प्रतीक बब्बर
नई दिल्ली:
राज बब्बर और स्मिता पाटिल के बेटे प्रतीक बब्बर बॉलीवुड में एक जाना-पहचाना नाम हैं. उन्होंने 2008 में जाने तू...या जाने न फिल्म के साथ दस्तक दी थी. फिल्म में वे जेनेलिया देशमुख के भाई के किरदार में नजर आए थे. लेकिन उनके इस किरदार को काफी पसंद किया गया. उसके बाद उनकी कई फिल्में आईं. पर बॉक्स ऑफिस वे कोई करिश्मा नहीं कर सकीं. वे काफी दिन से सुर्खियों से बाहर थे, लेकिन उन्होंने ड्रग्स को लेकर अपने एडिक्शन की बात करके सनसनी फैला दी है. वे अपने एडिक्शन को लेकर खुलकर बात कर रहे हैं और उन्होंने मिड-डे के साथ ड्रग्स की लत का शिकार बनने से लेकर उससे निजात पाने के सफर की कहानी कही है. आइए एक सितारे के ड्रग्स की लत और उस लत पर जीत पाने के सफर पर डालते हैं नजरः
हाई स्कूल में आने से पहले ही लग गई थी लत
ड्रग्स के साथ मेरे संघर्ष की कहानी हाई स्कूल से पहले ही शुरू हो गई थी. खेल और संगीत ने कुछ रचनात्मक राहत दी. मेरे पहली असली ड्रग मेरा डिस्टर्ब बचपन था. मेरे दिमाग में आवाजें कौंधती थीं कि मैं कौन हूं और कहां से आया हूं. लेकिन ड्रग्स छलावे के तौर पर सामने आई, सिर्फ पल भर की राहत. साल गुजरते गए, मेरा परिचय नारकोटिक की अंधेरी दुनिया से हुआ. इस तरह 13 साल की उम्र में पहली बार मेरा वास्ता ड्रग्स से पड़ा.
अस्तित्व की खातिर ड्रग्स का सहारा!
बचपन में मैं काफी उत्पाती था. इंट्रोवर्ट भी था और अक्सर सामाजिक ताम-झाम से दूर रहता था. जब मेरा वास्ता ड्रग्स से पड़ा तो मुझे लगा इलाज मिल गया. ड्रग्स मेरी भावनाओं को दबा देगी. लेकिन खेल और संगीत की तरह इसने भी अस्थायी राहत ही दी. जैसे ही नशा उतरता, सब हवा हो जाता. मैं रात के समय ड्रग्स नहीं लेता था जैसे पार्टी में जाने वाले लोग लेते हैं. मैं दिन के समय लेता था ताकि सारा दिन सही से गुजार सकूं. मुझे यह अपने अस्तित्व के लिए चाहिए थी.
जो भी ड्रग मिली ले ली
मैं कॉलेज के फर्स्ट ईयर में था, तो सीनियर्स ने मुझे एसिड, कोकेन और एक्सटेसी ड्रग्स से रू-ब-रू कराया. पहले कभी-कभार ली जाने वाली ये गोलियां जल्द ही मेरी हर वक्त की हमसफर बन गईं. मैं यह नहीं कहूंगा कि ड्रग्स के इफेक्ट्स को लेकर मैं नया था. लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं था. जब नशा उतरता था तो इसके लक्षण बहुत ही बदतर होते थे. बिस्तर से उठना मुश्किल हो जाता था. हर सुबह उल्टी आने जैसा लगता था. शरीर दुखता था. ऐसे मौकों पर मैंने कभी अपनी मर्जी की ड्रग नहीं ली जो मिला वो ड्रग ले ली.
समय गुजरता गया लेकिन ड्रग्स वहीं ही रही
मैं बेवकूफ था मैंने प्यार को मुझे तबाह करने का मौका दिया, हर समय मैं यह सोचता रहता था कि मैं उस चीज को हासिल कर लूंगा जो मैंने बचपन से खोई हैं- लव और एक्सेप्टेंस (प्यार और स्वीकार्यता). लेकिन जैसे ही नशा उतरता, तो यह सबसे खराब फैसले के तौर पर सामने आता. ड्रग से मेरा नाता एक रात का नहीं था. ड्रग्स की अति हो रही थी. औरतें कुछ शर्तों के साथ आतीं और चली जातीं लेकिन ड्रग्स वहीं ही रही.
24 घंटे तक उलटी में लेटे रहे
मुझे लगता है ईश्वर मुझसे प्यार करता था. उसने मेरा साथ नहीं छोड़ा, उस समय भी जब दुनिया ने मेरा साथ छोड़ दिया. ड्रग की ओवरडोज से मैं बैठ जाता और मैं नोट्स बनाता कि किस तरह मैं दानव बन चुका हूं. मैं धार्मिक इनसान नहीं रहा लेकिन उस समय पहली बार आध्यात्मिकता से मेरा वास्ता पड़ा. मैंने देखा कि नशे के बाद मैं उलटी में लेटा रहता, और इस तरह 24 घंटे गुजर जाते. यह चमत्कार था कि मैं बच गया. जब कई मौके आए और मुझे लगा मैं नशे का गुलाम बनकर रह गया हूं तो मैंने प्रोफेशनल हेल्प लेने का फैसला किया. मेरे परिवार ने भी मुझे रिहैब के लिए कहा.
