नई दिल्ली:
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण देने के प्रावधान वाले प्रस्ताव को आज मंजूरी दे दी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण देने का प्रावधान बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
जहां बसपा ने सरकार और विपक्ष से संसद में इस विधेयक को पारित करने का आग्रह किया है वहीं सपा ने इस पर विरोध जताया है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उक्त प्रस्ताव को मंजूरी दिये जाने के बाद बसपा अध्यक्ष मायावती ने पिछले दस दिन से कोयला ब्लॉक आवंटन पर संसद की कार्रवाई ठप करने वाले मुख्य विपक्षी दल भाजपा से अपील की कि वह आधा-एक घंटा सदन को चलने दे, जिससे कि यह आवश्यक विधेयक पारित हो सके।
उधर, सपा नेता राम गोपाल यादव ने संवाददाताओं से कहा कि मंत्रिमंडल का फैसला प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। हम इस संविधान संशोधन विधेयक का विरोध करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार कोयला ब्लॉक आवंटन के मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए इस तरह की रणनीति अपना रही है।
मायावती ने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा कि संसद में कोयला ब्लॉक आवंटन के मुद्दे पर कार्यवाही नहीं चल पा रही।
उन्होंने कहा, मैं भाजपा और राजग से अपील करती हूं कि पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण के लिए विधेयक को पारित होने दें। मैं राजग से अपील करती हूं कि विधेयक पारित होने में आधा घंटा, एक घंटा, डेढ़ घंटा जितना समय लगे उतनी देर संसद चलने दें। मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी ने इस विधेयक को लाने के लिए बहुत मेहनत की है ताकि पिछड़े वर्ग के लोग अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
समाजवादी पार्टी ने विधेयक का विरोध जताते हुए कहा है कि नौकरियों में अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण स्वीकार्य है, लेकिन पदोन्नति में आरक्षण का विचार सही नहीं है।
गौरतलब है कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद के जारी सत्र में एक संविधान संशोधन विधेयक लाने का रास्ता साफ हो गया है, जो लंबे समय से सपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों की मांग रही है।
प्रधानमंत्री द्वारा गत 21 अगस्त को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में खासतौर पर उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के मद्देनजर पदोन्नति में आरक्षण पर विचार किया गया, जिसमें शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश में एससी-एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के फैसले को खारिज कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय के आदेश की पृष्ठभूमि में अनेक राजनीतिक दलों ने कानूनी रूप से कायम रहने वाले विधेयक की वकालत की थी। प्रस्तावित विधेयक में संविधान के कम से कम चार अनुच्छेदों में संशोधन किया जाएगा ताकि सरकार एससी-एसटी को पदोन्नति में आरक्षण दे सके।
उच्चतम न्यायालय ने गत 28 अप्रैल को उत्तर प्रदेश में पूर्ववर्ती मायावती सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसके बाद बसपा अध्यक्ष ने संसद में यह मुद्दा उठाया। इस मुद्दे को लेकर संसद के मौजूदा और पिछले सत्र में भी हंगामा देखा गया था।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण देने का प्रावधान बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
जहां बसपा ने सरकार और विपक्ष से संसद में इस विधेयक को पारित करने का आग्रह किया है वहीं सपा ने इस पर विरोध जताया है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उक्त प्रस्ताव को मंजूरी दिये जाने के बाद बसपा अध्यक्ष मायावती ने पिछले दस दिन से कोयला ब्लॉक आवंटन पर संसद की कार्रवाई ठप करने वाले मुख्य विपक्षी दल भाजपा से अपील की कि वह आधा-एक घंटा सदन को चलने दे, जिससे कि यह आवश्यक विधेयक पारित हो सके।
उधर, सपा नेता राम गोपाल यादव ने संवाददाताओं से कहा कि मंत्रिमंडल का फैसला प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। हम इस संविधान संशोधन विधेयक का विरोध करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार कोयला ब्लॉक आवंटन के मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए इस तरह की रणनीति अपना रही है।
मायावती ने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा कि संसद में कोयला ब्लॉक आवंटन के मुद्दे पर कार्यवाही नहीं चल पा रही।
उन्होंने कहा, मैं भाजपा और राजग से अपील करती हूं कि पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण के लिए विधेयक को पारित होने दें। मैं राजग से अपील करती हूं कि विधेयक पारित होने में आधा घंटा, एक घंटा, डेढ़ घंटा जितना समय लगे उतनी देर संसद चलने दें। मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी ने इस विधेयक को लाने के लिए बहुत मेहनत की है ताकि पिछड़े वर्ग के लोग अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
समाजवादी पार्टी ने विधेयक का विरोध जताते हुए कहा है कि नौकरियों में अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण स्वीकार्य है, लेकिन पदोन्नति में आरक्षण का विचार सही नहीं है।
गौरतलब है कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद के जारी सत्र में एक संविधान संशोधन विधेयक लाने का रास्ता साफ हो गया है, जो लंबे समय से सपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों की मांग रही है।
प्रधानमंत्री द्वारा गत 21 अगस्त को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में खासतौर पर उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के मद्देनजर पदोन्नति में आरक्षण पर विचार किया गया, जिसमें शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश में एससी-एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के फैसले को खारिज कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय के आदेश की पृष्ठभूमि में अनेक राजनीतिक दलों ने कानूनी रूप से कायम रहने वाले विधेयक की वकालत की थी। प्रस्तावित विधेयक में संविधान के कम से कम चार अनुच्छेदों में संशोधन किया जाएगा ताकि सरकार एससी-एसटी को पदोन्नति में आरक्षण दे सके।
उच्चतम न्यायालय ने गत 28 अप्रैल को उत्तर प्रदेश में पूर्ववर्ती मायावती सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसके बाद बसपा अध्यक्ष ने संसद में यह मुद्दा उठाया। इस मुद्दे को लेकर संसद के मौजूदा और पिछले सत्र में भी हंगामा देखा गया था।
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