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This Article is From Jun 20, 2014

आखिर कैसे पूरा होगा सस्ते घरों का सपना

आखिर कैसे पूरा होगा सस्ते घरों का सपना
प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली से ऋचा जैन कालरा:

प्रॉपर्टी की दुनिया में सस्ते और किफायती घरों की भारी कमी है। बिल्डरों का जोर महंगे आलीशान मकान बनाने पर रहा है, जिसे लक्ज़री सेग्मेंट भी कहा जता हैं। इसे विडंबना ही कहेंगे कि हाउसिंग के जिस क्षेत्र में घरों की सबसे ज्यादा जरूरत है उसमें रियल एस्टेट के नामी-गिरामी बिल्डर दिलचस्पी कम दिखाते हैं।

बात हो रही है 20 लाख से कम कीमत के मकानों की, जो कि किफायती घरों की श्रेणी में आते हैं। भारत में लगभग 2 करोड़ घरों की कमी है और इनमें 95 फीसदी घरों की जरूरत आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग (इडब्ल्यूएस) और कम आय वाले तबके (एलआईजी) को है। बिल्डर किफायती घर बनाने वाले निर्माण से इसलिए दूर रहे हैं, क्योंकि यहां प्रॉफिट मार्जिन महंगे घरों के मुकाबले कम रहता है। जमीन की बढ़ती कीमत निर्माण की लागत में हो रही बढ़ोतरी से किफायती मकानों का निर्माण अधिकतर बिल्डरों को फायदे का सौदा नहीं लगता।

मोदी सरकार के शहरी विकास और हाउसिंग एजेंडे में सबके लिए घर का मुद्दा प्राथमिकता के तौर पर शामिल किया गया है। हर परिवार को 2022 तक घर देने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है। इस संबंध में किफायती मकानों को बनाने वाले बिल्डरों को बढ़ावा देने की जरूरत है। जरूरी मंजूरियों में तेजी निवेश के लिए बेहतर माहौल और सड़क परिवहन के साधन बिजली, पानी जैसी आवश्यक मूल सुविधाओं को मुहैया कराकर सरकार किफायती सेक्टर में मकान बनाने वाले बिल्डरों को प्रोत्साहित कर सकती है। बिल्डर आशा भरी निगाहों से सरकार की ओर देख रहे हैं।

एनडीटीवी इंडिया पर प्रसारित होने वाले प्रॉपर्टी इंडिया शो में हिस्सा लेने आए कंपनी के डायरेक्टर राघव गर्ग ने कहा है कि छोटे और किफायती घरों के निर्माण में आने वाली दिक्कतें और परेशानियां किसी बड़े प्रोजेक्ट से कम नहीं हैं, पर सस्ते घरों से बिल्डर को मुनाफा कम मिलता है। जमीन की लागत से लेकर मंजूरियों में उतना ही मेहनत करनी पड़ती है, जितना बड़े घरों के लिए। सरकार को इस सेग्मेंट को बिल्डरों के लिए और आकर्षक बनाने की जरूरत है।

तो क्या किफायती घरों के निर्माण में कम मुनाफे की तकरीर ही सबसे बड़ी अड़चन है? जानी-मानी रियल इस्टेट कंसलटेंट डिलॉइट लो इनकम हाउसिंग के लीड विक्रम जैन ने प्रॉपर्टी इंडिया में बातचीत में तस्वीर का दूसरा पहलू सामने रखा। उनका कहना है कि लो इनकम हाउसिंग से बिल्डर मुनाफा कमा रहे हैं और इसी के चलते 100 बिल्डर 23 शहरों में लगभग 78000 मकानों के निर्माण के काम को हाथ में ले चुके हैं। अगर यह मुनाफे का सौदा न होता तो ये मुमकिन नहीं था।

किफायती घर बनाने के मामले में आगे आई है महिंद्र ग्रुप की रियल इस्टेट कंपनी महिंद्रा लाइफस्पेसेज, जो कि दो बड़े महानगरों मुंबई और चेन्नई के पास किफायती मकानों का निर्माण शुरू करने जा रही है। ये कंपनी 20 लाख से कम कीमत की लागत में मुंबई के पास बोइसर और चेन्नई के पास अवड़ी में सस्ते और छोटे घरों का निर्माण करेगी।

खास यह है कि कंपनी किफायती घरों के सेग्मेंट को एक बड़े व्यावसायिक मौके की तरह देखती है। यह बात कंपनी की प्रमुख अनीता अर्जुनदास ने मीडिया से कही। उनका मानना है कि सस्ते घर बनाना समाज सेवा नहीं है और कम लागत वाले मकानों से भी कमाई की जा सकती है।

इससे पहले टाटा समूह ने कई साल पहले मुंबई के पास बोइसर में सस्ते घरों की योजना शुरू की, जिसे खरीददारों ने ज़बरदस्त तरीके हाथों-हाथ लिया। उनके मुताबिक यह कोशिश इसलिए कामयाब रहेगी, क्योंकि वे इसे मैन्यूफैक्चरिंग माइंड सेट के साथ लागू करेंगे। इसका मतलब है प्री फैबरीकेटेड स्ट्रक्चरों को निर्माण क्षेत्र में जमाकर निर्माण को गति देना, लेकिन एनसीआर के गाज़ियाबाद में सस्ते घर बनाने वाले बिल्डरों में से एक गर्ग समूह के राघव गर्ग के मुताबिक, इस तरह की तकनीकी की इजाज़त बड़े बिल्डरों की जेब ही देती है छोटे बिल्डरों की नहीं।

सस्ते घरों के निर्माण के लिए जहां बिल्डरों को और ज्यादा आगे आने की जरूरत है, वहीं सरकार को भी किफायती घरों के निर्माण को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। देश में शहरीकरण जिस रफ्तार से बढ़ रहा है उस लिहाज से आने वाले समय में लाखों करोड़ों लोग ग्रामीण इलाकों से बेहतर जिंदगी की चाहत में शहरों का रुख करेंगे। योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 2031 तक देश के शहरों में आबादी 60 करोड़ तक हो चुकी होगी, जो कि 2011 के मुकाबले 59 फीसदी ज़्यादा होगी। ऐसे में किफायती घर वक्त की मांग है, जिससे मुनाफा कमाना भी मुमकिन है, अगर बिल्डर भारी मुनाफे के मार्जिन की उम्मीद को कम करें। जानकारों का मानना है कि यह लंबे दौर के लिए आकर्षक बिजनेस नीति हो सकती है, जहां मुनाफा हर यूनिट से नहीं यूनिटों की संख्या से तय होगा।

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