मुंबई:
फिल्म आई एम में चार कहानियां हैं। पहली आफिया की जिसका बेवफा पति से तलाक हुआ है। मर्दों से भरोसा उठा। अब आफिया को बच्चा चाहिए लेकिन कन्वेन्शनल नहीं बल्कि आर्टिफिशल इनसेमिनेशन से। आफिया उलझन में है क्योंकि वह नियम के खिलाफ स्पर्म डोनर से मिलना चाहती है ताकि बच्चे के रंग-रूप का अंदाज़ ले सके। दूसरी कहानी मेघा उर्फ जूही चावला की। दिल्ली में सेटल ये कश्मीरी पंडित लड़की, बरसों बाद कश्मीर लौटती है अपनी प्रॉपर्टी बेचने के लिए मगर कश्मीर के दिए ज़ख्म हरे हो जाते हैं। कड़वाहट का असर मेघा और उसकी मुस्लिम सहेली रूबीना के रिश्तों पर भी पड़ा है। तीसरी कहानी है अभिमन्यु संजय सूरी की जो बचपन में सौतेले पिता के यौन शोषण का शिकार होता है लेकिन बड़े होने पर वो इस शोषण का फायदा अपने पिता को ब्लैकमेल करके उठाने लगता है। चौथी कहानी ओमार और जय की है जब समलैंगिगता अपराध थी। एक ही मुलाकात में जय और ओमार के इतने करीब आ जाते हैं कि पुलिस जय को ब्लैकमेल कर लेती है। सारी कहानियों के सब्जेक्ट बेहद बोल्ड हैं जिन्हें डायरेक्टर ओनिर ने बड़ी गंभीरता से फिल्माया है। नंदिता दास के चेहरे पर बेवफाई का दर्द जूही के दिल में कश्मीर के लिए तल्खी। मन मसोसकर कश्मीर में रहती मनीषा दोस्ती से भरोसा खाकर तिलमिलाते राहुल बोस। क्या शानदार परफॉरमेंस हैं इस फिल्म में। अखरने वाली बात है जय और ओमार की कहानी में पुलिस अफसर की गालियां। मेरे लिए ये गालियां सुनना दुश्वार हो गया। आईएम…इंटरटेनमेंट की फिल्म नहीं बल्कि ये सोचने पर मजबूर करती है। आई एम के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार।
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आईएम, समीक्षा