आगरा:
कहते हैं देरी से मिला न्याय, न्याय नहीं होता, लेकिन ज़रा सोचिए किसी को खुद को नाबालिग साबित करने में ही 38 साल लग जाएं तो? ऐसे ही एक शख़्स को 13 साल की जेल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने रिहा किया है।
आगरा के एक गांव के रहने वाले रामनारायण की जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा कानून से लड़ते बीता। सन 1976 में वो नाबालिग था, ये बात साबित करने में उसे 38 साल लग गए। इतना ही नहीं 13 साल जेल में भी बिताने पड़े।
दरअसल, रामनारायण को पुलिस ने 1976 में हत्या के एक मामले में गिरफ्तार किया था। वो लगातार नाबालिग होने का दावा करता रहा, लेकिन ना तो पुलिस और ना ही अदालत ने उसकी बात सुनी। उसे जमानत तो मिल गई पर 2004 में उम्रक़ैद की सजा सुनाई गई। तब से वो जेल में रहा।
इस कठिन वक्त में पत्नी ने किसी तरह बच्चों को पाला। परिवार बिखर गया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां रामनारायण को इंसाफ मिला। कोर्ट ने नाबालिग ठहराते हुए रिहा कर दिया।
इस मामले में एमिक्स क्यूरी (कोर्ट के मित्र) संतोष त्रिपाठी कहते हैं, रामनारायण रिहा तो हो गया पर जिंदगी के बेशकीमती 13 साल गंवा कर, जिनका कोई मुआवजा भी नहीं मिलना है।
आगरा के एक गांव के रहने वाले रामनारायण की जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा कानून से लड़ते बीता। सन 1976 में वो नाबालिग था, ये बात साबित करने में उसे 38 साल लग गए। इतना ही नहीं 13 साल जेल में भी बिताने पड़े।
दरअसल, रामनारायण को पुलिस ने 1976 में हत्या के एक मामले में गिरफ्तार किया था। वो लगातार नाबालिग होने का दावा करता रहा, लेकिन ना तो पुलिस और ना ही अदालत ने उसकी बात सुनी। उसे जमानत तो मिल गई पर 2004 में उम्रक़ैद की सजा सुनाई गई। तब से वो जेल में रहा।
इस कठिन वक्त में पत्नी ने किसी तरह बच्चों को पाला। परिवार बिखर गया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां रामनारायण को इंसाफ मिला। कोर्ट ने नाबालिग ठहराते हुए रिहा कर दिया।
इस मामले में एमिक्स क्यूरी (कोर्ट के मित्र) संतोष त्रिपाठी कहते हैं, रामनारायण रिहा तो हो गया पर जिंदगी के बेशकीमती 13 साल गंवा कर, जिनका कोई मुआवजा भी नहीं मिलना है।
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