झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के लिए यह विधानसभा चुनाव काफी अहम है. राज्य अलग होने के बाद बाबूलाल मरांडी BJP के नेता के रूप में मुख्यमंत्री बने थे. इस विधानसभा चुनाव में बाबूलाल ने सभी 81 सीटों पर अपनी पार्टी JVM (झारखंड विकास मोर्चा ) के प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है. बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक जीवन उतार चढ़ाव से भरा रहा है. राज्य के पहले मुख्यमंत्री रह चुके बाबूलाल मरांडी 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं.
61 वर्षीय बाबूलाल मरांडी का जन्म गिरिडीह जिले के कोदाईबांक नामक गाँव में हुआ था. 1998 के लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन को चुनाव में हरा कर बाबूलाल मरांडी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली थी. 1999 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने शिबू सोरेने की पत्नी रूपी सोरेन को दुमका लोकसभा सीट से चुनाव में हराया था जिसके बाद उन्हें केंद्र के अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बनाया गया था. 2000 में राज्य अलग होने के बाद 28 महीने तक बाबूलाव मरांडी राज्य के मुख्यमंत्री रहे. सहयोगी दलों के विरोध के बाद उन्हें अपने पद को छोड़ना पड़ा था.
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2006 में बाबूलाल मरांडी ने BJP से अलग हो कर अपनी पार्टी JVM झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया था. 2009 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी को 11 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 के विधानसभा चुनाव में JVM के 8 विधायक चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन बाद में 6 विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. हालांकि 2014 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी स्वयं दोनों ही सीटों से चुनाव हार गए थें.
2019 के लोकसभा चुनाव में भी हार का सामना करने के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी को महागठबंधन से अलग कर लिया है. इस चुनाव में एक बार फिर बाबूलाल मरांडी ने राजधनवार और गिरिडीह सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है. बाबूलाल मरांडी की आदिवासियों के साथ-साथ शहरी मध्यमवर्ग के मतदाताओं पर अच्छी पकड़ मानी जाती रही है.
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