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This Article is From Sep 12, 2015

DUSU चुनाव : छात्र राजनीति में पीछे रह गई आम आदमी पार्टी

DUSU चुनाव : छात्र राजनीति में पीछे रह गई आम आदमी पार्टी
डूसू चुनाव में वोट डालने के लिए कतार में खड़ीं छात्राएं (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: शक्ति की वजह से हम जीवन में ज्यादा पाने की कोशिश करते हैं। इसी वजह से हम पाप कर बैठते हैं। विवेकानंद जी के ये वाक्य आर्ट फैकल्टी के बाहर लगी विवेकानंद जी की मूर्ति के सामने अचानक मुझे याद आ गई।

एबीवीपी ने इस बार भी छात्रसंघ चुनाव में जीत हासिल की और उनके चारों जीते प्रत्याशी विवेकानंद मूर्ति के ऊपर खड़े होकर भगवा फहरा रहे थे। साल भर में शायद यही एक मौका होता है, जब विवेकानंद जी को प्रतीकात्मक रूप से एबीवीपी याद करती है।

एक लाख 35 हज़ार मतदाता वाली दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी ने 4 से 6 हज़ार वोटों के अंतर से एनएसयूआई और सीवीएसएस को हराया। इस बार छात्रसंघ चुनाव में आम आदमी पार्टी की छात्र संगठन छात्र युवा संघर्ष समिति यानि सीवाईएसएस मैदान में उतरी, लेकिन नई राजनीति का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी की स्टूडेंट विंग कोई खास असर छात्रों पर नहीं डाल पाई।

मन बहलाने के लिए गालिब ये ख्याल अच्छा है कि उनकी एक उपाध्यक्ष पद की प्रत्याशी गरिमा राणा 12 हज़ार वोट लेकर दूसरे नंबर पर रही। हालांकि तब भी एबीवीपी के जीते प्रत्याशी सनी डेडा से वह सात हज़ार वोट पीछे रही।

पुलिस लाइन में चल रही मतगणना के तीसरे राउंड में सीवाईएसएस के अध्यक्ष और सचिव पद के प्रत्याशी कुलदीप बिधूड़ी और राहुल राज आर्यन मतगणना स्थल छोड़कर चले गए। बाहर जब उनसे पूछा गया कि क्यों आप जा रहे हैं तो उनका कहना था कि यहां इतनी बुरी हार देखकर घबराहट हो रही है।

दरअसल आम आदमी पार्टी ने अपने सर्वे और भाषणों में दिल्ली की ऐतिहासिक जीत वाले जुमले इतने बार कहे कि सीवाईएसएस के कार्यकर्ता इस बार दिल्ली विधानसभा जैसी राजनीतिक आश्चर्य के लिए तैयार बैठे थे। लेकिन कहावत है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है।

लेकिन सीवाईएसएस ने पहली बार में ही करीब 20 फीसदी वोट लिए है, ये जरूर उनके लिए राहत की बात है, जबकि एबीवीपी और एनएसयूआई के लिए ये खतरे की घंटी है क्योंकि हर बार ये दोनों छात्र संगठन पहली और दूसरी पोजिशन आपस में बांट लेते थे।

हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय में आईसा ने पिछली बार करीब 13 हज़ार वोट लिए थे। इस बार उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है। आईसा के संयुक्त सचिव प्रत्याशी अभिनव को 10 हज़ार वोट मिले।

दिल्ली विश्वविद्यालय चुनाव में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की जमकर धज्जियां उड़ी, लेकिन एक आईसा ही ऐसा छात्र संगठन था जिसने चुनाव प्रचार में रॉक कंसर्ट, बड़ी गाड़ियां और लाखों के होर्डिंग्स नहीं लगवाए। इसके लिए वो जरूर सांत्वना पुरुस्कार के हकदार हैं।

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