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This Article is From Aug 14, 2017

Janmashtami 2017: आखिर क्यों मनाया जाता है दही-हांडी का उत्सव, क्या है इसका महत्व

भारत को त्योहारों की भूमि कहा जाता है और यह सिर्फ प्राचीन रीति-रिवाजों की वजह से नहीं बल्कि हर त्योहार अपने साथ खुशियां लेकर आता है. जन्माष्टमी एक ऐसा ही त्योहार है जिसे लोग पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं.

Janmashtami 2017: आखिर क्यों मनाया जाता है दही-हांडी का उत्सव, क्या है इसका महत्व
हिन्दुओं के लिए जन्माष्टमी के त्योहार का बहुत ही महत्व है, जन्माष्टमी को श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है जिन्होंने देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लेकर मथुरावासियों को निर्दयी कंस के शासन से मुक्ति दिलाई। इतना ही नहीं उन्होंने महाभारत के युद्ध में पांडवों को जीत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई थी। इस साल जन्माष्टमी का पर्व 14 और 15 अगस्त को मनाया जाएगा।

भारत को त्योहारों की भूमि कहा जाता है और यह सिर्फ प्राचीन रीति-रिवाजों की वजह से नहीं बल्कि हर त्योहार अपने साथ खुशियां लेकर आता है. जन्माष्टमी एक ऐसा ही त्योहार है जिसे लोग पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं. इस पवित्र दिन पर भक्त मंदिरों में भगवान से प्रार्थना कर उन्हें भोग लगाते हैं. इस दिन ज्यादातर हिन्दू लोग अपने घरों में बालगोपाल का दूध, शहद और पानी से अभिषेक कर उन्हें नए वस्त्र पहनाते हैं. इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण के भक्त पूरे दिन का उपवास करते हैं. शाम को मंदिर के प्रांगण लोग इकट्ठा होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े लोकगीत और भजनों का आनंद उठाते हैं। कई जगहों पर श्रीकृष्ण की झाकियां भी निकाली जाती हैं.

वहीं गुजरात और महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के मौके पर दही हांडी की प्रथा के साथ यह पर्व को मनाया जाता है.  कई हिन्दी फिल्मों और गानों में दही हांडी के सीन को आपने कई बार देखा होगा. लड़कों का ग्रुप कम्पाउंड में इकट्ठा होता है और एक पिरामिड बनाकर जमीन से 20-30 फुट ऊंचाई पर लटकी मिट्टी की मटकी को तोड़ते है. लेकिन शायद ही किसी ने इसके महत्व के बारे में सोचा होगा.
 
क्या है दही हांडी का महत्व

भले ही श्रीकृष्ण ने देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लिया था लेकिन उनका पालन-पोषण यशोदा और नंद ने किया था. ऐसी भविष्यवाणी की गई थी कि देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी और इस भविष्यवाणी को सच होने से रोकने के लिए कंस ने अपनी बहन देवकी और वासुदेव को अपना बंदी बना लिया था. इतना नहीं इस बीच कंस ने देवकी की 6 संतानों का वध भी कर दिया. वहीं भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय वासुदेव भगवान के निर्देशानुसार उन्हें वृन्दावन यशोदा और नंद के पास छोड़ आएं, जहां श्रीकृष्ण ने अपना बचपन बिताया और कुछ सालों बाद वापस मथुरा लौटकर कंस का वध करके भविष्यवाणी को सच किया.

अपने बचपन में श्रीकृष्ण बेहद ही नटखट थे, पूरे गांव में उन्हें उनकी शरारतों के लिए जाना जाता था. श्रीकृष्ण को माखन, दही और दूध काफी पंसद था. उन्हें माखन इतना पंसद था जिसकी वजह से पूरे गांव का माखन चोरी करके खा जाते थे। इतना ही उन्हें माखन चोरी करने से रोकने के लिए एक दिन उनकी मां यशोदा को उन्हें एक खंभे से बांधना पड़ा और इसी वजह से भगवान श्रीकृष्ण का नाम 'माखन चोर' पड़ा।

वृन्दावन में महिलाओं ने मथे हुए माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया जिससे की श्रीकृष्ण का हाथ वहां तक न पहुंच सके. लेकिन नटखट कृष्ण की समझदारी के आगे उनकी यह योजना भी व्यर्थ साबित हुई. माखन चुराने के लिए श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और ऊंचाई पर लटकाई मटकी से दही और माखन को चुरा लेते थे. वहीं से प्रेरित होकर दही हांडी का चलन शुरू हुआ. दही हांडी के उत्सव के दौरान लोग गाने गाते हैं जो लड़का सबसे ऊपर खड़ा होता है उसे गोविंदा कहा जाता है और ग्रुप के अन्य लड़कों को हांडी या मंडल कहकर पुकारा जाता है.
 

वृन्दावन में गाय और दूध से बनें उत्पादों की मात्रा बहुत अच्छी थी. माखन और दही से भरी मटकी तोड़ने के बाद श्रीकृष्ण उसे अपने दोस्तों के बीच बांट देते थे. इसका कारण यह था कि वहां के लोगों को अपना सबकुछ मथुरा के राजा कंस को देना पड़ता था.

गुजरात और द्वारका में माखन हांडी की प्रथा काफी प्रसिद्ध है, जहां मटकी को दही, घी, बादाम और सूखे मेवे से भरकर लटकाया जाता है. लड़के ऊपर लटकी मटकी को फोड़ते हैं और अन्य लोग लोकगीतों और भजनों पर नाचते-गाते हैं.
तमिलनाडु में दही हांडी को 'उरीदी' के नाम से जाना जाता है. दही हांडी महाराष्ट्र में होने वाली गोकुलाष्टमी का अहम हिस्सा है, जिसे काफी बड़े स्तर पर मनाया जाता है. इस कार्यक्रम के लिए कई ग्रुप हफ्तों से प्रैक्टिस करते हैं. इन ग्रुप्स को मंडल कहा जाता है जो अपने लोकल एरिया में लटकी मटकी को फोड़ते हैं और इस कार्यक्रम में मटकी तोड़ने वाले ग्रुप्स को इनाम भी दिए जाते हैं। अगर आपको कभी महाराष्ट्र या गुजरात जाने का मौका मिले तो आप एक बार इस बड़े उत्सव की झलक जरूर देखें।

 

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