आज ही रिलीज़ हुई फिल्म 'तमंचे' की कहानी है दो मुजरिमों की, जो पुलिस से भागते-भागते साथ हो जाते हैं... इनमें से एक है मुन्ना मिश्रा, जिसका रोल कर रहे हैं निखिल द्विवेदी और दूसरी है बाबू, जिसके किरदार में हैं ऋचा चड्ढा... मुन्ना चोर है और बाबू ड्रग सप्लायर... फिर मुन्ना और बाबू में प्यार हो जाता है, और शुरू हो जाती है पुलिस के साथ-साथ विलेन के सामने प्यार की आंख-मिचौली, क्योंकि बाबू का एक और आशिक है...
'तमंचे' को हल्की-फुल्की बनाने के लिए कुछ हंसाने वाले सीन और संवाद भी लिखे गए हैं, और फिल्म में कुछ अच्छे रोमांटिक सीन भी हैं... मुन्ना का भोलापन है, और उसकी भाषा उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद इलाके की है, जबकि बाबू की भाषा दिल्ली की है... ऋचा चड्ढा ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है... निखिल द्विवेदी का अभिनय तो ठीक है, मगर इलाहाबाद की भाषा के लहजे को वह ठीक-से पकड़ नहीं पाए... वैसे, फिल्म की कहानी और इसका स्क्रीनप्ले भी प्रभावशाली नहीं है...
'तमंचे' दो मुजरिमों की लवस्टोरी है, और दिखाया गया है कि प्यार कभी भी, किन्हीं भी हालात में हो सकता है... फिल्म का क्लाइमेक्स थोडा जज़्बाती कर सकता है, जहां दिखाया गया है कि अपने टूटते हुए सपने को थोड़ी देर के लिए ही सही, पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं मुन्ना और बाबू... कुल मिलाकर मेरी नज़र में 'तमंचे' एक एवरेज फिल्म है, और इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है - 2.5 स्टार...
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