बिहार में 30 को 'सुपरहिट' संडे : एक मंच पर दिखेंगे लालू-नीतीश, दूसरे पर पीएम मोदी

बिहार में 30 को 'सुपरहिट' संडे : एक मंच पर दिखेंगे लालू-नीतीश, दूसरे पर पीएम मोदी

फाइल फोटो

पटना:

कुछ माह पहले एक ही गठबंधन में शामिल होने से पहले एक-दूसरे के 'घोर शत्रु' कहे जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव एक साथ राजधानी पटना में रविवार, 30 अगस्त को एक रैली को संबोधित करने जा रहे हैं। आमतौर पर इन दोनों नेताओं को भारी भीड़ का साथ मिलता रहा है, लेकिन इस बार खास बात यह है कि इसी दिन सिर्फ 225 किलोमीटर दूर भागलपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक जनसभा को संबोधित करेंगे, जो उनकी पार्टी के चुनाव अभियान शुरू करने के बाद से चौथी रैली होगी।

63-वर्षीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगातार तीसरी बार पद पर विराजमान होने की कामना में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है, जो कुल मिलाकर बहुत सौहार्दपूर्ण भले ही न रहा हो, लेकिन सभी मतभेद इस तथ्य की छांव में छिपा लिए जाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जोरदार अभियान की काट के लिए मिल-जुलकर प्रयास करना अनिवार्य है, ताकि सितंबर से राज्य में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सत्ता का हस्तांतरण न करना पड़े।

पिछले वर्ष हुए लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी द्वारा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किए जाने के विरोध में नीतीश कुमार ने उनके साथ अपना 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ने की घोषणा की थी, और अलग रहकर चुनाव लड़ा था, परंतु मोदी के पक्ष में आए बेहद ठोस परिणामों ने उन्हें उनके 'गलत आकलन' का एहसास दिलाया, क्योंकि राज्य की 40 में से बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने 31 सीटें जीतीं।

हाल ही में नीतीश कुमार ने नाखून और बाल एकत्र करने का अभियान शुरू दावा किया है कि बिहार के 50 लाख लोग प्रधानमंत्री को अपना डीएनए सैम्पल भेजेंगे। दरअसल, प्रधानमंत्री ने कहा था कि नीतीश कुमार का डीएनए उन्हें धोखाधड़ी करने के लिए उकसाता है। इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश ने पीएम के इस बयान को सभी बिहारवासियों से जोड़ते हुए प्रधानमंत्री से क्षमायाचना करने की मांग की थी।

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30 अगस्त को प्रधानमंत्री जिस भागलपुर में रैली को संबोधित करने जा रहे हैं, वहां वर्ष 1989 में भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिनमें एक माह में ही 1,000 से भी ज़्यादा लोग (अधिकतर मुस्लिम) मार दिए गए थे। वह दंगे एक बार फिर राजनीति के मुख्य भावनात्मक मुद्दों में शामिल हो गए, जब हाल ही में दंगों से जुड़ी एक रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें पुलिस के साथ-साथ तत्कालीन कांग्रेस सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया गया था।