इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए थे सिखों के खिलाफ दंगे.
नई दिल्ली:
एक नवंबर 1984. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की तारीख. स्थान-दिल्ली का त्रिलोकपुरी. सेना से रिटायर्ड हवलदार महन सिंह के घर को उन्मादी भीड़ ने घेर लिया था. पड़ोसी उनके फौजी होने की दुहाई देकर भीड़ से छोड़ देने की गुहार लगा रहे थे, मगर हिंसक भीड़ कुछ सुनने को तैयार नहीं थी. भीड़ कहती, "फौजी होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, सारे सरदार गद्दार हैं." भीड़ चिल्ला रही थी...इन सरदारों को मारो, ये देश के गद्दार हैं. भीड़ ने महन सिंह को घर से खींच लिया. इस बीच एक व्यक्ति ने पहले उनकी पगड़ी खींच ली. जब उन्होंने पगड़ी पकड़ ली तो सभी लोहे की राड से पिटाई करने लगे. पत्रकार जरनैल सिंह ने अपनी किताब I Accuse.. The Anti-Sikh Violence of 1984 में सिख दंगों के दौरान की खौफनाक घटनाओं पर से पर्दा उठाया है.
जरनैल सिंह अपनी किताब में लिखते हैं- जब भीड़ महान सिंह को मार रही थी, तब उनके दो बेटे 11 वर्षीय इंदरपाल और हरकीरत घर की छत पर खड़े होकर इस क्रूरता को देख रहे थे. कुछ देर में जब छोटे बेटे हरकीरत को पिता पर भीड़ का जुल्म बर्दाश्त नहीं हुआ तो वह बचाने के लिए कूद पड़ा. यह देख भीड़ ने कहा, "लो, एक और सरदार मिल गया." फिर भीड़ ने महन सिंह को तो मारा ही, नजर के सामने बेटे के भी तीन टुकड़े कर दिए. यह देख छत पर मौजूदा दूसरा बेटा इंदरपाल जान बचाने के लिए भाग निकला. किताब में, महन सिंह की विधवा बख्शीश के हवाले से लिखा गया है- आज भी वो मंजर याद कर परिवार कांप उठता है. बाद में बख्शीश ने उस त्रिलोकपुरी को छोड़ दिया, जिस इलाके में सिखों के हर घर में हत्याएं हुईं. बाद में हवलदार महन सिंह की विधवा पत्नी बख्शीश ईस्ट ऑफ कैलाश की विधवा कालोनी में रहने लगीं. महान सिंह एक बहादुर फौजी थे, जो 1968 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़े थे.
रोहतक से ट्रेन में भर के दिल्ली आए थे हत्यारे
इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर को हत्या के अगले दिन जब एक नवंबर को हिंसा शुरू हुई तो भीड़ को नांगलोई के गुरुद्वारे में सिखों के एकत्र होने की सूचना मिली. दरअसल, यहां एकजुट होकर सिख निडरता से हिंसक भीड़ का सामना कर रहे थे. मगर एक नवंबर को दोपहर 12 बजे के बाद दृश्य बदल गया, जब सिख दंगे में शामिल बड़े साजिशकर्ताओं ने रोहतक से ट्रेन भर के हत्यारे रवाना किए. हथियारों से लैस होकर भीड़ रोहतक से ट्रेन के जरिए नांगलोई पहुंची.घातक हथियारों के साथ आई हिंसक भीड़ के सामने संघर्ष कर रहे सिख असहाय हो गए.
1984 के सिख दंगों की जांच के लिए बने रंगनाथ मिश्रा आयोग के सामने दिए बयान में दंगा पीड़िता गुरबचन कौर ने उस मंजर को कुछ यूं बयां किया- जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों पर हमले की खबरें फैलीं तो नांगलोई गुरुद्वारा ने माइक से घोषणा करते हुए कहा कि सभी सिख फौरन गुरुद्वार में एकत्र हो जाएं. कुछ ही समय में सभी सिख गुरुद्वारे में जुट हो गए. शुरुआत में तो किसी तरह वे अपना बचाव करते रहे, मगर जब ट्रेन से सौ की संख्या में आई भीड़ ने अत्याचार करना शुरू किया तो सिख असहाय हो उठे. सिखों के घरों को उन्होंने जलाना शुरू कर दिया. गुरुबचन कौर उस वक्त अपने मुस्लिम पड़ोसी हामिद के घर में छिपी हुईं थीं. जबकि गुरुबचन का बेटा गुरुदारे में मारा गया. भीड़ ने उस दौरान गुरुद्वारे में मौजूद सभी सिखों को मार डाला था.
