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This Article is From Jun 18, 2021

Autistic Pride Day: जानिए क्या है ऑटिज्म और कैसे करें बचाव

Autistic Pride Day 2021: ऑटिस्टिक प्राइड डे वैश्विक स्तर पर 18 जून को सेलिब्रेट किया जाता है. यह दिन ऑटिज्म से ग्रसित लोगों के अधिकारों का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है. एस्पिस फॉर फ्रीडम की ओर से साल 2005 में पहली बार ब्राजील में ऑटिस्टिक दिवस मनाया गया था.

Autistic Pride Day: जानिए क्या है ऑटिज्म और कैसे करें बचाव
Autistic Pride Day: इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, लोगों को जागरूक करने के लिए.

Autistic Pride Day 2021:  ऑटिस्टिक प्राइड डे वैश्विक स्तर पर 18 जून को सेलिब्रेट किया जाता है. यह दिन ऑटिज्म से ग्रसित लोगों के अधिकारों का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है. दरअसल, गैरीथ एंड एमी नेल्सन की बनाई गई एस्पिस फॉर फ्रीडम की ओर से साल 2005 में पहली बार ब्राजील में ऑटिस्टिक दिवस मनाया गया था. इसके बाद इस कार्यक्रम ने वैश्विक रूप ले लिया और दुनिया भर में 18 जून को मनाया जाने लगा. एस्पिस फॉर फ्रीडम एक संगठन है, जो ऑटिज्म के अधिकारों को लेकर लोगों को जागरूक करता है.

कैसे मनाते हैं ऑटिस्टिक प्राइड डेः

इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, लोगों को जागरूक करने के लिए. इसके जरिए उन लोगों को जागरूक किया जाता है जो कि ऑटिज्म से पीड़ित नहीं हैं, लेकिन इन लोगों को भी ऑटिज्म से पीड़ित लोगों की परेशानियां पता चले सकें और इस बारे में उनकी संवेदनशीलता बढ़े.

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एस्पिस फॉर फ्रीडम एक संगठन है, जो ऑटिज्म के अधिकारों को लेकर लोगों को जागरूक करता है. 

ऑटिस्टिक प्राइड डे का महत्वः

डब्ल्यूएचओ की मानें, तो करीब 150 में एक बच्चा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम से पीड़ित होता है. इनमें ज्यादातर बच्चे सामाजिक अलगाव को महसूस करते हैं. उनके जीवन को आसान बनाने के लिए इस बीमारी को लेकर लोगों को समझाने और उन्हें जागरुक करने की बेहद जरूरत है.

ऑटिज्म के कारणः

ऑटिज्म बीमारी का कोई एक कारण नहीं है. डॉक्टरों का मानना है कि पर्यावरण और जेनेटिक वजहों से ये बीमारी बच्चों में होती है. ऑटिज्म बच्चों की 3 चीजों पर प्रभाव डालता है- सोशल, कम्युनिकेशन और बिहेवियर स्किल्स.

ऑटिज्म के लक्षणः

इस बीमारी से पीड़ित बच्चे का अन्य लोगों से बातचीत और व्यवहार का दायरा सीमित हो जाता है. यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. इसमें पीड़ित को सोशल एक्टिविटी और लोगों से बातचीत में हिचक होती है. इस बीमारी के लक्षण माता पिता बच्चों में शुरुआत के तीन साल में महसूस करते हैं. ये लक्षण धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं. रोजाना के कामकाज में भी उन्हें काफी परेशानी होती है. जिन बच्चों में लक्षण होते हैं वो माता पिता के संकेत को नहीं समझ पाते हैं और न ही कोई प्रतिक्रिया देते हैं. जैसे- बच्चों को हम आवाज देते हैं तो वो तुरंत उस पर प्रतिक्रिया देते हैं, लेकिन ऑटिज्म से पीड़ित बच्चा प्रतिक्रिया नहीं देगा. इसके साथ ही बच्चे ऐसी हरकतें करते हैं, जो हमारे लिए अजीब होती हैं.

मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है इलाजः

बच्चों की मानसिक स्थिति और उसमें बीमारी के लक्षण को देखकर ही डॉक्टर इलाज तय करते हैं. इसमें उपचार की शुरुआत में बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी की सहायता से की जाती है. इन थेरेपी से बच्चों के स्वभाव में कुछ हद तक फर्क पड़ता है. इसके जरिए बच्चों से उनकी ही भाषा में बात करने की कोशिश की जाती है. हालांकि जरूरत पड़ने पर बच्चों को दवाईयां भी दी जाती है. ऑटिज्म एक अलग प्रकार की बीमारी है. इस बीमारी में जरूरी है कि पीड़ित बच्चों के अभिभावक उन्हें ज्यादा से ज्यादा वक्त दें, उनके हाव-भाव को समझें और उन्हें उन्हें सामान्य महसूस करने में मदद करें. 

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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