नई दिल्ली:
वर्ष 1999 के क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान ‘एपल सिंह’ बनकर धूम मचाने वाले संजय मिश्रा अब टेलीविजन और फिल्मी दुनिया का जाना-पहचाना नाम है। ‘गोलमाल’ श्रृंखला सहित पचास से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखा चुके संजय को ‘ऑफिस ऑफिस’ के शुक्ला जी के रूप में जबर्दस्त लोकप्रियता मिली लेकिन इन दिनों उनके पास टेलीविजन में काम करने का वक्त नहीं है। फिलहाल, वह फिल्म ‘प्रणाम वालेकुम’ के निर्देशन की कमान संभाले हुए हैं। पेश है उनसे एक खास बातचीत...
* अभिनय के फन में आप माहिर हैं लेकिन, निर्देशन कितना मुश्किल काम है। ‘प्रणाम वालेकुम’ का निर्देशन कितना चुनौतीपूर्ण रहा?
मैं कलाकार हूं तो अभिनय रगों में है। अभिनय से जुड़ी चुनौती उतनी बड़ी नहीं लगती और निश्चित रूप से कोई भी नया काम चुनौतीपूर्ण तो होता ही है लेकिन, एनएसडी बैकग्राउंड का मुझे लाभ मिला। निर्देशक को सभी विभागों से तालमेल बिठाना पड़ता है और यह अभिनय से मुश्किल है। मैंने नाटक निर्देशित किए हैं, लिहाजा निर्देशन की समझ तो थी ही। हां, कुछ तकनीकी बातें समझनी पड़ीं।
* निर्देशन कितना रास आया क्योंकि इसमें 24 घंटे दिमाग फंसा रहता है और थोड़ी सी चूक से पूरी फिल्म का बंटाधार।
बिलकुल सही। फिल्म का निर्देशक कई महीनों तक 24 घंटे उसी बारे में सोचता है लेकिन मैं कहूंगा कि काम में मजा आया। एक अलग रोमांच था। इस पूरी प्रक्रिया में कई बातें सीखने को भी मिली।
* ‘प्रणाम वालेकुम’ की यूएसपी क्या है?
फिल्म का संदेश है इंसान बनो। हिन्दू-मुस्लिम बाद में बनो। फिल्म में एक डायलॉग है- ‘चलो गंगा नहाते हैं, मदीना सर झुकाते हैं। एक पौधा लगाते हैं और इंसान बन जाते हैं।’ इंसानियत ही नहीं बचेगी तो सारे धर्म और सारी व्यवस्था धरी रह जाएगी।
* कॉमेडी फिल्म है?
मैं दर्शकों के बीच कोई आशा नहीं जगाना चाहता। हमने पूरी मेहनत से एक बेहतरीन फिल्म बनाने की कोशिश की है। सच कहूं तो फिल्म सिर्फ कॉमेडी नहीं है। दरअसल, इसे किसी भी कैटेगरी में रखना मुश्किल होगा।
* आपने टेलीविजन पर खासा काम किया। ‘ऑफिस-ऑफिस’ ने तो आप घर-घर में लोकप्रिय बना दिया लेकिन आजकल टीवी से दूरी बना ली है?
आजकल टीवी नहीं देखता मैं। सच कहूं तो कुछ देखने जैसा लगता नहीं है। टीवी माध्यम अपनी जिम्मेदारी किसी भी तरह नहीं निभा रहा है। कुछ भी दिखाने का मतलब यह नहीं है कि हम कुछ भी देखना चाहते हैं। फिर, नए किस्म की फिल्में बन रही हैं। वहां भी बहुत काम है।
* चलिए ये बताइए कि आपकी फिल्म कब रिलीज हो रही है?
फिल्म को अप्रैल में रिलीज करने का इरादा है। हालांकि, अभी तारीख पक्की नहीं है।
* अभिनय के फन में आप माहिर हैं लेकिन, निर्देशन कितना मुश्किल काम है। ‘प्रणाम वालेकुम’ का निर्देशन कितना चुनौतीपूर्ण रहा?
मैं कलाकार हूं तो अभिनय रगों में है। अभिनय से जुड़ी चुनौती उतनी बड़ी नहीं लगती और निश्चित रूप से कोई भी नया काम चुनौतीपूर्ण तो होता ही है लेकिन, एनएसडी बैकग्राउंड का मुझे लाभ मिला। निर्देशक को सभी विभागों से तालमेल बिठाना पड़ता है और यह अभिनय से मुश्किल है। मैंने नाटक निर्देशित किए हैं, लिहाजा निर्देशन की समझ तो थी ही। हां, कुछ तकनीकी बातें समझनी पड़ीं।
* निर्देशन कितना रास आया क्योंकि इसमें 24 घंटे दिमाग फंसा रहता है और थोड़ी सी चूक से पूरी फिल्म का बंटाधार।
बिलकुल सही। फिल्म का निर्देशक कई महीनों तक 24 घंटे उसी बारे में सोचता है लेकिन मैं कहूंगा कि काम में मजा आया। एक अलग रोमांच था। इस पूरी प्रक्रिया में कई बातें सीखने को भी मिली।
* ‘प्रणाम वालेकुम’ की यूएसपी क्या है?
फिल्म का संदेश है इंसान बनो। हिन्दू-मुस्लिम बाद में बनो। फिल्म में एक डायलॉग है- ‘चलो गंगा नहाते हैं, मदीना सर झुकाते हैं। एक पौधा लगाते हैं और इंसान बन जाते हैं।’ इंसानियत ही नहीं बचेगी तो सारे धर्म और सारी व्यवस्था धरी रह जाएगी।
* कॉमेडी फिल्म है?
मैं दर्शकों के बीच कोई आशा नहीं जगाना चाहता। हमने पूरी मेहनत से एक बेहतरीन फिल्म बनाने की कोशिश की है। सच कहूं तो फिल्म सिर्फ कॉमेडी नहीं है। दरअसल, इसे किसी भी कैटेगरी में रखना मुश्किल होगा।
* आपने टेलीविजन पर खासा काम किया। ‘ऑफिस-ऑफिस’ ने तो आप घर-घर में लोकप्रिय बना दिया लेकिन आजकल टीवी से दूरी बना ली है?
आजकल टीवी नहीं देखता मैं। सच कहूं तो कुछ देखने जैसा लगता नहीं है। टीवी माध्यम अपनी जिम्मेदारी किसी भी तरह नहीं निभा रहा है। कुछ भी दिखाने का मतलब यह नहीं है कि हम कुछ भी देखना चाहते हैं। फिर, नए किस्म की फिल्में बन रही हैं। वहां भी बहुत काम है।
* चलिए ये बताइए कि आपकी फिल्म कब रिलीज हो रही है?
फिल्म को अप्रैल में रिलीज करने का इरादा है। हालांकि, अभी तारीख पक्की नहीं है।
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