डीएमके नेता कनिमोझी ने रविवार को ट्विटर पर हिंदी भाषा को लेकर अपने साथ हुए भेदभाव पर सवाल उठाया था, जिसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने इस मुद्दे पर उनका समर्थन किया है. कनिमोझी ने अपने साथ चेन्नई एयरपोर्ट पर हुई एक घटना साझा करते हुए सवाल पूछा था कि 'क्या हिंदी आना ही भारतीय होने की निशानी है?' इसपर चिदंबरम ने ट्वीट कर लिखा कि 'डीएमके सांसद कनिमोझी के साथ चेन्नई एयरपोर्ट पर हुई अप्रिय घटना बहुत असामान्य नहीं है.' उन्होंने कहा, 'मैंने भी सरकारी अफसरों और आम नागरिकों से भी ऐसे ही ताने सुने हैं. कभी फोन पर तो कभी सामने से ही मुझसे हिंदी में बोलने को कहा जाता था.'
बता दें कि रविवार को तुतीकुडी की 53 साल की सांसद कनिमोझी ने ट्विटर पर बताया कि चेन्नई एयरपोर्ट पर उनसे Central Industrial Security Force (CISF) की एक अफसर ने उनसे पूछा था कि 'क्या वो भारतीय हैं?' कनिमोझी ने बताया कि 'ऑफिसर से मैंन बोला कि वो मुझसे तमिल या फिर इंग्लिश में बात करें क्योंकि मुझे हिंदी नहीं आती, इसपर उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं भारतीय हूं?' डीएमके सांसद ने आगे कहा कि 'मैं जानना चाहती हूं कि आखिर कबसे भारतीय होना हिंदी जानने के बराबर हो गया है?'
इसपर चिदंबरम ने सोमवार को एक साथ कई ट्वीट किए, जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार को यह 'सुनिश्चित करना चाहिए' कि उसके कर्मचारी हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में सक्षम होने चाहिए. उन्होंने लिखा, 'अगर सरकार हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को राष्ट्रीय भाषा बनाए रखने को लेकर प्रतिबद्ध है तो उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके कर्मचारी दोनों भाषाओं में सक्षम हों.' उन्होंने लिखा, 'गैरी हिंदी भाषी कर्मचारी केंद्र में भर्ती के बाद तुरंत कामचलाऊ और बोली जा सकने जितनी हिंदी सीख लेते हैं. फिर हिंदी भाषी कर्मचारी कामचलाऊ और बोली जा सकने जितनी अंग्रेजी क्यों नहीं सीख सकते?'
If the Central government is genuinely committed to both Hindi and English being the official languages of India, it must insist that all central government employees are bilingual in Hindi and English.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) August 10, 2020
कनिमोझी के ट्वीट के बाद फिर क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर राजनीति शुरू हो गई है. इसके पहले नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन भाषाओं को लेकर बनाए गए नियम पर तमिलनाडु के प्रधानमंत्री ईके पलानीसामी ने विरोध जताते हुए कहा था कि वो इसे राज्य में लागू नहीं करेंगे, क्योंकि यह नियम क्षेत्रीय भाषाओं के लिहाज से दुखद है.
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