यह ख़बर 10 फ़रवरी, 2012 को प्रकाशित हुई थी

जन्मतिथि विवाद : जनरल सिंह ने वापस ली अर्जी

खास बातें

  • कोर्ट ने सेनाप्रमुख को अपनी अर्जी वापस लेने की सलाह दी थी, और कहा था कि अब इस मामले में उनका दखल उचित नहीं होगा।
नई दिल्ली:

सेनाप्रमुख जनरल वीके सिंह की जन्मतिथि से जुड़े विवाद में जनरल ने अपनी याचिका को वापस ले लिया है, और सुप्रीम कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया है। इससे पहले शुक्रवार सुबह केन्द्र सरकार द्वारा अपना 30 दिसंबर का सेनाप्रमुख की अर्जी खारिज करने का फैसला वापस लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सेनाप्रमुख से सवाल किया था कि क्या वह अपनी अर्जी वापस लेना चाहेंगे, या कोर्ट मामले में अपना फैसला सुना दे। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जवाब देने के लिए दोपहर दो बजे तक का वक्त दिया था। कोर्ट का कहना था कि सरकार द्वारा अपना फैसला वापस ले लिए जाने के बाद अब इस मामले में कोर्ट का दखल उचित नहीं होगा।

वैसे अब यह तय हो गया है कि सेनाप्रमुख की जन्मतिथि 10 मई, 1950 ही मानी जाएगी, और उन्हें इसी वर्ष मई में सेवानिवृत्त होना पडेगा। वैसे अटकलें यह भी लगाई जा रही हैं कि वह अब अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक उन्होंने सरकार और जनरल, दोनों की राय लेकर ही मामले का निपटारा करवाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई के दौरान सेनाप्रमुख से यह भी पूछा था कि उन्होंने यूपीएससी में अपनी जन्मतिथि ठीक क्यों नहीं करवाई। कोर्ट ने साथ ही यह भी साफ किया कि हमें सेनाप्रमुख की ईमानदारी पर कोई शक नहीं है, और उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। यही नहीं, शीर्ष न्यायालय ने कार्यकाल के आखिरी समय में यह मुद्दा उठाने के लिए सेनाप्रमुख की सराहना भी की। कोर्ट के मुताबिक इस मसले का हल शांतिपूर्ण ही होना चाहिए।

गौरतलब है कि 30 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सेना प्रमुख की अर्जी को खारिज करने के सरकार के तरीके पर सवाल खड़े किए थे। साथ ही कोर्ट ने सरकार से उन दस्तावेजों को पेश करने के लिए भी कहा था, जिनके आधार पर जनरल की जन्मतिथि वर्ष 1950 मानी जा रही है।

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दरअसल रक्षा मंत्रालय ने एटॉर्नी जनरल की सलाह पर 21 जुलाई, 2011 को निर्देश दिया था कि जनरल वीके सिंह की जन्मतिथि 1950 मानी जाए, जिसके खिलाफ जनरल ने वैधानिक शिकायत दर्ज कराई थी। बीते 30 दिसंबर को फिर एटॉर्नी जनरल की सलाह पर ही सरकार ने शिकायत को खारिज कर दिया था। ऐसे में जनरल के पास सुप्रीम कोर्ट जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था।