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This Article is From Aug 06, 2015

राजनाथ के बयान से BSF को इत्तेफाक नहीं, बोली- रावी के रास्ते आतंकियों के आने का सबूत नहीं

राजनाथ के बयान से BSF को इत्तेफाक नहीं, बोली- रावी के रास्ते आतंकियों के आने का सबूत नहीं
गुरदासपुर में हुए आतंकी हमले की सीसीटीवी इमेज (फाइल फोटो)
गुरदासपुर: पंजाब के गुरदासपुर में दीनानगर में 27 जुलाई को हमला करने वाले संदिग्ध पाकिस्तानी आतंकवादी कहां से आए थे? केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बताया था कि आतंकवादी भारत-पाक सीमा पर रावी नदी के रास्ते आए थे। लेकिन मारे गए आतंकवादियों के पास से मिले जीपीएस की प्रामाणिकता अब सवालों के घेरे में आ गई है।

सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के डीआईजी एनके मिश्रा ने कहा, 'हमें इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि आतंकवादी इसी रास्ते से आए (जिसका संकेत जीपीएस से मिला है)।'

भारत-पाकिस्तान सीमा की चौबीसों घंटे निगरानी करने वाले सीमा सुरक्षा बल के सूत्रों ने बताया कि आंतकवादियों के रावी नदी से आने का कोई सबूत नहीं मिला है। इससे यह बात साबित हो सकती है कि आतंकवादी बामियाल सेक्टर के मकोदा से गुरदासपुर जिले में घुसे। यह वह इलाका है जिसके उत्तर में कश्मीर और पश्चिम में जम्मू है।

घटना की जांच में शामिल बीएसएफ के एक सूत्र ने बताया, 'यह संभव नहीं है कि आतंकवादी इतनी कड़ी सुरक्षा वाले नदी के इलाके से आएं और अपना कोई निशान न छोड़ें। उनके पैरों के निशान नहीं मिले न ही इलाके में उगे सरकंडे में उनके घिसटने का कोई सबूत मिला। आतंकियों से मिले जीपीएस का पता भ्रम में डालने वाला भी हो सकता है।'

बीएसएफ अधिकारियों को लग रहा है कि आंतकवादी पहले जम्मू एवं कश्मीर आए होंगे और वहां से पंजाब में घुसने में कामयाब हो गए होंगे।

बीएसएफ सूत्रों का कहना है कि अगर जीपीएस से मिली जानकारी को सही मान लें तो भी यह संभव नहीं है कि आतंकवादी इस इलाके को इतनी तेजी से पार कर हमले के लिए दीनानगर पहुंच जाएं।

जीपीएस से जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक आतंकवादी रावी नदी के रास्ते मकोदा इलाके में पहुंचे। पाकिस्तान के नारोवाल, बाला पिंडी और चक अल्लाबख्श से होकर तलवंडी गांव में रेलवे ट्रैक के पास, वहां से छोटू नाथ मंदिर, फिर दीनानगर से तारागढ़ रोड और जाखर पिंडी गांव के पास से होते हुए दीनानगर के एसएसएम कॉलेज पहुंचे थे।

बीएसएफ ने इस रूट पर अपनी एक टीम भेजी और पाया कि सिर्फ रेलवे ट्रैक तक पहुंचने में ही टीम को छह घंटे लग गए। इसमें नदी पार करने का समय शामिल नहीं है जो कि वैसे भी रेलवे ट्रैक पर बम लगाते हुए पार करना आसान नहीं है।

एक अधिकारी ने कहा कि जीपीएस में दर्ज जगहें सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देने के लिए भी हो सकती हैं। और, भले रात रही हो, लेकिन इतने हथियारों से लैस आतंकवादियों पर किसी की नजर न पड़ने की बात समझ में नहीं आती।

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