नोटबंदी से जुड़ी आरटीआई सामने आने के बाद अब इस मामले में आधिकारिक सूत्रों ने बिल्कुल अलग दावा किया है. आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि सरकार के 500 और 1,000 के नोटों को बंद करने के प्रस्ताव को भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रामा सुब्रमण्यम गांधी ने केंद्रीय बैंक के बोर्ड के समक्ष रखा था, जिसने ‘व्यापक जनहित' में प्रस्ताव का समर्थन किया था. सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि इस मामले में हालांकि कुछ निदेशकों ने नोटबंदी का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर कुछ समय के लिये नकारात्मक प्रभाव और समाज के कुछ वर्गों को आने वाली मुश्किलों को लेकर चिंता जताई थी. आर गांधी की ओर से रिजर्व बैंक के बोर्ड को 8 नवंबर, 2016 को दिए गए प्रस्ताव में कहा गया था कि यह कदम इसलिए जरूरी है क्योंकि एक दिन पहले आए वित्त मंत्रालय के पत्र में केंद्रीय बैंक को सलाह दी गई थी कि अधिक नकदी की वजह से ‘कालाधन' बढ़ रहा है.
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आपको बता दें कि डेक्कन हेराल्ड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक रबीआई बोर्ड की बैठक नोटबंदी के ऐलान के बस ढाई घंटे पहले शाम 5 बज कर तीस मिनट पर हुई थी और बोर्ड की मंज़ूरी मिले बिना प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान कर दिया था. आरबीआई ने 16 दिसंबर, 2016 को सरकार को प्रस्ताव की मंज़ूरी भेजी यानी ऐलान के 38 दिन बाद आरबीआई ने ये मंज़ूरी भेजी है. आरटीआई ऐक्टिविस्ट वेंकटेश नायक द्वारा जुटाई गई इस जानकारी में और भी अहम सूचनाएं हैं. इसके मुताबिक वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव की बहुत सारी बातों से आरबीआई बोर्ड सहमत नहीं था. मंत्रालय के मुताबिक 500 और 1000 के नोट 76% और 109% की दर से बढ़ रहे थे जबकि अर्थव्यवस्था 30% की दर से बढ़ रही थी. आरबीआई बोर्ड का मानना था कि मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए बहुत मामूली अंतर है. आरबीआई के निदेशकों का कहना था कि काला धन कैश में नहीं, सोने या प्रॉपर्टी की शक्ल में ज़्यादा है और नोटबंदी का काले धन के कारोबार पर बहुत कम असर पड़ेगा. इतना ही नहीं, निदेशकों का कहना था कि नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा.
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नोटबंदी से जुड़ी यह खबर सामने आने के बाद ही आधिकारिक सूत्रों ने यह स्पष्टीकरण दिया है. सूत्रों ने दावा किया कि केंद्रीय बैंक ने इस प्रस्ताव को सरकार को 8 नवंबर, 2016 को ही भेज दिया था. बैठक के ब्योरे का जिक्र करते हुए सूत्रों ने कहा कि कुछ निदेशकों का कहना था कि नोटबंदी हालांकि, एक सराहनीय कदम है लेकिन इससे मौजूदा वित्त वर्ष में जीडीपी पर कुछ समय के लिये नकारात्मक असर पड़ेगा. सूत्रों ने कहा कि सदस्य अपनी बात रखते हैं जो ब्योरे में दर्ज होते हैं. लेकिन सदस्यों के मत समूचे रिजर्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। सदस्यों के उनके विचार किसी सदस्य को प्रस्ताव को पूरी तरह स्वीकार करने के रास्ते में अड़ंगा नहीं बनते हैं. (इनपुट-भाषा से भी)
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