कोसी अब मिथिला और सीमांचल से जुड़ने के करीब है. हालांकि बिहार (Bihar) में इस जुड़ाव में रेलवे को 17 वर्षों का समय लग गया, अभी भी कुछ वर्षों का समय और लगने की उम्मीद है. 86 वर्षों के बाद कोसी नदी पर बने 1900 मीटर लंबे रेल महासेतु(Kosi Mahasetu) पर 13 अगस्त को कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी (सीआरएस) ने ट्रेन चलाकर निरीक्षण किया. सब कुछ संतोषजनक पाया और कहा कि शीघ्र ही इस पुल पर स्पेशल ट्रेन का परिचालन शुरू होने की उम्मीद है. इसी तरह सहरसा-फारबिसगंज में सरायगढ़ से आगे राघोपुर तक भी सीआरएस का निरीक्षण हुआ. इधर भी सब ठीक पाया गया.
गौरतलब है कि साल 1934 से पूर्व कोसी, मिथिला और सीमांचल एक था.1887 में बंगाल नॉर्थ-वेस्ट रेलवे ने निर्मली और सरायगढ़ के बीच एक मीटर गेज रेल लाइन का निर्माण किया था. उस समय कोसी नदी का बहाव इन दोनों स्टेशनों के बीच नहीं था.कोसी की एक सहायक नदी तिलयु्गा इन स्टेशनों के बीच से बहती थी. नदी के ऊपर लगभग 250 फीट लंबा एक पुल था. रेल नेटवर्क से यह इलाका आपस में जुड़ा हुआ था, लेकिन वर्ष 1934 में आए भूकंप में इन तीनों क्षेत्रों की स्थिति बिगड़ गई. कहते हैं कि तब रिएक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 8 थी. क्षेत्र की सभी रेललाइनें क्षत-विक्षत हो गई, जिसमें मिथिला को कोसी और शेष भाग से जोड़ने के लिए तिलयुगा नदी पर बना रेलपुल भी ध्वस्त हो गया. जिससे रेल परिचालन ठप हो गया. ये तीनों भाग एक-दूसरे से अलग हो गये. बाद में कोसी, मिथिला और सीमांचल तीनों क्षेत्रों में नई योजना लाकर रेलसेवा को तो बहाल कर लिया गया, लेकिन तिलयुगा नदी पर बने और ध्वस्त हुए पुल के पुनर्निर्माण की योजना नहीं बन सकी और तीनों क्षेत्र आपस में रेल नेटवर्क से सीधे नहीं जुड़ सके.
स्थानीय निवासी बताते हैं, वर्ष 2003 के जून महीने की 6 तारीख इन तीनों क्षेत्रों के लिए उम्मीद का उजाला लेकर आया, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सुपौल जिले के निर्मली में ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर के समानांतर कोसी नदी पर रेलपुल बनाने की आधारशिला रखी. शिलान्यास कार्यक्रम में तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार के अलावे राज्य की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, सांसद जॉर्ज फर्नांडीस, शरद यादव, रविशंकर प्रसाद, शाहनवाज खान सहित और कई नेता मौजूद थे. शिलान्यास के बाद केंद्र में सरकारें आती-जाती रहीं और फंड के अभाव में कछुए की चाल से कार्य की गति चलती रही. फंड मिलने के बाद साल 2015 से काम में गति आई और पहले चरण में नदी के पश्चिम आसनपुर कुपहा को पूरब के सरायगढ़ से जोड़ने के लिए काम शुरू हुआ. आसनपुर कुपहा में ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर में कोसी नदी पर बने सड़क पुल के समानांतर रेलपुल बना. पटरियां बिछाई गईं और 13 अगस्त को सीआरएस का निरीक्षण हुआ. रेलपुल सहित निर्मली से सरायगढ़ तक के 22 KM लंबे रेलखंड परियोजना की प्रारंभिक स्वीकृति 323.41 करोड़ थी. जो समय के साथ बढ़कर 516.02 करोड़ रुपये हो गई है.अभी आसनपुर कुपहा हॉल्ट को निर्मली स्टेशन से जोड़ना बाकी है. 86 वर्षों के बाद इस क्षेत्र में ट्रेन की सीटी सुनायी दी. जिससे लोगों में खुशी का माहौल है.
क्षेत्र के लोगों के अनुसार, साल 2008 में कुसहा त्रासदी में सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पूरी तरह ध्वस्त हो गया था. तब तक इस रेलखंड पर मीटरगेज की ही पटरियां थीं. मेगा ब्लॉक लेकर सहरसा जंक्शन की ओर से क्रमवार रूप से ब्रॉडगेज पर रेलगाड़ी आगे पहुंचती रहीं. पहले सहरसा सुपौल से जुड़ा. फिर सरायगढ़ से. 14 अगस्त को ही सरायगढ़ से आगे राघोपुर तक का भी सीआरएस निरीक्षण कर लिया गया है. सीआरएस ने नारियल फोड़ और रेलगाड़ी दौड़ा निरीक्षण किया. सब ओके पाया गया. अब इसके आगे 48 KM दूर फारबिसगंज तक ब्रॉडगेज बिछाया जा रहा है. सीआरएस CONC शैलेश कुमार ने बताया कि पश्चिम में निर्मली मिथिला के झंझारपुर होते हुए सीधा दरभंगा से जुड़ेगा और पूरब में सरायगढ़ होते हुए सीमांचल के फारबिसगंज से. दोनों ही ओर योजनाओं पर काम हो रहा है. यदि योजनाएं शीघ्र पूरी हो गई तो कोसी एक बार फिर मिथिला और सीमांचल से सीधा जुड़ जायेगा. कई शहरों के बीच की दूरी अप्रत्याशित रूप से कम हो जाएगी.
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