'कट्स' इंटरनेशनल ने दिल और धमनी रोगों से होने वाली मौतों पर कंट्रोल के लिए खाद्य और पेय पदार्थो पर अनिवार्यत: चेतावनी लेबल लगाने का आग्रह किया है, क्योंकि खाद्य और पेय पदार्थों में ट्रांस वसा, सोडियम और चीनी की अधिकता से हृदयरोगों को बढ़ावा मिल रहा है. 'कट्स' इंटरनेशनल एवं वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के साथ मिलकर यह पहल की है.
उत्तरी कैरालिना विश्वविद्यालय के पोषण विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. आर. केवन, डॉ. वैरी पॉपकिन ने कहा, "उपभोक्ताओं को सही जानकारी रखने की जरूरत है कि वे क्या खा रहे हैं."
अनिवार्य फ्रंट ऑफ पैकेज चेतावनी लेबल को दुनियाभर की सरकारें 'आहार में सुधार' के लिए एक प्रभावी एवं साक्ष्य आधारित उपाय के रूप में प्रस्तुत कर रही है. डॉ. पॉपकिन उन 28 अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं पोषण विशेषज्ञों में से एक हैं, जिन्होंने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के 'खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लेबलिंग व प्रस्तुतिकरण) नियमन 2018 के मसौदे पर अपने सुझाव प्रस्तुत किए हैं.
खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई), जो भारत में खाद्य सुरक्षा को नियंत्रित करता है, वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा वैश्विक मांग के अनुसार, खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्षन) विनियमन, 2018 के मसौदे पर टिप्पणियों को प्राप्त व संशोधित करने की प्रक्रिया में है.
डब्ल्यूएचओ वर्ष 2023 तक ट्रांस वसा के उपयोग को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि औद्योगिक रूप से उत्पादित खाद्य तेल प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक समय पूर्व मौतों को बढ़ा रहा है. इसी तरह भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण वर्ष 2022 तक खाद्य तेलों में वर्तमान अनुमति स्तर से 5 से 2 तक ट्रांस वसा की मात्रा को घटाने के लिए प्रतिबद्ध है.
विशेषज्ञ समूह ने शाकाहारी खाद्य पदार्थो को स्पष्टत: चिन्हित करने व उच्च सोडियम व वसा वाले खाद्य पदार्थो पर चेतावनी अंकित करवाने के लिए एफएसएसआई की प्रशंसा की. विशेषज्ञों ने नियमों को सशक्त करने के लिए और परिवर्तन की मांग की.
'कट्स' इंटरनेशनल के महामंत्री प्रदीप मेहता ने कहा, "भारत के लिए यह उन देशों की बढ़ती सूची में शामिल होने का सुअवसर है, जिन्होंने 'रोगों की रोकथाम व जीवन की सुरक्षा' 'की दिशा में निर्णायक कदम उठाए हैं. 'हम इस अवसर का उपयोग करने और स्वस्थ भारत के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रतिबिंबित करने के लिए खाद्य लेबलिंग नीतियों को प्रोन्नत करने के लिए एफएसएसआई को प्रोत्साहित करते हैं.'
एफएसएसआई 2022 तक 5 से 2 फीसदी के मौजूदा अनुमान स्तर से तेलों में ट्रांस वसा की मात्रा को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है. खाद्य पदार्थो में ट्रांस वसा के अनुमति स्तर को वर्ष 2015 में 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत किया गया, जबकि यह मात्रा भी स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं है.
ट्रांस वसा हृदय एवं धमनी रोग, अल्जाइमर, मोटापा, नि:संतानता, कैंसर, मधुमेह का प्रमुख कारण है. आज भारत में प्रत्येक 5 में से एक या अधिक मौतों का कारण हृदय एवं धमनी रोग हैं.
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उत्तरी कैरालिना विश्वविद्यालय के पोषण विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. आर. केवन, डॉ. वैरी पॉपकिन ने कहा, "उपभोक्ताओं को सही जानकारी रखने की जरूरत है कि वे क्या खा रहे हैं."
अनिवार्य फ्रंट ऑफ पैकेज चेतावनी लेबल को दुनियाभर की सरकारें 'आहार में सुधार' के लिए एक प्रभावी एवं साक्ष्य आधारित उपाय के रूप में प्रस्तुत कर रही है. डॉ. पॉपकिन उन 28 अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं पोषण विशेषज्ञों में से एक हैं, जिन्होंने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के 'खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लेबलिंग व प्रस्तुतिकरण) नियमन 2018 के मसौदे पर अपने सुझाव प्रस्तुत किए हैं.
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खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई), जो भारत में खाद्य सुरक्षा को नियंत्रित करता है, वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा वैश्विक मांग के अनुसार, खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्षन) विनियमन, 2018 के मसौदे पर टिप्पणियों को प्राप्त व संशोधित करने की प्रक्रिया में है.
डब्ल्यूएचओ वर्ष 2023 तक ट्रांस वसा के उपयोग को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि औद्योगिक रूप से उत्पादित खाद्य तेल प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक समय पूर्व मौतों को बढ़ा रहा है. इसी तरह भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण वर्ष 2022 तक खाद्य तेलों में वर्तमान अनुमति स्तर से 5 से 2 तक ट्रांस वसा की मात्रा को घटाने के लिए प्रतिबद्ध है.
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विशेषज्ञ समूह ने शाकाहारी खाद्य पदार्थो को स्पष्टत: चिन्हित करने व उच्च सोडियम व वसा वाले खाद्य पदार्थो पर चेतावनी अंकित करवाने के लिए एफएसएसआई की प्रशंसा की. विशेषज्ञों ने नियमों को सशक्त करने के लिए और परिवर्तन की मांग की.
'कट्स' इंटरनेशनल के महामंत्री प्रदीप मेहता ने कहा, "भारत के लिए यह उन देशों की बढ़ती सूची में शामिल होने का सुअवसर है, जिन्होंने 'रोगों की रोकथाम व जीवन की सुरक्षा' 'की दिशा में निर्णायक कदम उठाए हैं. 'हम इस अवसर का उपयोग करने और स्वस्थ भारत के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रतिबिंबित करने के लिए खाद्य लेबलिंग नीतियों को प्रोन्नत करने के लिए एफएसएसआई को प्रोत्साहित करते हैं.'
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एफएसएसआई 2022 तक 5 से 2 फीसदी के मौजूदा अनुमान स्तर से तेलों में ट्रांस वसा की मात्रा को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है. खाद्य पदार्थो में ट्रांस वसा के अनुमति स्तर को वर्ष 2015 में 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत किया गया, जबकि यह मात्रा भी स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं है.
ट्रांस वसा हृदय एवं धमनी रोग, अल्जाइमर, मोटापा, नि:संतानता, कैंसर, मधुमेह का प्रमुख कारण है. आज भारत में प्रत्येक 5 में से एक या अधिक मौतों का कारण हृदय एवं धमनी रोग हैं.
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