ज्यादा दिन नहीं बीते, जब दिल्ली के विकास भवन के आगे डीडीए फ्लैट की लॉटरी के भारी भीड़ लगी थी, जिनके नाम से घर निकले वह निहाल हो गए कि चाहे द्वारका हो, नरेला हो या फिर रोहिणी किस्मत की कुंजी कहीं तो काम कर गई।
लेकिन कायदे से महीना भी नहीं बीता कि तस्वीर बदलने लगी, अभी तक 1200 से भी ज्यादा लोग डीडीए को अपना घर वापस कर चुके हैं और आने वाले दिनों में यह तादाद और भी बढ़ सकती है। लौटाए गए ज्यादातर मकान द्वारका, रोहिणी और नरेला के हैं।
लिहाजा ग्रेटर कैलाश से 40 किमी का सफर तय कर हम सबसे पहले नरेला पहुंचे काफी मशक्कत के बाद वहां भी पहुंचे जहां नए नवेले डीडीए फ्लैट्स के सिवाय सिर्फ़ सूनापन था। दूर से इमारत और खुलापन देखकर पहले तो फीलगुड हुआ, लेकिन फ्लैट में घुसते ही सारा बुखार उतर गया। क्या लिविंग रूम, क्या बैडरूम, क्या किचन... मकान शुरू होते ही ख़त्म हो गया। लगा जैसे कोई मज़ाक किया गया है।
संयोग से इसी बीच मयूर विहार से एक परिवार अपना फ्लैट देखने पहुंचा। बेटे की लगी लॉटरी का नतीजा देखने दो घंटे का सफर तय कर पिता भी आए थे, लेकिन घर देखते ही मानो मन खट्टा हो गया।
नरेला के बाद अब रोहिणी की बारी है, जहां सबसे ज्यादा फ्लैट वापस किए गए हैं। रोहिणी के सिरसपुर इलाके में डीडीए ने 2800 फ्लैट बनाए हैं। यहां अभी सड़क नहीं है, जो है उसमें गड्ढे हैं और जहां गड्ढों में पानी जमा है, वहां जानवरों का जमावड़ा है। कई जगहों पर कंस्ट्रक्शन का काम भी चल रहा है। यहां तो बिजली-पानी का कोई अता पता नहीं, यहां तक कि सीवर की भी व्यवस्था नहीं हो पाई है।
वहीं इलाके के प्रॉपर्टी डीलरों का कहना है कि आने जाने की समस्या बेहद गंभीर है। इसके अलावा अगले पांच सालों तक फ्लैट नहीं बेचने वाली डीडीए की शर्त भी लोगों पर भारी पड़ रही है।
दूसरी तरफ डीडीए का कहना है कि फ्लैट्स की वापसी उनके लिए कोई नई बात नहीं है और रहा सवाल साइज़ का तो, उसे लेकर भी सारी जानकारियां पहले ही दे दी गई थी। लिहाज़ा लोगों को फॉर्म भरने से पहले भी सोच समझकर आवेदन करना चाहिए थे।
आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसौदिया ने कहा कि जो प्रशासन में बैठे हैं, उन्हें डीडीए के प्लान की पूरी जानकारी था, लेकिन अगर ऐसा हुआ है तो या तो लोगों को व्यवहारिक ज्ञान नहीं है या जानबूझकर जनता के साथ धोखा किया है।
ये अलग बात है कि डीडीए के फार्म में पहली नजर में कहीं भी मकान के ले आउट या फिर इसके कमरे के साइज के बारे में कोई जानकारी नहीं दिखती। तो क्या डीडीए फॉर्म को लेकर मची मारामारी सिर्फ इसके सस्ते होने की ब्रांडिंग को लेकर थी जो एक छलावा साबित हुआ।
केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी सीरीज की शुरुआत दिल्ली से करने की बात कही है और संयोग से स्मार्टनेस की पहली मिसाल दिखाने का मौका डीडीए को मिला। लेकिन सवाल है कि अगर आगाज ऐसा है तो फिर अंजाम कैसा होगा।
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