एक चुनाव निशान ऐसा भी है जो पहले चुनाव से लेकर अब तक मौजूद है...

एक चुनाव निशान ऐसा भी है जो पहले चुनाव से लेकर अब तक मौजूद है...

1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने हाथी चुनाव चिन्‍ह को अपनाया

नई दिल्‍ली:

सपा में घमासान के बीच पार्टी के चुनाव निशान साइकिल पर दावेदारी के लिए अखिलेश खेमे और मुलायम खेमे में जंग छिड़ी हुई है. इन सबके चलते एक बार फिर पार्टियों के चुनाव चिन्‍ह का मसला सुर्खियों का सबब बन गया है. इस पृष्‍ठभूमि में यदि देखा जाए तो एक चुनाव निशान ऐसा भी है जो आजादी के बाद पहले आम चुनाव से लेकर आज तक किसी न किसी रूप में किसी सियासी दल के पास मौजूद रहा है. यह चुनाव चिन्‍ह 'हाथी' है जोकि 1952 से लेकर अब तक किसी न किसी पार्टी का चुनाव निशान रहा है. 1984 में इसको बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपनाया. तब से यह इस दल का निशान है.

सबसे पहले 1952 और 1957 के आम चुनाव में यह बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की पार्टी आल इंडिया शेड्यूल कास्‍ट फेडरेशन का चुनाव चिन्‍ह था. 1962 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) के पास यह निशान था. इसके अलावा अलग-अलग दौर में कई क्षेत्रीय दलों नगालैंड पीपुल्‍स पार्टी, सिक्किम संग्राम परिषद, पीएमके, असम गण परिषद के पास भी यह निशान रहा है.

जब इंदिरा गांधी ने इस विकल्‍प को नहीं चुना...
देश में आपातकाल (1975-77) के बाद जब 1977 में हुए चुनावों कांग्रेस पार्टी हार गई तो कांग्रेस में पनपे असंतोष के चलते पार्टी में दोबारा विभाजन हुआ. नतीजतन इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आई) का गठन किया. कांग्रेस (आई) को चुनाव चिन्‍ह 'पंजा' मिला. हालांकि पार्टी के समक्ष तब 'हाथी' और 'साइकिल' सिंबल अपनाने का विकल्‍प मौजूद था लेकिन पार्टी ने 'पंजा' सिंबल को तरजीह दी. उसके बाद से आज तक यही चुनाव चिन्‍ह कांग्रेस का है. समाजवादी पार्टी ने 1992 में 'साइकिल' सिंबल को अपनाया.


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