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This Article is From Jun 21, 2013

बड़े बांध भी उत्तराखंड में तबाही की बड़ी वजह : एक्शनएड

नई दिल्ली: उत्तराखंड के पांच जिलों में मानसून से हुई भारी तबाही से लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। स्थिति अब भी भयावह बनी हुई है। लोगों के घर और जानवर बह गए हैं। कई सड़कें गायब हो चुकी हैं और लगभग 50 हजार श्रद्धालु अभी भी फंसे हुए हैं। यह बात एक्शनएड के उत्तराखंड के रीजनल मैनेजर देबब्रत पात्रा ने कही। उन्होंने कहा कि राज्य में बने बड़े बांध भी इस त्रासदी के कारण हो सकते हैं।  

पात्रा ने बताया कि एक्शनएड की सहयोगी संस्थाओं के लोगों ने बताया है कि केदारनाथ में अब भी पांच हजार लोग लापता हैं, जिनके मारे जाने की आशंका है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें कहां ढूंढा जाए और कहां जाकर बचाया जाए। आने वाले दिनों में और बारिश होने से स्थिति और खराब होने की आशंका है। उन्होंने यह भी कहा कि पांच महीने बाद यहां कड़ाके की ठंड शुरू हो जाएगी, यदि तब तक राहत और पुनर्वास के काम युद्धस्तर पर नहीं हुए तो उनके रहने, खाने और गर्म कपड़ों की भी भारी समस्या देखने को मिलने लगेगी। एक्शनएड इस क्षेत्र में अपनी सहयोगी संस्थाओं के साथ मिलकर हालिया जरूरतों की समीक्षा कर रहा है।

एक्शनएड इंडिया की पोलिसी डायरेक्टर सहजो सिंह ने कहा कि बड़ी संख्या में वनों को काटना, और बड़ी बड़ी निर्माण परियोजनाओं खासकर बड़े बांधों और जल-बिजली परियोजनाओं के चलते इस क्षेत्र की भू संरचना कमजोर हुई है। पूरे राज्य में जिस तीव्रता से बांधों का निर्माण किया जा रहा है, वह निश्चित तौर पर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि इन बांधों के निर्माण के चलते गंगा की सहायक नदियों अलकनंदा, भागीरथी और मंदाकिनी के किनारों पर बसे सैकड़ों गांवों पर यह खतरा लगातार मंडरा रहा है।

सहजो सिंह ने कहा कि तीन साल पहले सीएजी रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि राज्य में जिस तरह 200 से अधिक जल बिजली परियोजनाओं को चालू करने और इसके लिए बड़े स्तर पर जंगलों को काटने का काम चल रहा है और पर्यावरण के नियमों को धता बताया जा रहा है, ऐसे में बाढ़ की स्थिति में भारी तबाही हो सकती है।  

एक्शनएड इस क्षेत्र में अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर बचाव कार्यों में लगा है। साथी संगठन कठिन इलाकों में जाकर राहत कार्यों में लगे हैं। साथ ही प्रभावित क्षेत्र में तत्काल और आगामी जरूरतों की भी समीक्षा की जा रही है। संचार उपकरणों के अब भी सही से काम ना करने के चलते और सड़कों का कोई अता-पता न होने के चलते अब भी कई संगठनों से संपर्क नहीं हो पा रहा है।

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