वाले जवान मेरे साथ धक्कामुक्की कर रहे थे और शायद उनका इरादा मुझे मारने का था, क्योंकि उनके लिए मैं बस एक दुश्मन पायलट था, जो उनके ठिकाने पर आसमान से गोलियां बरसा रहा था। खुशकिस्मती से, वहां आया अधिकारी बेहद मैच्योर था। उसने हालात को समझा कि मैं अब उनका बंधक हूं और अब मुझसे वैसे बर्ताव की जरूरत नहीं। तो उनसे उन लोगों को रोका, जिसमें काफी कोशिश लगी, लेकिन वे लोग उस वक्त काफी उग्र थे।'
पाकिस्तान द्वारा बंधक बनाए जाने से एक दिन पहले की नचिकेता की तस्वीर
नचिकेता को फिर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर ले जाया गया, अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने खड़ा किया गया और फिर सूचनाओं के लिए मारा-पीटा गया। हालांकि नचिकेता को उनकी रिहाई के लिए किए जा रहे प्रयासों को कोई अंदाजा नहीं था। वह कहते हैं, 'पूछताछ शुरू हो चुकी थी और मुझे पता था कि शायद मैं कल ना देख पाऊं। हालांकि इस बीच हमेशा एक उम्मीद तो थी कि किसी दिन मैं वापस लौट सकूंगा। मुझे टॉर्चर किया गया। साफ कहूं तो मैं उनके लिए असल सूचना को स्रोत नहीं था। मुझे पता था कि वे मुझे कुछ ऐसा जानना चाहते थे, जिससे उन्हें मदद मिले। लेकिन एक चीज थी कि एयर फोर्स पायलट होने के नाते, मेरे पास सेना की योजना की जानकारी नहीं थी।'
नचिकेता की रिहाई के लिए भारत सरकार की ओर से बैकडोर कोशिशों के बाद उन्हें बंधक बनाए जाने के 8 दिनों बाद रेड क्रॉस के हवाले कर दिया गया, जो कि उन्हें भारत वापस लेकर आई। यहां राष्ट्रपति केआर नारायणन और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका हीरो जैसा स्वागत किया।
ज्यादातर लोगों के लिए ये अनुभव काम छोड़ने के लिए काफी होता, लेकिन नचिकेता अलग ही मिट्टी के बने थे। करगिल में इजेक्शन के दौरान पीठ में लगी चोट के कारण वह आगे फायटर प्लेन में तो वह वापसी नहीं कर सके। हालांकि नचि, जैसा कि दोस्त उन्हें पुकारते हैं, भारतीय वायुसेना के ट्रांसपोर्ट फ्लीट में शामिल हुए और विशाल Il-76 ट्रासपोर्ट विमान उड़ाते हैं। करगिल के 17 साल बाद नचि कहते हैं, 'एक पायलट का दिल हमेशा कॉकपिट में ही रहता है।'
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
1999 में करगिल युद्ध के दौरान 26 वर्षीय फायटर पायलट के. नचिकेता को करगिल में 17,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित पाकिस्तानी चौकियों को तबाह करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने लक्ष्य को निशाने पर लिया और अपने बमवर्षक विमान MiG 27 से एक शक्तिशाली गोला दागा, लेकिन तभी उन्हें ऐसे हालात का सामना पड़ा, जो कि किसी भी पायलट के लिए बुरे ख्वाब जैसा होता है। उनके इंजन में 'आग लग गई' और फिर वह बीच आसमान में ही बंद हो गया। ऐसे में उनका बस एक ही लक्ष्य था- 'इंजन को दोबारा शुरू करना'।
उनके MiG 27 में लगे तुमांस्की टर्बो जेट इंजन में तब कुछ जान बाकी थी और वह फिर से चलने लगा। पायलट इसे 'री-लाइट' कहते हैं। हालांकि युद्ध क्षेत्र से सफलतापूर्वक बाहर निकलने की जो उम्मीद इससे जगी थी, वह उतनी ही जल्दी धूमिल हो गई। इंजन अब तक अपनी पूरी क्षमता पर भी नहीं पहुंचा था और सामने बेहद तेजी से पहाड़ियां आने लगीं। वह खतरे से बाहर निकलने के लिए तेजी से ऊपर भी नहीं उठ सकते थे। वह कहते हैं, 'तो मेरा 'री-लाइट' कारगर रहा, लेकिन बीच में ही कहीं पर मुझे विमान से इजेक्ट करना पड़ा, क्योंकि मैं जमीन के बेहद करीब पहुंच चुका था। और तभी मैं इजेक्ट कर गया।'
