यह ख़बर 03 मई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

एक्सपेरिमेंटल फिल्म बनकर रह गई 'बॉम्बे टॉकीज़'

खास बातें

  • 'बॉम्बे टॉकीज़' चार कहानियों से जड़ी एक फ़िल्म है, जिसे चार निर्देशकों ने डायरेक्ट किया है। चारों कहानियां एक्स्पेरिमेंटल हैं, जो आम आदमी की समझ से दूर हैं।
मुंबई:

'बॉम्बे टॉकीज़' चार कहानियों से जड़ी एक फ़िल्म है, जिसे चार निर्देशकों ने डायरेक्ट किया है। पहली कहानी है करण जौहर की, जो आधारित है समलैंगिकता पर। दूसरी कहानी है दिबाकर बनर्जी की, जो एक रंगमंच के कलाकार की कहानी है, जिसे काम की तलाश है।

तीसरी फिल्म है जोया अख़्तर की, जिसमें कहानी है एक बच्चे की, जिसे लड़कियों की तरह कपड़े पहनकर डांस करना अच्छा लगता है और वह बड़ा होकर कैटरीना कैफ की तरह डांसर बनना चाहता है। और चौथी कहानी है अनुराग कश्यप की, जिसमें अमिताभ बच्चन के फ़ैन के बारे में बताया गया है।

फ़िल्म की चारों कहानियां एक-दूसरे से अलग हैं, जिसे देखकर लगता है कि यह मल्टिप्लेक्स ऑडियेंस के लिए बनाई गई हैं। चारों कहानियां एक्स्पेरिमेंटल हैं, जो आम आदमी की समझ से दूर हैं। सभी निर्देशकों ने जमकर एक्स्पेरिमेंट किए हैं। हो सकता है कि अलग-अलग लोगों को इन में से अलग-अलग कहानियां पसंद आएं। फ़िल्म में कुछ जगहों पर हंसी आ सकती है, मगर फ़िल्म में एंटरटेनमेंट वैल्यू की बेहद कमी है।

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'बॉम्बे टॉकीज़' जब से बन रही थी, तभी से इसे बॉलीवुड के 100 साल का ट्रिब्यूट बताकर प्रमोट किया जाता रहा, लेकिन असल ट्रिब्यूट सिर्फ एक गाने में है, जो फ़िल्म के ख़त्म होने के बाद आता है। यह गाना बॉलीवुड पर आधारित है और इस गाने में कई सितारों ने अपनी झलक दिखाई है। फ़िल्मकारों की शायद असल कोशिश यह बताने कि है कि बॉलीवुड के 100 साल पूरा होने तक हम इतने बदल गए हैं और इतने एक्स्पेरिमेंटल हो गए हैं कि हमारा एक्स्पेरिमेंट आम दर्शकों की समझ से दूर है, इसलिए 'बॉम्बे टॉकीज़' के लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार...