पीएम मोदी और शी चिनफिंग
नई दिल्ली:
भारत और चीन की दुनिया भर में धमक है. चीन कई वजहों से वैश्विक पटल पर शीर्ष देशों की फेहरिस्त में शामिल है, तो भारत अपनी विशेषताओं की वजह से काफी तेजी से विकास की राह पर अग्रसर है. यह बात सही है कि कुछ-एक मुद्दे को छोड़ दें तो भारत की तुलना चीन से नहीं की जा सकती. हालांकि, इसका मतलब यह भी नहीं कि चीन ही हर मामले में भारत से आगे है. यह बात सही है कि जब भी कुछ सीखने की बात आती है तो यह कहा जाता है कि भारत की चीन से ये बातें सीखनी चाहिए. मगर आज हम आपको चीन से सीखने की नहीं, बल्कि वह बात बताने जा रहे हैं जो चीन को भारत से सीखने की जरूरत है.
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योगा और भारतीय संस्कृति
भारत को शुरू से ही ऋषि-मुनियों का देश कहा जाता है. यहां प्राचीन काल से ही योग की परंपरा रही है, और यही योगा सामाजिक-संस्कृति का आधार भी रहा है. भारत में योगा का जिस तरह से प्रचार प्रसार हुआ, उसे देखते हुए पूरे विश्व ने इसे अपनाया. यानी योगा के जरिये से भारत दुनिया में अपनी संस्कृति फैला रहा है, मगर चीन इस मामले में पिछड़ जा रहे हैं. योगा के माध्यम से भारत अपने सॉफ्ट पॉवर को विदेशों में भी फैला रहा है. योगा न सिर्फ शारीरिक विकारों को दूर रखने का जरिया है, बल्कि यह संस्कृति का वाहक है. पहले योगा को हिंदू धर्म से जोड़कर देखा जाता था, मगर अब सरकार ने जिस तरह से योगा को गैर-धार्मिक बनाने की कोशिश की है, उसी की वजह से इसे व्यापक स्वीकार्यता मिल रही है. पूरी दुनिया योगा को अपने जीवनशैली में शामिल कर रही है तो इसकी वजह है कि सरकार ने इसे लेकर अपने रूख को स्पष्ट किया है और यह अपनी चीजों को दूसरे के सामने अच्छे तरीके से रख रहे हैं.
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भारतीय हिंदी फिल्में
भारतीय हिंदी फिल्में समाज की संकृति की वाहक रही हैं. भारत में फिल्में जिस तरह से परिवार, समाज और उसकी स्थति को बयां करती हैं, उसकी स्वीकार्यता सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि वेदशों में भी बढ़ रही है. यही वजह है कि आज के समय में भारतीय फिल्में चीन में भी अच्छा बिजनेस कर रही हैं. दरअसल, हिंदी फिल्में भारतीय संस्कृति फैलाने का बेहतर कार्य कर रही है. खुद चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने भी माना है कि भारत की संस्कृति को विदेशों में विस्तार देने में हिंन्दी फिल्म इंडस्ट्री का खासा योगदान साबित हो रहा है. हिंदी फिल्मों परिवार, समाज और संस्कृति का जो इनपुट होता है, उसकी वजह से ही चीने में भी हिंन्दी फिल्मों धमक बढ़ती जा रही है. हिंदी फिल्मों से भारतीय संस्कृति की एक चित्र उभरती है, जो विदेशों में इसकी छवि को बेहतर बनाने का काम करते हैं.
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लोकतंत्र का अध्याय
चीन में एकदलीय तंत्र है. यह बात सही है कि इस तंत्र के होने के बावजूद भी वह अर्थव्यवस्था और विकास के मामले में चीन भारत से कई गुना अधिक आगे है. मगर बहुदलीय लोकतंत्र की अपनी एक खूबसूरती होती है, जिसमें देश की जनता के पास विकल्प होता है. उनके पास चुनने का अधिकार होता है. बहुदलीय लोकतंत्र की खूबसूरती का अंदाजा इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि अगर कोई शासन निरंकुश हो जाती है या फिर लोक कल्याणकारी नीतियों के रास्ते से भटक जाती है, तो एक निश्चित समय के बाद जनता के पास सत्ता से उसे हटाने का विकल्प होता है और फिर किसी और को चुनने का मौका भी. मगर एकदलीय तंत्र में जनता के पास विकल्पों की कमी हो जाती है. इस लिहाज से नागरिकों की दृष्टि से देखें तो चीन के पास भारत से सीखने के लिए यह भी एक विकल्प है.
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योगा और भारतीय संस्कृति
भारत को शुरू से ही ऋषि-मुनियों का देश कहा जाता है. यहां प्राचीन काल से ही योग की परंपरा रही है, और यही योगा सामाजिक-संस्कृति का आधार भी रहा है. भारत में योगा का जिस तरह से प्रचार प्रसार हुआ, उसे देखते हुए पूरे विश्व ने इसे अपनाया. यानी योगा के जरिये से भारत दुनिया में अपनी संस्कृति फैला रहा है, मगर चीन इस मामले में पिछड़ जा रहे हैं. योगा के माध्यम से भारत अपने सॉफ्ट पॉवर को विदेशों में भी फैला रहा है. योगा न सिर्फ शारीरिक विकारों को दूर रखने का जरिया है, बल्कि यह संस्कृति का वाहक है. पहले योगा को हिंदू धर्म से जोड़कर देखा जाता था, मगर अब सरकार ने जिस तरह से योगा को गैर-धार्मिक बनाने की कोशिश की है, उसी की वजह से इसे व्यापक स्वीकार्यता मिल रही है. पूरी दुनिया योगा को अपने जीवनशैली में शामिल कर रही है तो इसकी वजह है कि सरकार ने इसे लेकर अपने रूख को स्पष्ट किया है और यह अपनी चीजों को दूसरे के सामने अच्छे तरीके से रख रहे हैं.
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भारतीय हिंदी फिल्में
भारतीय हिंदी फिल्में समाज की संकृति की वाहक रही हैं. भारत में फिल्में जिस तरह से परिवार, समाज और उसकी स्थति को बयां करती हैं, उसकी स्वीकार्यता सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि वेदशों में भी बढ़ रही है. यही वजह है कि आज के समय में भारतीय फिल्में चीन में भी अच्छा बिजनेस कर रही हैं. दरअसल, हिंदी फिल्में भारतीय संस्कृति फैलाने का बेहतर कार्य कर रही है. खुद चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने भी माना है कि भारत की संस्कृति को विदेशों में विस्तार देने में हिंन्दी फिल्म इंडस्ट्री का खासा योगदान साबित हो रहा है. हिंदी फिल्मों परिवार, समाज और संस्कृति का जो इनपुट होता है, उसकी वजह से ही चीने में भी हिंन्दी फिल्मों धमक बढ़ती जा रही है. हिंदी फिल्मों से भारतीय संस्कृति की एक चित्र उभरती है, जो विदेशों में इसकी छवि को बेहतर बनाने का काम करते हैं.
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