बुंदेलखंड : 'यहां बहू नहीं मिलती, मैं भी शादी कर दूर चली जाऊंगी'

बुंदेलखंड : 'यहां बहू नहीं मिलती, मैं भी शादी कर दूर चली जाऊंगी'

बुंदेलखंड से लौटकर:

झांसी से 15 किलोमीटर दूर हाइवे पर पानी का एक टैंकर आकर रुकता है। एक छोटा-सा लड़का उसे देखकर अपने घर की ओर चिल्लाता हुए भागता है, ‘आ गओ... आ गयो... टैंकर आ गओ...’ उसके बाद पूरे इलाके में हड़कंप मच जाता है। घर से लड़कियां और महिलाएं बर्तन हाथों में लेकर दौड़ते हुए बाहर आती हैं और पानी भरने के लिए लाइन में लग जाती हैं। सबसे पहले एक बच्ची एक छोटा-सा गैलन भरती है और पानी बांटने वाले को एक रुपये का सिक्का थमाती है।

पानी भर रहे सभी लोगों को इसी तरह उसका दाम चुकाना पड़ता है। छोटे गैलन का एक रुपया और बड़े गैलन के 10 रुपये। ‘यहां पानी नहीं आता। हमें इसी तरह (पानी) खरीदना पड़ता है।’ एक लड़की कहती है। उसके पास खड़ी दूसरी महिला टीवी कैमरे को और फिर पाइप से निकल रहे पानी से भरते बर्तन को देखती है। उसके लिए पानी की इस कमी पर टीवी वालों को ख़बर बनाते देखना हैरत भरा है। ‘सर यहां तो सालों से पानी नहीं आता है। ऐसी ही किल्लत है। लोगों को अब यूं ही जीने की आदत पड़ गई है।’ पानी के टैंकर के पास चाय के खोमचे वाला कहता है।

बुंदेलखंड में पानी की किल्लत बात नहीं है। झांसी शहर में तो माताटीला और पहूच डैम से पानी की सप्लाई हो जाती है, लेकिन गांवों के लोग इतने खुशकिस्मत नहीं हैं। कुएं सूख चुके हैं और ज्यादातार हैंडपंप काम नहीं करते। ‘अंदर गांवों में अगर कुछ हैंडपंप चल रहे हैं तो उन पर दबंगों का क़ब्ज़ा है।’ एक आदमी हमें बताता है। हम बुंदेलखंड के गांवों का रुख करते हैं। कुंओं में वाकई पानी नहीं है। किसान परेशान हैं। 40 से 60 फुट गहरे कुएं भी सूखे पड़े हैं।

‘बरसात होती है तो कुएं कुछ भर जाते हैं। वरना हम मोटर पंप से पानी खींचते हैं। कुंओं में जितना पानी भरता है, वह सिंचाई के लिए काफी नहीं होता। पीने का पानी जुटाना भी मुश्किल है।’ रामगढ़ गांव के किसान रामजी हमें बताते हैं। एक कुएं पर  16 साल की कविता को पानी भरने आती है। कुएं की तली में थोड़ा-सा पानी है। वह रस्सी से बांध कर बाल्टी कुएं में डालती है और ज़रा-सा पानी निकाल पाती है। ‘यह पानी बर्तन साफ करने के लिए है, पीने के लायक नहीं।’ कविता बताती है कि यहां पूरे इलाके में पानी की किल्लत ऐसी है कि किसी लड़के की शादी होना भी मुश्किल है।‘ कविता की बात सच है। कोई अपनी बेटी की शादी यहां क्यों करेगा जहां लड़की को चिलचिलाती धूप में कई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता हो।

केंद्रीय मंत्री और सांसद उमा भारती ने चुनावों के वक्त बुंदेलखंड के लोगों को पानी की किल्लत से छुटकारा दिलाने का वादा किया था। तब उन्होंने यहां कहा था कि केन और बेतवा नदी को जोड़ा जाएगा जिससे पानी की कमी दूर होगी लेकिन लोग कहते हैं कि जीतने के बाद तो वह यहां दिखाई ही नहीं देतीं। हाल ये है कि अब लोग यहां ‘नहर खुदवाओ हमें बचाओ’ के नारे लगा रहे हैं। 8 जून को बेतवा भवन के घेराव का कार्यक्रम है।

‘तुम इतनी तेज़ धूप में पानी भरने से परेशान नहीं होती’ मैं कविता से पूछता हूं...

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‘होती हूं।’ कविता कहती है, ‘इसीलिये मैं भी शादी कर यहां से दूर जाना चाहती हूं, जहां पानी आता हो।’