इस घटना को याद करते हुए वह बताते है, 'इजेक्शन के दौरान कुछ देर के लिए आंशिक तौर पर बेहोश जैसा था, लेकिन मैं पक्के तौर पर अवगत था कि वहां क्या हो रहा है। मैं काफी जल्दी ही जमीन पर पहुंच गया। वह बहुत नीचे से किया गया इजेक्शन था। जहां पर मैं उतरा वहां चारों तरफ बर्फ की सफेद चादर फैली थी। उस जगह पर गोलियां बरस रही थी, जिससे इजेक्शन के झटके के बाद मुझे तुरंत होश आया और मेरा अगला लक्ष्य खुद को कवर करना था।'
इसके करीब आधे घंटे बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने उन पर घात लगाकर हमला किया, हालांकि इससे पहले नचिकेता उन पर गोलियों की अपनी मैगजीन खाली कर चुके थे। वह कहते हैं, 'हम हिफाजत के लिए एक छोटी पिस्टल रखते हैं। मैं देख सकता था कि जहां मैंने कवर ले रखा था, वहां पांच-छह लोग (मुझ पर) घात लगाए हैं। मैंने पहली गोली दागी। और इसके बाद मैंने उन्हें रोकने की कोशिश में सारी गोलियां दाग दी, ताकि वह मेरे पास नहीं आएं। बदकिस्मती से हमारी पिस्टल का रेंज महज 25 यार्ड था, जबकि उनके पास AK-56 थी। इसलिए, पक्का था कि उनकी गोलियां तो मुझ पर बरस रही हैं, लेकिन मेरी गोलियां उन तक नहीं पहुंच पा रहीं और इससे पहले की मैं दूसरी मैगजीन भरता, वह आए और मुझे बंधक बना लिया।'
नचिकेता को बंधक बनाने वाले पाकिस्तान के नार्दन लाइट इंफैन्ट्री के सैनिक बेहद क्रूर थे और उन्हें तब बुरी तरह पीटते रहे, जब उनके एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें पीछे हटने को नहीं कहा। नचिकेता बताते हैं, 'मुझे पकडने वाले जवान मेरे साथ धक्कामुक्की कर रहे थे और शायद उनका इरादा मुझे मारने का था, क्योंकि उनके लिए मैं बस एक दुश्मन पायलट था, जो उनके ठिकाने पर आसमान से गोलियां बरसा रहा था। खुशकिस्मती से, वहां आया अधिकारी बेहद मैच्योर था। उसने हालात को समझा कि मैं अब उनका बंधक हूं और अब मुझसे वैसे बर्ताव की जरूरत नहीं। तो उनसे उन लोगों को रोका, जिसमें काफी कोशिश लगी, लेकिन वे लोग उस वक्त काफी उग्र थे।'
पाकिस्तान द्वारा बंधक बनाए जाने से एक दिन पहले की नचिकेता की तस्वीर
नचिकेता को फिर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर ले जाया गया, अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने खड़ा किया गया और फिर सूचनाओं के लिए मारा-पीटा गया। हालांकि नचिकेता को उनकी रिहाई के लिए किए जा रहे प्रयासों को कोई अंदाजा नहीं था। वह कहते हैं, 'पूछताछ शुरू हो चुकी थी और मुझे पता था कि शायद मैं कल ना देख पाऊं। हालांकि इस बीच हमेशा एक उम्मीद तो थी कि किसी दिन मैं वापस लौट सकूंगा। मुझे टॉर्चर किया गया। साफ कहूं तो मैं उनके लिए असल सूचना को स्रोत नहीं था। मुझे पता था कि वे मुझे कुछ ऐसा जानना चाहते थे, जिससे उन्हें मदद मिले। लेकिन एक चीज थी कि एयर फोर्स पायलट होने के नाते, मेरे पास सेना की योजना की जानकारी नहीं थी।'
नचिकेता की रिहाई के लिए भारत सरकार की ओर से बैकडोर कोशिशों के बाद उन्हें बंधक बनाए जाने के 8 दिनों बाद रेड क्रॉस के हवाले कर दिया गया, जो कि उन्हें भारत वापस लेकर आई। यहां राष्ट्रपति केआर नारायणन और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका हीरो जैसा स्वागत किया।
ज्यादातर लोगों के लिए ये अनुभव काम छोड़ने के लिए काफी होता, लेकिन नचिकेता अलग ही मिट्टी के बने थे। करगिल में इजेक्शन के दौरान पीठ में लगी चोट के कारण वह आगे फायटर प्लेन में तो वह वापसी नहीं कर सके। हालांकि नचि, जैसा कि दोस्त उन्हें पुकारते हैं, भारतीय वायुसेना के ट्रांसपोर्ट फ्लीट में शामिल हुए और विशाल Il-76 ट्रासपोर्ट विमान उड़ाते हैं। करगिल के 17 साल बाद नचि कहते हैं, 'एक पायलट का दिल हमेशा कॉकपिट में ही रहता है।'
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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