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This Article is From Apr 09, 2014

आदर्श घोटाला : अदालत ने पूछा, क्या चव्हाण पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी जरूरी

मुंबई:

बंबई उच्च न्यायालय ने सीबीआई से जानना चाहा है कि आदर्श सोसाइटी घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए क्या मंजूरी लेने की जरूरत थी।

सीबीआई द्वारा दाखिल पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति साधना जाधव ने यह सवाल किया। सीबीआई ने पुनर्विचार याचिका दाखिल कर प्राथमिकी से चव्हाण का नाम हटाने की इजाजत मांगी है। सीबीआई ने यह कदम तब उठाया जब महाराष्ट्र के राज्यपाल के. शंकरनारायणन ने चव्हाण पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।

एजेंसी ने पिछले महीने उस वक्त उच्च न्यायालय का रुख किया था जब निचली अदालत ने जनवरी 2011 में सीबीआई द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी में से चव्हाण का नाम हटाने से इनकार कर दिया था।

चव्हाण एवं 12 अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 120 (बी) के तहत आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था।

न्यायमूर्ति जाधव ने कहा, 'आईपीसी के सामान्य कानून के तहत मुकदमा चलाने के लिए क्या आपको (सीबीआई को) मंजूरी की जरूरत है।' सीबीआई के वकील हितेन वेणेगांवकर ने अदालत को बताया कि आईपीसी के तहत चव्हाण पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की जरूरत थी क्योंकि वह उस वक्त एक विधायक के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजस्व मंत्री थे जब कथित अपराध हुआ।

वेणेगांवकर ने कहा, 'चव्हाण पर आईपीसी की धारा 120 (बी) के तहत मुकदमा चलाने की इजाजत के बगैर एजेंसी उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13 (1) (डी) के तहत स्वतंत्र रुप से मुकदमा नहीं चला सकती।

इसके बाद अदालत ने अशोक चव्हाण और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए इस मामले की सुनवाई 10 जून के लिए स्थगित कर दी।

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