इस हफ्ते की एक फिल्म है, जो भोपाल गैस त्रासदी दर्शाती है और इसका नाम है 'भोपाल: ए प्रेयर फॉर रेन', जिसे डायरेक्ट किया है रवि कुमार ने और लिखा है डेविड ब्रुक्स और रवि कुमार ने ही। फिल्म में मुख्य भूमिकाएं हैं, राजपाल यादव, तनिष्ठा चटर्जी, मार्टिन शीन, कल पेन, मिशा बार्टन, जॉय सेन गुप्ता और डेविड ब्रुक्स की।
यह फिल्म 1984 की भोपाल गैस त्रासदी की घटना और उसके कारण दर्शाती है। डायरेक्टर रवि कुमार विषय के प्रति एकदम ईमानदार रहे हैं और इस त्रासदी के पीछे की सभी कड़ियों को उन्होंने सिलसिले तरीके से जोड़ा है और सभी एक्टर्स का काम भी अपनी जगह पर ठीक है, पर कल पेन, जॉय सेन गुप्ता और राजपाल यादव अपने-अपने किरदार में बखूबी उभर आते हैं, पर मुझे लगता है कि डायरेक्टर ने रिसर्च तो अच्छे से की है, पर वह इस बात पर निर्णय नहीं ले पाए कि फिल्म को डॉक्यूमेंट्री की श्रेणी में रखना है या फिल्म की, जिसके चलते फर्स्ट हाफ काफी टेक्नीकल और एक वृतचित्र की तरह लगता है और इंटरवेल के बाद इसमें फिल्म की झलक नजर आती है।
त्रासदी के बाद के सीन काफी दमदार हैं, जहां अस्पताल की मजबूरी, गैस का रिसाव, लाशों के ढेर आपको झकझोर जाते हैं, लेकिन फिल्म का स्क्रीन प्ले और एडिटिंग झटका देती है।
मध्यांतर से पहले फिल्म की सिनेमेटोग्राफी को ज्यादातर ट्राईपोड से दूर रखा गया है। हो सकता है कि बस्तियों की अस्थिर जिंदगी को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए डायरेक्टर रवि कुमार ने यह निर्णय लिया हो, पर फिल्म के विषय के साथ यह अंदाज सुर नहीं मिलाता और दर्शक का ध्यान भटकाता है।
मिशा बार्टन का किरदार मेरे हिसाब से व्यर्थ जाता है। एक और बात यह फिल्म ज्यादातर अंग्रेजी में है, तो बेहतर होता अगर फिल्मकार इसमें सबटाइटल रखते ताकि दर्शकों तक इसकी पहुंच बढ़ने में आसानी होती।
अगर आप इस त्रासदी की तह तक पहुंचना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है लेकिन मनोरंजन की उम्मीद लेकर मत जाइएगा। हां, यह फिल्म कुछ हिस्सों में आपके दिल को जरूर छू जाएगी। इस फिल्म को मैं रेटिंग नहीं देना चाहूंगा, क्योंकि भोपाल गैस त्रासदी हिन्दुस्तान के इतिहास में एक बड़ा हादसा था और इसे रेटिंग की तराजू में तोलना ठीक नहीं। जाइए फिल्म देखिए, आप कुछ न कुछ इस फिल्म से जरूर लेकर आएंगे।
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