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This Article is From Jan 13, 2017

अखिलेश यादव की चाहत, कांग्रेस के साथ समझौते के लिए डिंपल बनें 'दूत' : सूत्र

अखिलेश यादव की चाहत, कांग्रेस के साथ समझौते के लिए डिंपल बनें 'दूत' : सूत्र
टीवी विज्ञापनों में अखिलेश और डिंपल साथ दिखाई देते हैं. (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: एक तरफ जहां समाजवादी पार्टी में अस्तित्व बचाने के लिए बाप-बेटे के बीच जंग छिड़ी हुई है, वहीं इस रस्साकशी से दूर यादव परिवार की एक बहु यूपी की राजनीति का मजबूत व्यक्तिव बन कर उभर रही हैं. हालांकि यह बहु 2012 में लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में सपा का प्रतिनिधित्व कर रही है, मगर अपनी शांत छवि के कारण सुर्खियों में बहुत कम रही है. लेकिन शांत और सौम्य बहु वाली छवि से निकल यह नेता यूपी के चुनावी दंगल में दो दिग्गजों को जोड़कर चुनावी समीकरण को उल्टफेर करने में लगी है.

जी हां, बात हो रही है कन्नौज से सांसद और यूपी के मुख्यमंत्री की पत्नी डिंपल यादव की. डिंपल यादव संसद से लेकर सार्वजनिक मंचों पर बहुत कम बोलती देखी गई हैं. लेकिन अब वही कम बोलने वाली डिंपल कांग्रेस से लगातार संवाद कर कांग्रेस-अखिलेश का गठबंधन कराने में जुटी हुई हैं.

डिंपल, कांग्रेस की प्रियंका गांधी के संपर्क में हैं और लगातार संवाद कायम कर दोनों के बीच चुनावी तालमेल करने में जुटी हैं. और अब तो आलम यह है कि अखिलेश के चुनाव प्रचार की कमान भी खुद उन्होंने अपने हाथों में ले ली है.

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कांग्रेस की विधायक आराधना मिश्रा डिम्पल के बारे में कहती हैं, 'वह पढ़ीलिखी, विचारशील, विकासोन्मुखी, महिला हैं और चुनावों में उनका योगदान बहुत ही अहम है.'

सपा के सूत्र कहते हैं कि डिम्पल एक कुशल दूत के रूप में अपनी भूमिका निभा रही हैं. लोग तो यहां तक कहते हैं कि अगर कांग्रेस के साथ उनका तालमेल हो जाता है तो डिम्पल, प्रियंका गांधी के साथ चुनाव प्रचार में नज़र आएंगी. सूत्रों के मुताबिक, अबकी बार डिंपल को लोग अखिलेश के साथ बड़े स्‍टार प्रचारक के रूप में देखना चाहते हैं.

यूपी में कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष राज बब्‍बर ने भी एक इंटरव्‍यू में कहा था कि सब चाह रहे हैं कि राहुल गांधी, अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी और डिंपल यादव सभी एक मंच पर दिखें. उधर, कांग्रेस में मांग उठ रही है कि यूपी में स्टार प्रचारक को तौर पर प्रियंका गांधी कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करें. 

डिंपल यादव (39) यदि स्‍टार प्रचारक के रूप में उभरती हैं तो यह उनके लिए सियासत में एक कदम आगे बढ़ने की बात होगी. उल्‍लेखनीय है कि 2009 में जब डिंपल यादव पहली बार चुनावी मैदान में उतरी थीं तब उनको बेहद गंभीरता से नहीं लिया गया था और वह उस उपचुनाव में फीरोजाबाद सीट से राज बब्‍बर से हार गई थीं.

उसके बाद 2012 में अखिलेश यादव ने मुख्‍यमंत्री बनने के बाद जब कन्‍नौज संसदीय सीट छोड़ी तो उपचुनाव में डिंपल को कोई चुनौती देने वाला नहीं था. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह बीजेपी की लहर के बावजूद अपनी कन्‍नौज सीट को बचाने में कामयाब रहीं और निकट मुकाबले में जीतीं.

 

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