Mumbai:
रामगोपाल वर्मा की 'शबरी' का जो पांच साल से रिलीज का इंतजार कर रही थी। 98 मिनट की ये कहानी है मुंबई की झोपड़पट्टी में आटा चक्की चलाने वाली मेहनती लड़की 'शबरी' की पुलिस जिसके निर्दोष भाई की जान ले लेती है। और फिर…बदले की आग में सुलगती शबरी खुद को पाती है पुलिस और अंडरवर्ल्ड के बीच। फिल्म धीमी शुरुआत लेती है लेकिन इस क्राइम फिल्म में राइटर डायरेक्टर ललित मराठे ने डर और दहशत का वो सारा माहौल गंभीरता से मेन्टेन किया है जो रामगोपाल वर्मा की फिल्मों की खासियत रही है। 'शबरी' के रूप में ईशा कोप्पीकर का ये लाइफटाइम रोल है। बैकग्राउंड म्यूजिक का खूबसूरती से इस्तेमाल। राज, अर्जुन और प्रदीप रावत के अच्छे परफॉरमेंस। बेहतरीन डायरेक्शन लेकिन शबरी दो जगह मात खाती है। एक तो इसकी कहानी में नयापन नहीं है। दूसरे हम इस बात पर यकीन नहीं कर पाते कि कैसे आटा पीसने वाली एक साधारण-सी लड़की रातों-रात पुलिस और अंडरवर्ल्ड को नाच नचा देती है। इस नाते शबरी एवरेज फिल्म है। और इसके लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार।
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