वीडियो- 1984 सिख विरोधी दंगे मामले में सज्जन कुमार को मिली उम्रकैद की सजा
जरनैल सिंह अपनी किताब में लिखते हैं- जब भीड़ महान सिंह को मार रही थी, तब उनके दो बेटे 11 वर्षीय इंदरपाल और हरकीरत घर की छत पर खड़े होकर इस क्रूरता को देख रहे थे. कुछ देर में जब छोटे बेटे हरकीरत को पिता पर भीड़ का जुल्म बर्दाश्त नहीं हुआ तो वह बचाने के लिए कूद पड़ा. यह देख भीड़ ने कहा, "लो, एक और सरदार मिल गया." फिर भीड़ ने महन सिंह को तो मारा ही, नजर के सामने बेटे के भी तीन टुकड़े कर दिए. यह देख छत पर मौजूदा दूसरा बेटा इंदरपाल जान बचाने के लिए भाग निकला. किताब में, महन सिंह की विधवा बख्शीश के हवाले से लिखा गया है- आज भी वो मंजर याद कर परिवार कांप उठता है. बाद में बख्शीश ने उस त्रिलोकपुरी को छोड़ दिया, जिस इलाके में सिखों के हर घर में हत्याएं हुईं. बाद में हवलदार महन सिंह की विधवा पत्नी बख्शीश ईस्ट ऑफ कैलाश की विधवा कालोनी में रहने लगीं. महान सिंह एक बहादुर फौजी थे, जो 1968 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़े थे.
रोहतक से ट्रेन में भर के दिल्ली आए थे हत्यारे
इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर को हत्या के अगले दिन जब एक नवंबर को हिंसा शुरू हुई तो भीड़ को नांगलोई के गुरुद्वारे में सिखों के एकत्र होने की सूचना मिली. दरअसल, यहां एकजुट होकर सिख निडरता से हिंसक भीड़ का सामना कर रहे थे. मगर एक नवंबर को दोपहर 12 बजे के बाद दृश्य बदल गया, जब सिख दंगे में शामिल बड़े साजिशकर्ताओं ने रोहतक से ट्रेन भर के हत्यारे रवाना किए. हथियारों से लैस होकर भीड़ रोहतक से ट्रेन के जरिए नांगलोई पहुंची.घातक हथियारों के साथ आई हिंसक भीड़ के सामने संघर्ष कर रहे सिख असहाय हो गए.
1984 के सिख दंगों की जांच के लिए बने रंगनाथ मिश्रा आयोग के सामने दिए बयान में दंगा पीड़िता गुरबचन कौर ने उस मंजर को कुछ यूं बयां किया- जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों पर हमले की खबरें फैलीं तो नांगलोई गुरुद्वारा ने माइक से घोषणा करते हुए कहा कि सभी सिख फौरन गुरुद्वार में एकत्र हो जाएं. कुछ ही समय में सभी सिख गुरुद्वारे में जुट हो गए. शुरुआत में तो किसी तरह वे अपना बचाव करते रहे, मगर जब ट्रेन से सौ की संख्या में आई भीड़ ने अत्याचार करना शुरू किया तो सिख असहाय हो उठे. सिखों के घरों को उन्होंने जलाना शुरू कर दिया. गुरुबचन कौर उस वक्त अपने मुस्लिम पड़ोसी हामिद के घर में छिपी हुईं थीं. जबकि गुरुबचन का बेटा गुरुदारे में मारा गया. भीड़ ने उस दौरान गुरुद्वारे में मौजूद सभी सिखों को मार डाला था.
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