Pandemic Threats: कोरोना वायरस की वजह से पनपी महामारी के बाद वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अब लोग एक अजीबोगरीब नई महामारी के खतरे का सामना कर सकते हैं. उनका कहना है कि आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में जमे प्राचीन वायरस एक दिन पृथ्वी की गर्म होती जलवायु से मुक्त हो सकते हैं और एक बड़ी बीमारी का प्रकोप ला सकते हैं. इन मेथुसेलह रोगाणुओं के स्ट्रेन्स या ज़ोंबी वायरस पहले से ही रिसर्चर्स द्वारा आइसोलेट किए जा चुके हैं, जिन्होंने आशंका जताई है कि ये एक नई वैश्विक मेडिकल इमरजेंसी ला सकती है. अब वैज्ञानिकों ने एक आर्कटिक निगरानी नेटवर्क की योजना बनाना शुरू कर दिया है जो प्राचीन सूक्ष्म जीवों के कारण होने वाली बीमारी के शुरुआती मामलों का पता लगाएगा. इसके अलावा यह प्रकोप को रोकने के लिए संक्रमित लोगों को एक्सपर्ट मेडिकल ट्रीटमेंट मुहैया कराएगा और उन्हें क्षेत्र छोड़ने से रोकेगा.
दी गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐक्स-मार्सिले विश्वविद्यालय के आनुवंशिकीविद् जीन-मिशेल क्लेवेरी ने कहा, "फिलहाल, महामारी के खतरों का विश्लेषण उन बीमारियों पर केंद्रित है जो दक्षिणी क्षेत्रों में उभर सकती हैं और फिर उत्तर में फैल सकती हैं." ‘इसके विपरीत, उस प्रकोप पर बहुत कम ध्यान दिया गया है जो सुदूर उत्तर में उभर सकता है और फिर दक्षिण की ओर बढ़ सकता है और मेरा मानना है कि यह एक भूल है. वहां ऐसे वायरस हैं जो मनुष्यों को संक्रमित करने और एक नई बीमारी का प्रकोप शुरू करने की क्षमता रखते हैं'.
इस बात का रॉटरडैम में इरास्मस मेडिकल सेंटर के वायरोलॉजिस्ट मैरियन कूपमैन्स ने समर्थन किया था. उन्होंने कहा, "हम नहीं जानते कि पर्माफ्रॉस्ट में कौन से वायरस मौजूद हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ये एक जोखिम है कि कोई रोग फैलने में सक्षम हो सकता है- पोलियो के एक प्राचीन रूप की तरह. हमें यह मानकर चलना होगा कि ऐसा कुछ हो सकता है.”
हजारों साल पुराना है ये वायरल
2014 में, क्लेवेरी ने वैज्ञानिकों की एक टीम का नेतृत्व किया, जिन्होंने साइबेरिया में जीवित वायरस को आइसोलेट किया और दिखाया कि वे अभी भी सिंगल-सेल जीवों को संक्रमित कर सकते हैं, भले ही वे हजारों वर्षों से पर्माफ्रॉस्ट में दबे हुए हों. पिछले साल पब्लिश हुई रिसर्च में साइबेरिया में सात अलग-अलग साइटों से कई अलग-अलग वायरल स्ट्रेन्स के अस्तित्व का पता चला और पता चला कि ये कल्चर्ड सेल्स को संक्रमित कर सकते हैं. एक वायरस का नमूना 48,500 साल पुराना था.
क्लेवेरी ने कहा, "जिन वायरस को हमने आइसोलेट किया था वे केवल अमीबा को संक्रमित करने में सक्षम थे और मनुष्यों के लिए कोई खतरा नहीं था." ‘हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य वायरस - जो वर्तमान में पर्माफ्रॉस्ट में जमे हुए हैं, मनुष्यों में बीमारियों को ट्रिगर करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं. हमने पॉक्सवायरस और हर्पीसवायरस के जीनोमिक निशानों की पहचान की है, जो जाने-माने मानव रोगजनक हैं'.
पर्माफ्रॉस्ट उत्तरी गोलार्ध के पांचवें हिस्से को कवर करता है और यह मिट्टी से बना होता है जो लंबे समय से जीरो से नीचे तापमान पर जमा हुआ है. वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि कुछ परतें सैकड़ों-हजारों सालों से जमी हुई हैं.
क्लेवेरी ने पिछले हफ्ते ऑब्जर्वर को बताया, "पर्माफ्रॉस्ट के बारे में अहम बात यह है कि यहां अंधेरा है और इसमें ऑक्सीजन की कमी है, जो बायोलॉजिकल मैटेरियल को प्रिजर्व करने के लिए बिल्कुल सही है." "आप दही को पर्माफ्रॉस्ट में रख सकते हैं और यह 50,000 साल बाद भी खाने योग्य हो सकता है."
ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रहा खतरा
लेकिन अब पर्माफ्रॉस्ट बदल रहा है. कनाडा, साइबेरिया और अलास्का की ऊपरी परतें पिघल रही हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन आर्कटिक को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है. मौसम विज्ञानियों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि की औसत दर से कई गुना अधिक तेजी से यह क्षेत्र गर्म हो रहा है.
हालांकि, क्लेवेरी ने कहा, ‘खतरा एक ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव से आता है: आर्कटिक समुद्री बर्फ का गायब होना. इससे साइबेरिया में शिपिंग, यातायात और औद्योगिक विकास में वृद्धि हो रही है. विशाल खनन कार्यों की योजना बनाई जा रही है और तेल और अयस्कों को निकालने के लिए गहरे पर्माफ्रॉस्ट में विशाल छेद किए जा रहे हैं'. “उन ऑपरेशनों से बड़ी मात्रा में रोगज़नक़ निकलेंगे जो अभी भी वहां पनप रहे हैं. प्रभाव विनाशकारी हो सकते हैं.”
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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