नई दिल्ली:
संसद पर हुए हमले की आज 11वीं बरसी है। इस दिन हर साल लोग शहीदों को याद कर श्रद्धांजलि देते हैं, लेकिन सवाल उठता है कि क्या उनकी बहादुरी का उचित सम्मान किया गया है। देश के लिए जान की बाजी लगाने वालों में से कईयों के परिवार आज भी संघर्ष के दौर से गुजर रहे हैं। यह हमारे तंत्र और व्यवस्था की एक ऐसी खामी है, जिस पर राजनीतिक सिस्टम खामोश है।
गौरतलब है कि आज 13 दिसंबर 2001 को इस हमले को 11 बरस हो गए हैं। वह दिन जब भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रतीक संसद पर हमला हुआ था। एक ऐसा हमला, जिसमें पांच पुलिसवाले, संसद का एक सुरक्षा गार्ड और एक माली यानी कुल मिलाकर सात लोग शहीद हुए। आतंकियों ने भारतीय लोकतंत्र के दिल पर हमला करके उसकी धड़कनें रोकने की कोशिश की थी। वह कोशिश तो नाकाम रही, लेकिन बहुत से ऐसे जख्म दे गई, जो अब तक हरे हैं और सुरक्षा की खामियों पर उठे बहुत से सवाल, जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं।
संसद हमले के दोषियों को 2001 के बाद चार सालों में ही देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपना फैसला सुनाकर संदेश दिया कि दोषियों पर कार्रवाई में देरी नहीं होनी चाहिए। हमले में चार लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए। अफशां गुरु, एसएसआर गिलानी, शौकत हुसैन गुरु और अफजल गुरु।
18 दिसंबर 2002 को एसएसआर गिलानी, शौकत हुसैन गुरु और अफजल गुरु को सजा-ए-मौत सुनाई गई, लेकिन अफशां गुरु को रिहा कर दिया गया। इल्जाम साबित न होने पर 29 अक्तूबर 2003 को एसएआर गिलानी को भी रिहा कर दिया गया।
4 अगस्त 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु की फांसी बरकरार रखते हुए शौकत गुरु की सजा घटाकर 10 साल की कैद कर दी।
30 दिसंबर 2010 को शौकत गुरु को तिहाड़ जेल से रिहा किया गया। अफजल गुरु को फांसी देने का मामला राजनीतिक रंग ले चुका है। 7 साल पहले फांसी पाने वाले अफजल गुरु को फांसी पर लटकाने के मामले में सरकार के हाथ-पांव जैसे फूल गए हैं।
अब सवाल यह है कि अफजल गुरु को फांसी कब लगाई जाएगी। एनडीटीवी को पता चला है कि फिलहाल इस पर विचार नहीं होने वाला। इस बारे में गृहमंत्री से बार-बार सवाल किए जा रहे हैं। अफजल की फाइल 16 नवंबर को राष्ट्रपति भवन गृह मंत्रालय भेज चुका है। राष्ट्रपति भवन ने गृह मंत्रालय को नौं अर्जियां वापस भेजी हैं, जिसमें अफजल का नंबर 8वां है। 2011 में गृह मंत्रालय ने उसकी माफी याचिका ठुकराने को कहा था।
गौरतलब है कि आज 13 दिसंबर 2001 को इस हमले को 11 बरस हो गए हैं। वह दिन जब भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रतीक संसद पर हमला हुआ था। एक ऐसा हमला, जिसमें पांच पुलिसवाले, संसद का एक सुरक्षा गार्ड और एक माली यानी कुल मिलाकर सात लोग शहीद हुए। आतंकियों ने भारतीय लोकतंत्र के दिल पर हमला करके उसकी धड़कनें रोकने की कोशिश की थी। वह कोशिश तो नाकाम रही, लेकिन बहुत से ऐसे जख्म दे गई, जो अब तक हरे हैं और सुरक्षा की खामियों पर उठे बहुत से सवाल, जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं।
संसद हमले के दोषियों को 2001 के बाद चार सालों में ही देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपना फैसला सुनाकर संदेश दिया कि दोषियों पर कार्रवाई में देरी नहीं होनी चाहिए। हमले में चार लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए। अफशां गुरु, एसएसआर गिलानी, शौकत हुसैन गुरु और अफजल गुरु।
18 दिसंबर 2002 को एसएसआर गिलानी, शौकत हुसैन गुरु और अफजल गुरु को सजा-ए-मौत सुनाई गई, लेकिन अफशां गुरु को रिहा कर दिया गया। इल्जाम साबित न होने पर 29 अक्तूबर 2003 को एसएआर गिलानी को भी रिहा कर दिया गया।
4 अगस्त 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु की फांसी बरकरार रखते हुए शौकत गुरु की सजा घटाकर 10 साल की कैद कर दी।
30 दिसंबर 2010 को शौकत गुरु को तिहाड़ जेल से रिहा किया गया। अफजल गुरु को फांसी देने का मामला राजनीतिक रंग ले चुका है। 7 साल पहले फांसी पाने वाले अफजल गुरु को फांसी पर लटकाने के मामले में सरकार के हाथ-पांव जैसे फूल गए हैं।
अब सवाल यह है कि अफजल गुरु को फांसी कब लगाई जाएगी। एनडीटीवी को पता चला है कि फिलहाल इस पर विचार नहीं होने वाला। इस बारे में गृहमंत्री से बार-बार सवाल किए जा रहे हैं। अफजल की फाइल 16 नवंबर को राष्ट्रपति भवन गृह मंत्रालय भेज चुका है। राष्ट्रपति भवन ने गृह मंत्रालय को नौं अर्जियां वापस भेजी हैं, जिसमें अफजल का नंबर 8वां है। 2011 में गृह मंत्रालय ने उसकी माफी याचिका ठुकराने को कहा था।
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