सीएम सिद्धारमैय्या की फाइल फोटो
बेंगलुरु:
कर्नाटक के क़ानून मंत्री टी.बी. जयचंद्रा ने बताया कि सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में जो अहम फैसले लिए गए थे उनमें से एक है पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी के खिलाफ 2009 से 2012 के बीच दायर मुकदमों को कांग्रेस सरकार ने वापस लेने का फैसला किया है जिसपर कैबिनेट ने मुहर लगा दी है।
जिन 175 मामलों को वापस लेने का फैसला कर्नाटक की सिद्धारमैय्या सरकार ने किया है, वो सभी हिन्दू मुस्लिम दंगों से जुड़े हैं और ये सभी मामले येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में दर्ज हुए। कुल 1614 लोगों को मैसूर और शिवमोगा में हुए दंगों के लिए नामज़द किया गया था जिनमें से 60 फीसदी मुस्लिम हैं।
क़ानून मंत्री टी.बी. जैचंद्रा के मुताबिक ज़यादातर बूढ़े और बच्चों को पुलिस ने इसमें अभियुक्त बनाया था। हालांकि उन्होंने ये सफाई भी दी कि हत्या और इस जैसे दूसरे अपराधों से जुड़े मामले वापस नहीं लिए गए हैं।
बीजीपी ने कैबिनेट के इस फैसले को मुस्लिम तुष्टिकरण का नाम दिया है तो वहीं कांग्रेस ने पलटवार करते हुए बीजेपी पर आरोप लगाया कि उनके शासनकाल में 2008 से 2013 के बीच लगभग 2800 लोगों से जुड़े मामले सरकार ने वापस लिए थे। ये सभी मामले हिन्दू संगठनों से जुड़े थे। जानकारों के मुताबिक भले की कैबिनेट ने इन मामलों को वापस लेने का फैसला किया है लेकिन अगर ट्रायल कोर्ट चाहे तो इस फैसले को ठुकरा भी सकती है।
जिन 175 मामलों को वापस लेने का फैसला कर्नाटक की सिद्धारमैय्या सरकार ने किया है, वो सभी हिन्दू मुस्लिम दंगों से जुड़े हैं और ये सभी मामले येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में दर्ज हुए। कुल 1614 लोगों को मैसूर और शिवमोगा में हुए दंगों के लिए नामज़द किया गया था जिनमें से 60 फीसदी मुस्लिम हैं।
क़ानून मंत्री टी.बी. जैचंद्रा के मुताबिक ज़यादातर बूढ़े और बच्चों को पुलिस ने इसमें अभियुक्त बनाया था। हालांकि उन्होंने ये सफाई भी दी कि हत्या और इस जैसे दूसरे अपराधों से जुड़े मामले वापस नहीं लिए गए हैं।
बीजीपी ने कैबिनेट के इस फैसले को मुस्लिम तुष्टिकरण का नाम दिया है तो वहीं कांग्रेस ने पलटवार करते हुए बीजेपी पर आरोप लगाया कि उनके शासनकाल में 2008 से 2013 के बीच लगभग 2800 लोगों से जुड़े मामले सरकार ने वापस लिए थे। ये सभी मामले हिन्दू संगठनों से जुड़े थे। जानकारों के मुताबिक भले की कैबिनेट ने इन मामलों को वापस लेने का फैसला किया है लेकिन अगर ट्रायल कोर्ट चाहे तो इस फैसले को ठुकरा भी सकती है।
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