चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बनेगा भारत - 'चंद्रयान 2' से जुड़ी 10 खास बातें

अंतरिक्ष के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय होड़ सोमवार को उस समय और तेज़ हो जाएगी, जब भारत अपने कम-खर्च वाले मिशन को लॉन्च करेगा, औऱ दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा, जिन्होंने चंद्रमा पर खोजी यान उतारा है.

चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बनेगा भारत - 'चंद्रयान 2' से जुड़ी 10 खास बातें

भारत का मिशन मून: 'चंद्रयान 2' की तैयारी

नई दिल्ली: अंतरिक्ष के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय होड़ सोमवार को उस समय और तेज़ हो जाएगी, जब भारत अपने कम-खर्च वाले मिशन को लॉन्च करेगा, औऱ दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा, जिन्होंने चंद्रमा पर खोजी यान उतारा है. किसी मानव के पहली बार चांद पर उतरने की 50वीं वर्षगांठ से सिर्फ पांच दिन पहले 'चंद्रयान 2' पूरे दशक तक की गईं तैयारियों के बाद आंध्र प्रदेश से सटे एक द्वीप से उड़ान भरेगा. इस मिशन से यह भी सामने आएगा कि अपोलो 11 मिशन के ज़रिये नील आर्मस्ट्रॉन्ग द्वारा मानव सभ्यता के लिए उठाए गए अहम कदम के बाद से अंतरिक्ष विज्ञान कितना आगे निकल चुका है. भारत ने 3,84,400 किलोमीटर (2,40,000 मील) की यात्रा के लिए 'चंद्रयान 2' को तैयार करने में 960 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, और यह सतीश धवन स्पेस सेंटर से सोमवार को उड़ान भर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 6 सितंबर को उतरेगा.

'चंद्रयान 2' से जुड़ी 10 खास बातें

  1. अमेरिका ने अपने 15 अपोलो मिशनों पर 25 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं, जो आज के मूल्यों के लिहाज़ से लगभग 100 अरब डॉलर होते हैं. इन मिशनों में वे छह मिशन भी शामिल हैं, जिनके ज़रिये नील आर्मस्ट्रॉन्ग तथा अन्य अंतरिक्षयात्रियों को चंद्रमा पर उतारा गया. चीन ने चंद्रमा पर भेजे जाने वाले अपने चैंगे 4 यान पर 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए हैं. इनके अलावा 1960 और 1970 के दशक में चलाए गए चंद्रमा से जुड़े अभियानों पर आज के मूल्यों के लिहाज़ से 20 अरब डॉलर से ज़्यादा खर्च किए.

  2. 'चंद्रयान 2' का ऑरबिटर, लैंडर और रोवर लगभग पूरी तरह भारत में ही डिज़ाइन किए गए और बनाए गए हैं, और वह 2.4 टन वज़न वाले ऑरबिटर को ले जाने के लिए अपने सबसे ताकतवर रॉकेट लॉन्चर - GSLV Mk III - का इस्तेमाल करेगा. ऑरबिटर की मिशन लाइफ लगभग एक साल है.

  3. यान में 1.4 टन का लैंडर 'विक्रम' होगा, जो 27-किलोग्राम के रोवर 'प्रज्ञान' को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर दो क्रेटरों के बीच ऊंची सतह पर उतारेगा.

  4. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) प्रमुख के. सिवन ने कहा, "विक्रम का 15 मिनट का अंतिम तौर पर उतरना सबसे ज़्यादा डराने वाले पल होंगे, क्योंकि हमने कभी भी इतने जटिल मिशन पर काम नहीं किया है..."

  5. सौर-ऊर्जा से संचालित होने वाला रोवर 500 तक सफर कर सकता है, और उम्मीद है कि वह एक चंद्र दिवस तक काम कर सकेगा, जो पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर होते हैं. के. सिवन ने बताया, मिशन के दौरान जल के संकेत तलाशने के अलावा 'शुरुआती सौर मंडल के फॉसिल रिकॉर्ड' तलाश किए जाएंगे.

  6. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की बात कही है. अधिकतर विशेषज्ञों का कहना है कि इस मिशन से मिलने वाला जियो-स्ट्रैटेजिक फायदा ज़्यादा नहीं है, लेकिन भारत का कम खर्च वाला यह मॉडल कमर्शियल उपग्रहों और ऑरबिटिंग डील हासिल कर पाएगा.

  7. ISRO के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन ने कहा, "जो मूल सवाल हमें खुद से पूछना चाहिए, वह यह नहीं है कि क्या भारत को इस तरह के महत्वाकांक्षी मिशन हाथ में लेने चाहिए, बल्कि सवाल यह है कि क्या भारत इसे नज़रअंदाज़ करना अफोर्ड कर सकता है..." उन्होंने कहा कि भारत का लक्ष्य अंतरिक्ष के क्षेत्र में लीडर के रूप में सामने आना होना चाहिए.

  8. NASA के मंगल ग्रह पर भेजे गए रोवर मिशन से जुड़े विज्ञानी अमिताभ घोष ने कहा, 'चंद्रयान 2' की कीमत के लिहाज़ से इससे होने वाला फायदा बहुत बड़ा होगा. उन्होंने कहा, "चंद्रयान 2 जैसा जटिल मिशन सारी दुनिया को संदेश देगा कि भारत जटिल तकनीकी मिशनों को कामयाब करने में भी पूरी तरह सक्षम है..."

  9. बहरहाल, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जो भी कम खर्च के बारे में सोचते हैं, उन्हें धरती पर उड़ने वाले लो-कॉस्ट एयरलाइनों के विमानों में मिल पाने वाली सुविधाओं को याद रखना होगा. NASA के पूर्व शीर्ष रिसर्चर स्कॉट हुब्बार्ड, जो अब स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं, ने भारत के मंगल मिशन की तुलना अमेरिकी मेवन मिशन से की है.

  10. स्कॉट हुब्बार्ड के मुताबिक, दोनों ही 2013 में लॉन्च किए गए, मेवन की लागत 10 गुणा ज़्यादा होने का अनुमान है, लेकिन भारत के मंगलयान को सिर्फ एक साल काम कर पाने के लिए डिज़ाइन किया गया, औऱ अमेरिकी मिशन को दो साल तक काम करना था. कीमत में बहुत ज़्यादा अंतर है. मंगलयान कुल 15 किलो तक वज़न ले जा सकता था, जबकि मेवन ज़्यादा अत्याधुनिक उपकरणों के साथ 65 किलो तक का वज़न ले जाने में सक्षम था. (इनपुट AFP से)