फाइल फोटो
नई दिल्ली:
महज छह दिन के अंदर 20 जवानों की मौत, वो भी लॉइन ऑफ कंट्रोल पर, लेकिन सीमा पार से गोलाबारी में नही बल्कि बर्फीले तूफान और हिमस्खलन से. सुनकर विश्वास नहीं होता लेकिन यही सच्चाई है. ऐसा भी नहीं है कि अब एलओसी पर बर्फबारी की वजह से और मौत नहीं होगी. सेना की मानें तो वो किसी भी हालत में अपनी चौकी नहीं छोड़ सकते भले ही इसकी कीमत उन्हें जान गंवा कर चुकानी पड़े. वजह है सेना पाकिस्तान पर किसी भी सूरते हाल में यकीन नहीं कर सकती क्योंकि एक बार कारगिल के वक्त यकीन किया था, जिसकी कीमत करीब 600 जवानों को जान देकर चुकानी पड़ी. आपको ये बता दें कि कारगिल जंग यानी कि 1999 से पहले भारत और पाकिस्तान की सेना ठंड के दिनों में एक दूसरे पर भरोसा करके दुर्गम इलाकों की ऊंची चौकियां हर साल खाली कर दिया करती थी लेकिन जबसे पाकिस्तान ने धोखा दिया तब से भारतीय सेना ने अपनी चौकियां खाली करना बंद कर दिया.
अब अगर गुरेज की बात करें तो वहां पर दिसंबर के बाद से बर्फबारी की वजह से सड़क मार्ग बंद हो जाता है. वहां पहुंचने का एक मात्र जरिया होता है हेलीकॉप्टर. ऐसा इसलिए क्योंकि भयानक बर्फबारी के कारण चारों ओर सिर्फ बर्फ के पहाड़ ही नजर आते हैं. पूरी की पूरी सीमाई चौकियां बर्फ के नीचे दब जाती हैं. गुरेज के नीरू पोस्ट पर 25 जनवरी को पेट्रोल करने गयी सेना की पूरी पार्टी हिमस्खलन की चपेट में आ गई और किसी को नहीं बचाया जा सका. सोमवार को जब मौसम साफ हुआ तो इन जवानों का शव श्रीनगर लाया जा सका.
इतना ही नहीं, 28 जनवरी को कुपवाड़ा के माछिल सेक्टर में बर्फबारी की जद मे पांच जवान आ गए. बड़ी मुश्किल से इन जवानों को बचाया जा सका, लेकिन मौसम खराब होने की वजह से दो दिन उन्हें विशेष इलाज के लिेए श्रीनगर नहीं लाया जा सका. आज जब श्रीनगर लाया गया तो उनकी जान बचाई नहीं जा सकी. कारगिल जंग के बाद से सेना को ऐसे पोस्ट पर कब्जा बनाए रखना बहुत भारी पड़ रहा है. ये सिर्फ खर्चीला ही नहीं है बल्कि हर साल कई जवानों की जानें भी चली जाती हैं.
ऐसा भी नहीं है कि केवल भारतीय सेना के सामने ऐसी दिक्कत है बल्कि पाकिस्तानी सेना भी ऐसी परेशानी से जूझ रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पाक सेना ने भारतीय सेना से फिर से कहा है कि वो कारगिल से पहले वाले मौखिक समझौते लागू करे जिसके तहत दोनों मुल्कों की सेनाएं सर्दी के मौसम में नीचे के पोस्ट पर चली जाती थी. लेकिन सेना का कहना है कि पाक सेना का इतिहास रहा है कि वह लिखित समझौतों को भी तोड़ती आई है तो मौखिक समझौतों की क्या हालत होगी, इसका तो बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.
बताया जाता है कि पाकिस्तानी सेना भी ऐसी ही परिस्थितियों से जूझ रही है. एक जानकारी के मुताबिक, पाक सेना ने सीजफायर के बाद कई बार ऐसे मौखिक समझौतों को फिर से लागू करने का आग्रह भारतीय सेना से किया है पर भारतीय सेना इसके लिए कतई राजी नहीं है.
अब अगर गुरेज की बात करें तो वहां पर दिसंबर के बाद से बर्फबारी की वजह से सड़क मार्ग बंद हो जाता है. वहां पहुंचने का एक मात्र जरिया होता है हेलीकॉप्टर. ऐसा इसलिए क्योंकि भयानक बर्फबारी के कारण चारों ओर सिर्फ बर्फ के पहाड़ ही नजर आते हैं. पूरी की पूरी सीमाई चौकियां बर्फ के नीचे दब जाती हैं. गुरेज के नीरू पोस्ट पर 25 जनवरी को पेट्रोल करने गयी सेना की पूरी पार्टी हिमस्खलन की चपेट में आ गई और किसी को नहीं बचाया जा सका. सोमवार को जब मौसम साफ हुआ तो इन जवानों का शव श्रीनगर लाया जा सका.
इतना ही नहीं, 28 जनवरी को कुपवाड़ा के माछिल सेक्टर में बर्फबारी की जद मे पांच जवान आ गए. बड़ी मुश्किल से इन जवानों को बचाया जा सका, लेकिन मौसम खराब होने की वजह से दो दिन उन्हें विशेष इलाज के लिेए श्रीनगर नहीं लाया जा सका. आज जब श्रीनगर लाया गया तो उनकी जान बचाई नहीं जा सकी. कारगिल जंग के बाद से सेना को ऐसे पोस्ट पर कब्जा बनाए रखना बहुत भारी पड़ रहा है. ये सिर्फ खर्चीला ही नहीं है बल्कि हर साल कई जवानों की जानें भी चली जाती हैं.
ऐसा भी नहीं है कि केवल भारतीय सेना के सामने ऐसी दिक्कत है बल्कि पाकिस्तानी सेना भी ऐसी परेशानी से जूझ रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पाक सेना ने भारतीय सेना से फिर से कहा है कि वो कारगिल से पहले वाले मौखिक समझौते लागू करे जिसके तहत दोनों मुल्कों की सेनाएं सर्दी के मौसम में नीचे के पोस्ट पर चली जाती थी. लेकिन सेना का कहना है कि पाक सेना का इतिहास रहा है कि वह लिखित समझौतों को भी तोड़ती आई है तो मौखिक समझौतों की क्या हालत होगी, इसका तो बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.
बताया जाता है कि पाकिस्तानी सेना भी ऐसी ही परिस्थितियों से जूझ रही है. एक जानकारी के मुताबिक, पाक सेना ने सीजफायर के बाद कई बार ऐसे मौखिक समझौतों को फिर से लागू करने का आग्रह भारतीय सेना से किया है पर भारतीय सेना इसके लिए कतई राजी नहीं है.
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