यह ख़बर 13 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

अभिनेता प्राण का हुआ अंतिम संस्कार, बॉलीवुड ने दी आखिरी सलामी

खास बातें

  • प्राण का शनिवार को उनके परिवार और हिन्दी सिनेमा जगत की हस्तियों की मौजूदगी में शिवाजी पार्क स्थित विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मुंबई:

प्रख्यात अभिनेता प्राण का शनिवार को उनके परिवार और हिन्दी सिनेमा जगत की कुछ हस्तियों की मौजूदगी में शिवाजी पार्क स्थित विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार कर दिया गया।

भारी बारिश व ट्रैफिक के बीच शनिवार सुबह उनका शव दादर पश्चिम स्थित शवदाह गृह ले जाया गया। अंतिम संस्कार स्थल पर भारी सुरक्षा-व्यवस्था थी। दोपहर 12.30 बजे सम्पन्न हुए अंतिम संस्कार में हिंदी फिल्मोद्योग की कुछ चुनिंदा हस्तियां मौजूद थीं। प्राण की अंतिम यात्रा में शामिल होने वाली हस्तियों में अमिताभ बच्चन, गुलजार, करण जौहर, शक्ति कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा, अनुपम खेर, डैनी डेनजोंगपा, राज बब्बर और सलीम खान शामिल थे। सुबह फूलों से सजी एम्बुलेंस प्राण के पार्थिव शरीर को लेकर उपनगर बांद्रा में स्थित निजी अस्पताल से शिवाजी पार्क के लिए रवाना हुई।

प्राण का शुक्रवार रात नौ बजे के करीब 93-वर्षीय प्राण ने अंतिम सांस ली। हिन्दी सिनेमा में खलनायक और चरित्र अभिनेता के रूप में यादगार भूमिकाएं निभाने वाले प्राण को इसी वर्ष अप्रैल में हिन्दी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया था। वह पिछले एक महीने से लीलावती अस्पताल में भर्ती थे। उनकी पु़त्री पिंकी ने बताया, वह स्वस्थ नहीं रह रहे थे, बहुत कमजोर हो गए थे। उनका स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था।

प्राण ने 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। 'कश्मीर की कली', 'खानदान', 'औरत', 'बड़ी बहन', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'हाफ टिकट', 'उपकार', 'पूरब और पश्चिम' और 'डॉन' जैसी फिल्मों में प्राण ने अपनी भूमिका से लोगों के मन पर एक अमिट छाप छोड़ी। 12 फरवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली में जन्मे प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर आदि जगहों पर हुई।

प्राण के पिता लाला केवल कृष्णन सिकंद सरकार नौकरी में थे। शुरुआती दिनों में प्राण फोटोग्राफर बनना चाहते थे, लेकिन भाग्य ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था। एक फिल्म निर्माता के साथ अचानक हुई मुलाकात के बाद उन्हें वर्ष 1940 में पहली फिल्म 'यमला जट' में ब्रेक मिला। वहां से प्राण ने बतौर अभिनेता कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसके बाद उन्होंने 'चौधरी' (1941), 'खानदान' (1942), 'कैसे कहूं' (1945) और 'बदनामी' (1946) आदि फिल्मों में काम किया।

विभाजन के बाद प्राण अपनी पत्नी शुक्ला, पुत्रों अरविन्द और सुनील के साथ मुंबई वापस आ गए, लेकिन उनके लिए यह समय आसान नहीं रहा। उन्हें काम पाने में तमाम मुश्किलें आईं। प्राण ने तो आशा ही छोड़ दी थी, तभी सादत हसन मंटो ने देव आनंद स्टारर 'जिद्दी' (1948) में उन्हें एक रोल दिया, जो उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट सिद्ध हुआ।

वर्ष 1969 से 1982 तक प्राण हिन्दी सिनेमा में लगभग हर अभिनेता के खिलाफ खलनायक की भूमिका में रहे। 'मधुमति', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'राम और श्याम' और 'देवदास' जैसी फिल्मों के लिए प्राण को अभिनेताओं के बराबर धन और सम्मान मिला।

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विलेन की भूमिका निभाते-निभाते एक ऐसा वक्त आया, जब लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना छोड़ दिया। लोग उनके नाम से नफरत करने लगे। उसी दौरान 'उपकार' फिल्म में भूमिका निभाकर प्राण हर दिल अजीज बन गए। उनकी इस भूमिका ने लोगों की आंखों में आंसू ला दिए और वे रातों-रात विलेन से चरित्र अभिनेता बन गए। इसके बाद प्राण 'जंजीर' में अमिताभ बच्चन के साथ शेर खान और गुलजार की फिल्म 'परिचय' में एक अनुशासन प्रिय लेकिन नरमदिल वाले दादा की भूमिका में नजर आए।