एक साल से ड्रग्स से दूर हैं
अपनी जिंदगी के इन अहम पहलुओं को साझा करने का मेरा उद्देश्य य़ह है कि इससे जुड़ी किसी भी गलत बात को नकार सकूं. मुझे लगता था कि यह कलंक सारी जिंदगी मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा. मैं हरेक एडिक्ट को यह बताना चाहूंगा कि सबके लिए मदद मौजूद है. मैं यह वादा नहीं करता कि यह आसान है, लेकिन यह उस जिंदगी से आसान है जो आपको सिर्फ तबाही की ओर लेकर जाती है. आज मुझे ड्रग्स से दूर हुए एक साल हो गया है. मेरी प्राथमिकताएं बदल गई हैं. मैं अपनी पूरी जिंदगी संयमित कैसे रह सकूंगा यह सोचना बहुत बड़ी बात है लेकिन मैं आज संयमित हूं यही मेरे लिए काफी है.
हाई स्कूल में आने से पहले ही लग गई थी लत
ड्रग्स के साथ मेरे संघर्ष की कहानी हाई स्कूल से पहले ही शुरू हो गई थी. खेल और संगीत ने कुछ रचनात्मक राहत दी. मेरे पहली असली ड्रग मेरा डिस्टर्ब बचपन था. मेरे दिमाग में आवाजें कौंधती थीं कि मैं कौन हूं और कहां से आया हूं. लेकिन ड्रग्स छलावे के तौर पर सामने आई, सिर्फ पल भर की राहत. साल गुजरते गए, मेरा परिचय नारकोटिक की अंधेरी दुनिया से हुआ. इस तरह 13 साल की उम्र में पहली बार मेरा वास्ता ड्रग्स से पड़ा.
दलाई लामा के साथ प्रतीक बब्बर
अस्तित्व की खातिर ड्रग्स का सहारा!
बचपन में मैं काफी उत्पाती था. इंट्रोवर्ट भी था और अक्सर सामाजिक ताम-झाम से दूर रहता था. जब मेरा वास्ता ड्रग्स से पड़ा तो मुझे लगा इलाज मिल गया. ड्रग्स मेरी भावनाओं को दबा देगी. लेकिन खेल और संगीत की तरह इसने भी अस्थायी राहत ही दी. जैसे ही नशा उतरता, सब हवा हो जाता. मैं रात के समय ड्रग्स नहीं लेता था जैसे पार्टी में जाने वाले लोग लेते हैं. मैं दिन के समय लेता था ताकि सारा दिन सही से गुजार सकूं. मुझे यह अपने अस्तित्व के लिए चाहिए थी.
जो भी ड्रग मिली ले ली
मैं कॉलेज के फर्स्ट ईयर में था, तो सीनियर्स ने मुझे एसिड, कोकेन और एक्सटेसी ड्रग्स से रू-ब-रू कराया. पहले कभी-कभार ली जाने वाली ये गोलियां जल्द ही मेरी हर वक्त की हमसफर बन गईं. मैं यह नहीं कहूंगा कि ड्रग्स के इफेक्ट्स को लेकर मैं नया था. लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं था. जब नशा उतरता था तो इसके लक्षण बहुत ही बदतर होते थे. बिस्तर से उठना मुश्किल हो जाता था. हर सुबह उल्टी आने जैसा लगता था. शरीर दुखता था. ऐसे मौकों पर मैंने कभी अपनी मर्जी की ड्रग नहीं ली जो मिला वो ड्रग ले ली.
समय गुजरता गया लेकिन ड्रग्स वहीं ही रही
मैं बेवकूफ था मैंने प्यार को मुझे तबाह करने का मौका दिया, हर समय मैं यह सोचता रहता था कि मैं उस चीज को हासिल कर लूंगा जो मैंने बचपन से खोई हैं- लव और एक्सेप्टेंस (प्यार और स्वीकार्यता). लेकिन जैसे ही नशा उतरता, तो यह सबसे खराब फैसले के तौर पर सामने आता. ड्रग से मेरा नाता एक रात का नहीं था. ड्रग्स की अति हो रही थी. औरतें कुछ शर्तों के साथ आतीं और चली जातीं लेकिन ड्रग्स वहीं ही रही.
24 घंटे तक उलटी में लेटे रहे
मुझे लगता है ईश्वर मुझसे प्यार करता था. उसने मेरा साथ नहीं छोड़ा, उस समय भी जब दुनिया ने मेरा साथ छोड़ दिया. ड्रग की ओवरडोज से मैं बैठ जाता और मैं नोट्स बनाता कि किस तरह मैं दानव बन चुका हूं. मैं धार्मिक इनसान नहीं रहा लेकिन उस समय पहली बार आध्यात्मिकता से मेरा वास्ता पड़ा. मैंने देखा कि नशे के बाद मैं उलटी में लेटा रहता, और इस तरह 24 घंटे गुजर जाते. यह चमत्कार था कि मैं बच गया. जब कई मौके आए और मुझे लगा मैं नशे का गुलाम बनकर रह गया हूं तो मैंने प्रोफेशनल हेल्प लेने का फैसला किया. मेरे परिवार ने भी मुझे रिहैब के लिए कहा.
एक साल से ड्रग्स से दूर हैं
अपनी जिंदगी के इन अहम पहलुओं को साझा करने का मेरा उद्देश्य य़ह है कि इससे जुड़ी किसी भी गलत बात को नकार सकूं. मुझे लगता था कि यह कलंक सारी जिंदगी मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा. मैं हरेक एडिक्ट को यह बताना चाहूंगा कि सबके लिए मदद मौजूद है. मैं यह वादा नहीं करता कि यह आसान है, लेकिन यह उस जिंदगी से आसान है जो आपको सिर्फ तबाही की ओर लेकर जाती है. आज मुझे ड्रग्स से दूर हुए एक साल हो गया है. मेरी प्राथमिकताएं बदल गई हैं. मैं अपनी पूरी जिंदगी संयमित कैसे रह सकूंगा यह सोचना बहुत बड़ी बात है लेकिन मैं आज संयमित हूं यही मेरे लिए काफी है.
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