बहुविवाह और निकाह हलाला के खिलाफ दायर याचिकाओं के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ( AIMPLB) ने भी सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की है. अर्जी में बोर्ड ने कहा कि बहुविवाह, निकाह हलाला, शरिया कोर्ट, निकाह मुताह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं पर सुनवाई न करे. बोर्ड ने कहा है कि 1997 में सुप्रीम कोर्ट पहले ही तय कर चुका है कि पर्सनल लॉ को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर परखा नहीं जा सकता है. कोर्ट ने कहा था कि अदालत इन पर सुनवाई नहीं कर सकती और ये विधायिका के क्षेत्राधिकार का मामला है. बोर्ड ने कहा है कि ये नियम पवित्र कुरान और हदीस से लिए गए हैं. आपको बता दें कि इस संबंध में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय समेत कुछ अन्य याचिकाएं दाखिल की गई हैं. याचिकाओं में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए, क्योंकि यह बहु विवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है. भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधान सभी भारतीय नागरिकों पर बराबरी से लागू हों. याचिका में यह भी कहा गया है कि 'ट्रिपल तलाक' आईपीसी की धारा 498A के तहत एक क्रूरता है.
याचिका में आगे कहा गया है कि निकाह हलाला आईपीसी की धारा 375 के तहत रेप है और बहुविवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत एक अपराध है. याचिका में कहा गया है कि कुरान में बहुविवाह की इजाजत इसलिए दी गई है ताकि उन महिलाओं और बच्चों की स्थिति सुधारी जा सके, जो उस समय लगातार होने वाले युद्ध के बाद बच गए थे और उनका कोई सहारा नहीं था पर इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी वजह से आज के मुसलमानों को एक से अधिक महिलाओं से विवाह का लाइसेंस मिल गया है.
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