अभयनगर में हर रोज 10:50 पर 52 सेकेंड के लिए रूक जाते हैं लोग
अभयनगर:
देशभक्ति का नायाब उदाहरण पेश करते हुए पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में एक गांव के लोग सप्ताह के हर कामकाजी दिन सुबह 10 बजकर 50 मिनट पर राष्ट्रगान गाने के लिए 52 सेकेंड तक अपना सभी काम रोक देते हैं. घरों में लोग और मोटरसाइकिल, ऑटोरिक्शा या साइकिलों पर सवार या सड़क पर चल रहे राहगीर राष्ट्रगान शुरू होते ही अपनी जगह रूक कर खड़े हो जाते हैं. इस खास घंटे में सरकारी अभयनगर प्राथमिक स्कूल के बच्चे 52 सेकेंड का राष्ट्रगान गाते हैं तो लाउडस्पीकर के जरिए इसकी आवाज पास के इलाके तक भी पहुंचती है. स्कूल के प्रधानाध्यापक शफीकुल इस्लाम ने बताया, ‘‘हमने सोचा कि इससे छात्रों और लोगों में देशभक्ति बढ़ेगी. हमने ग्रामीणों से कहीं भी रहने पर स्कूल के अपने बच्चों के साथ राष्ट्रगान गाने का अनुरोध किया.’’
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इस्लाम ने बताया कि स्कूल की इमारत के पास एक लाउडस्पीकर लगाया गया है और इसके जरिए राष्ट्रगान की आवाज दूर-दूर तक पहुंचती है. गांव के 50 वर्षीय किसान मैजुद्दीन बिस्वास ने बताया, ‘‘बुधवार को हम तीन लोग सिर पर अनाज लेकर स्कूल के पास से गुजर रहे थे. लाउडस्पीकर पर राष्ट्रगान सुनाई पड़ते ही हम वहीं रूक गए और हम भी गाने लगे. हमें यह अच्छा लगता है.’’
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स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया कि स्कूल में दो लाउडस्पीकर और दो साउंड बॉक्स हैं. उन्होंने कहा कि कुछ और लाउडस्पीकर लगाने की योजना है और इसके लिए रकम की व्यवस्था की जा रही है. उन्होंने कहा कि स्कूल में 115 छात्र हैं और इनमें से अधिकतर बेहद गरीब परिवारों के हैं.
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उन्होंने कहा कि स्कूल को 2012 में निर्मल विद्यालय पुरस्कार और 2016 में शिशुमित्र पुरस्कार सहित कुछ सरकारी पुरस्कार मिल चुका है.
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इस्लाम ने बताया कि स्कूल की इमारत के पास एक लाउडस्पीकर लगाया गया है और इसके जरिए राष्ट्रगान की आवाज दूर-दूर तक पहुंचती है. गांव के 50 वर्षीय किसान मैजुद्दीन बिस्वास ने बताया, ‘‘बुधवार को हम तीन लोग सिर पर अनाज लेकर स्कूल के पास से गुजर रहे थे. लाउडस्पीकर पर राष्ट्रगान सुनाई पड़ते ही हम वहीं रूक गए और हम भी गाने लगे. हमें यह अच्छा लगता है.’’
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स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया कि स्कूल में दो लाउडस्पीकर और दो साउंड बॉक्स हैं. उन्होंने कहा कि कुछ और लाउडस्पीकर लगाने की योजना है और इसके लिए रकम की व्यवस्था की जा रही है. उन्होंने कहा कि स्कूल में 115 छात्र हैं और इनमें से अधिकतर बेहद गरीब परिवारों के हैं.
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उन्होंने कहा कि स्कूल को 2012 में निर्मल विद्यालय पुरस्कार और 2016 में शिशुमित्र पुरस्कार सहित कुछ सरकारी पुरस्कार मिल चुका है.
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