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This Article is From Aug 01, 2013

आरटीआई अधिनियम संशोधन : सरकार ने किया बचाव, कार्यकर्ता नाराज

आरटीआई अधिनियम संशोधन : सरकार ने किया बचाव, कार्यकर्ता नाराज
नई दिल्ली: सरकार ने राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम से बाहर रखने के लिए इसमें संशोधन को मंजूरी देने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का शुक्रवार को बचाव किया और कहा कि यदि इस मामले में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का आदेश लागू होता है तो कोई भी राजनीतिक दल काम नहीं कर पाएगा। लेकिन कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि इससे पारदर्शिता एवं जवाबदेही का क्षरण होगा, जिससे अंतत: लोकतंत्र का नुकसान होगा।

सीआईसी ने तीन जून को छह राष्ट्रीय दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में लाने का आदेश दिया था। लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को इसमें संशोधन को मंजूरी दे दी। संशोधित अधिनियम में राजनीतिक दल इसके दायरे से बाहर हो जाएंगे। आरटीआई अधिनियम में संशोधन का यह प्रस्ताव संसद के मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है, जो पांच अगस्त से शुरू हो रहा है।

केंद्र सरकार के इस फैसले का बचाव करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, "सरकार सीआईसी का सम्मान करती है, लेकिन इसके आदेश को लेकर चिंतित थी। यह आदेश राजनीतिक व्यवस्था पर हमला करता है। लोग राजनीतिक दलों से सभी तरह की जानकारी ले सकते हैं। दुनिया में कहीं भी ऐसा नहीं होता। सभी राजनीतिक दल सीआईसी के आदेश के खिलाफ हैं। यदि इसे लागू किया जाता है तो राजनीतिक दल काम नहीं कर पाएंगे।" उन्होंने कहा कि सरकार के पास दो रास्ते रह गए थे, एक तो वह सीआईसी के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करे। लेकिन इसमें बहुत समय लगता। इसलिए आरटीआई अधिनियम में संशोधन का दूसरा रास्ता चुना गया, जो जल्दी हो सकता है। जल्दबाजी इसलिए है, क्योंकि सीआईसी का आदेश प्रक्रिया से संबंधित है। हम इस मुद्दे पर जल्द प्रस्ताव चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा, "इस तरह की आम धारणा है कि राजनीतिक पार्टियां जवाबदेह नहीं होती हैं। हमें जनता निर्वाचित करती है। हमें जो भी अनुदान मिलता है, उसका खुलासा हमें निर्वाचन आयोग के समक्ष करना होता है। यदि राजनीतिक दलों को मिलने वाला अनुदान अस्पष्ट होता तो यह संभव नहीं हो पाता।"

सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से अधिक का जो भी अनुदान मिलता है, उसके बारे में आयकर विभाग के समक्ष घोषणा करनी पड़ती है। यह सार्वजनिक भी किया जा सकता है।

यदि राजनीतिक दल गोपनीयता के साथ काम करते तो यह संभव नहीं हो पाता। उन्होंने कहा, "हम निर्वाचन आयोग को संपत्ति एवं ऋणों तथा अपने खर्च का ब्यौरा देते हैं। इसमें पूरी तरह पारदर्शिता रहती है। राजनीतिक दल न तो कंपनियां हैं और न ही न्यास। ये लोगों के स्वैच्छिक संघ होते हैं।"

सिब्बल ने कहा, "राजनीतिक दलों की नियुक्ति नहीं होती। हम चुनावी प्रक्रिया के तहत लोगों के पास जाते हैं। सरकारी कर्मचारियों से अलग हमारा निर्वाचन होता है। यह मूल अंतर है।"

कार्यकर्ताओं ने हालांकि सरकार के इस कदम की आलोचना की है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) के वेंकटेश नायक ने कहा, "सरकार ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए सीआईसी के आदेश को निरस्त कर दिया। वे पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने में एक बार फिर विफल रहे, जिसका वादा वे अपनी हर घोषणा-पत्र में करते हैं।"

आरटीआई कार्यकर्ता शैलेश गांधी ने कहा, "यह एक घटिया निर्णय है। यह निश्चित तौर पर लोकतंत्र का क्षरण है। उन्हें कम से कम लोगों के साथ संवाद करना चाहिए, क्योंकि यह उनके मौलिक अधिकारों से जुड़ा मामला है।"

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