फ़िल्म सिंह साहब द ग्रेट की कहानी खुलती है एक पत्रकार की क़लम से और बताया गया है कि किस तरह उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर का कलेक्टर राजनेता और गुंडों का शिकार होता है।
अपनी बीवी को खोता है और रिश्वत के झूठे इल्ज़ाम में जेल जाता है लेकिन जेल से आने के बाद वोह सिंह साहब बनकर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ता है आम आदमी का झंडा लेकर जिसे आज अरविंद केजरीवाल राजनीति के मैदान में लेकर उतरे हुए हैं।
90 के दशक में ढेरों यादगार एक्शन फ़िल्में देने वाले सनी देओल की एक बार फिर उनके जॉनर में वापसी कह सकते हैं जहां उनका अवतार ऐंग्रीमैन वाला है। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ता है। ढेर सारे डायलॉग्स हैं और एक्शन के कई सुंदर दृश्य। सनी देओल जब प्रकाश राज को अपने हाथ से दबाते हैं तब हड्डी के कड़कड़ाने की आवाज़ आती है जो सनी पर सूट करता है। निर्देशक अनिल शर्मा के साथ सनी देओल अपने और ग़दर जैसी कामयाब फ़िल्में दे चुके हैं और इस फ़िल्म में भी डायरेक्टर−एक्टर की केमिस्ट्री अच्छी नज़र आती है।
फ़िल्म में सनी देओल ने सशक्त किरदार निभाया है वहीं प्रकाश राज ने विलन के रोल में जान डाली है। पिछले काफ़ी समय से सनी की ऐसी फ़िल्म नही आई थी जैसी उनकी इमेज है और वह अकसर कॉमेडी करते नज़र आ रहे थे। मगर अब जब बॉलीवुड में एक बार फिर एक्शन और मसाला फ़िल्मों का दौर शुरू हो गया ऐसे में सनी की एक्शन में वापसी जायज़ है। सिंह साहब द ग्रेट को भी बॉलीवुड की मसाला फ़िल्मों से अलग नहीं कर सकते क्योंकि इसमें एक्शन है, ड्रामा है, इमोशन है और थोड़ी कॉमेडी का तड़का भी।
सिंह साहब द ग्रेट एक हार्ड हिटिंग फ़िल्म है जिसमें रोमांस का एंगल थोड़ा अटपटा लगता है। स्क्रिप्ट लेवल पर फ़िल्म थोड़ी खिंची हुई और लंबी लगती है मगर सनी के फ़ैन्स और एक्शन फ़िल्मों के शौक़ीनों को यह फ़िल्म पसंद आएगी क्योंकि सनी ने अपने अंदाज़ में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी है। फ़िल्म में एक ख़ूबसूरत संदेश भी है जिसमें कहा गया है कि बुरा आदमी इसलिए ज़ुल्म नहीं करता क्योंकि वह ताक़तवर है बल्क इसलिए क्योंकि अच्छे लोग एक साथ होकर अपनी ताक़त का इस्तेमाल नहीं करते। इसलिए इस फ़िल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार।
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