यह ख़बर 09 फ़रवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

विनायक की अर्जी पर सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

खास बातें

  • विनायक सेन की निचली अदालत के फैसले के खिलाफ याचिका तथा जमानत अर्जी पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई तथा कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।
बिलासपुर:

पीयूसीएल के नेता विनायक सेन की निचली अदालत के फैसले के खिलाफ याचिका तथा जमानत अर्जी पर बिलासपुर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई तथा कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। राजद्रोह के मामले में आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ मानवाधिकार कार्यकर्ता विनायक सेन की अर्जी पर हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति टीपी शर्मा और न्यायमूर्ति आरएल झंवर की खंडपीठ ने सुनवाई की। अतिरिक्त महाधिवक्ता किशोर भादुड़ी ने राज्य शासन का पक्ष रखा तथा विनायक सेन और पीयूष गुहा को जमानत नहीं दिए जाने की मांग की। भादुड़ी ने दलील दी कि विनायक सेन बच्चों के डॉक्टर हैं, लेकिन उन्होंने आज तक राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित शिविर नहीं लगाया है, जबकि वे नक्सली गतिविधियों में जरूर दिलचस्पी रखते थे। डॉक्टर सेन के घर की जब तलाशी ली गई, तब उनके घर से नक्सली साहित्य मिले न कि चिकित्सकीय दस्तावेज। इससे यह साबित होता है कि सेन का कट्टर नक्सलियों से संबंध है। उन्होंने कहा कि सेन जेल में नारायण सान्याल से नक्सली गतिविधियों के संबंध में मिलने जाते थे। इलाज तो एक बहाना है। भादुड़ी ने सेन पर राजद्रोह के आरोप को सही ठहराते हुए कहा कि यह कहा जा रहा है कि जेल में विनायक सेन और नारायण सान्याल के बीच बातचीत के दौरान जेलर वहां मौजूद रहता था तथा सभी बातें हिन्दी में होती थीं। लेकिन यह बात गले नहीं उतर रही है कि सेन और सान्याल केवल हिन्दी में बात करते थे, क्योंकि दोनों बांग्लाभाषी हैं। भादुड़ी ने कहा कि पिछले दिनों पकड़े गए कट्टर नक्सली गोपन्ना ने पुलिस के सामने मौखिक रूप से स्वीकार किया था कि वह विनायक सेन को जानता है। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने पीयूष गुहा के बारे में कहा कि वह कहते हैं कि विनायक सेन और नारायण सान्याल को नहीं जानते हैं, जो बेबुनियाद है। जब पुलिस ने गुहा को गिरफ्तार किया था, तब उससे नक्सलियों के तीन पत्र बरामद हुए थे। यह बताया जा रहा है कि पीयूष गुहा तेंदूपत्ता व्यवसायी है, जबकि पुलिस ने गुहा से तेंदूपत्ता व्यवसाय से संबंधित कोई भी दस्तावेज बरामद नहीं किया। इससे पहले न्यायालय की कार्यवाही के दौरान राजनांदगांव में नक्सली हमले में मारे गए पुलिस अधीक्षक वीके चौबे की पत्नी रंजना चौबे, जिन्होंने विनायक सेन की जमानत की अर्जी के खिलाफ हस्तक्षेप याचिका दाखिल की, के अधिवक्ता शैलेष आहुजा ने न्यायालय में अतिरिक्त दस्तावेज पेश किया। आहुजा ने दस्तावेज में विनायक सेन को रिहा करने के लिए नोबल विजेताओं द्वारा अपील किए जाने तथा नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी के साथ विनायक सेन की फोटो पर आपत्ति जताई और कहा कि स्वतंत्र न्याय प्रक्रिया पर दबाव डालने की कोशिश की जा रही है। सेन और गुहा की निचली अदालत के खिलाफ तथा जमानत की अर्जी पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। रायपुर जिले की अदालत ने 24 दिसंबर, 2010 को सेन, कोलकाता के व्यापारी गुहा और नक्सली नेता सान्याल को राजद्रोह के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सेन और गुहा ने राज्य के उच्च न्यायालय में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ तथा जमानत के लिए अर्जी लगाई है। विनायक सेन की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने न्यायालय में सुनवाई के दौरान पैरवी की थी तथा सेन पर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया था। सुनवाई के दौरान न्यायालय में विनायक सेन के परिजन, यूरोपियन यूनियन के दो सदस्य और पीयूसीएल के कार्यकर्ता मौजूद थे।


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com