राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता अडूर गोपालकृष्णन ने आरोप लगाया कि फिल्मकारों के प्रति सरकार का रवैया 'विनाशकारी है, सहयोगी नहीं है'.
मुंबई:
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता अडूर गोपालकृष्णन ने आरोप लगाया कि फिल्मकारों के प्रति केंद्र सरकार का रवैया 'विनाशकारी है, सहयोगी नहीं है'. गोपालकृष्णन ने कहा, 'फिल्मकारों के प्रति सरकार का रवैया विनाशकारी है और सहयोगात्मक नहीं है. मैंने उन केंद्र सरकारी अधिकारियों के चेहरे पर आनंद देखा है जो जानते हैं कि वे हमारे रचनात्मक कार्यों को बर्बाद कर रहे हैं.' केरल मूल के फिल्मकार यहां नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) में आयोजित 'गेटवे लिटफेस्ट' में 'बॉलीवुड इज नॉट इंडियन सिनेमा' विषय पर बोल रहे थे.
उन्होंने कहा, 'क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी में 'दूरदर्शन' पर विभिन्न भाषाओं की फिल्म दिखाने की परंपरा थी. मैंने इसका नाम बदलने का प्रयास किया लेकिन सरकार इसके प्रति अत्यंत अनिच्छुक रही. अंतत: यह परंपरा ही बंद हो गयी.'
सेंसरशिप की भी आलोचना कर चुके हैं गोपालकृष्णन
अडूर गोपालकृष्णन ने फिल्मों में सेंसरशिप के विचार की आलोचना की है. उन्हें लगता है कि लोकतंत्र में सेंसरशिप की बात बेतुकी है और केवल तानाशाही में इस तरह के नियम चल सकते हैं. गोपालकृष्णन ने कहा, 'मैं किसी तरह की सेंसरशिप में भरोसा नहीं करता. मैं नहीं चाहता कि यह बताया जाए कि क्या करना है और क्या नहीं करना है. लोकतंत्र में यह बहुत मूर्खतापूर्ण है. तानाशाही में ही किसी तरह की सेंसरशिप होती है.'
गोपालकृष्णन ने कहा, आप किस पर सेंसरशिप लगा रहे हैं? एक विचार पर. लेकिन लोकतंत्र विभिन्न विचारों पर काम करता है. उनके मुताबिक वह एक समय एक फिल्म अध्ययन समूह का हिस्सा थे, जिसमें श्याम बेनेगल और रमेश सिप्पी जैसे निर्देशक शामिल थे, जहां उन्होंने सेंसरशिप के मुद्दे पर चर्चा की.
उन्होंने कहा कि समिति में अधिकतर सदस्यों ने फैसला किया कि हमें इस विचार को खत्म कर देना चाहिए. फिर सिप्पी साहब ने कहा कि कृपया ऐसा मत कीजिए.
इनपुट: भाषा
उन्होंने कहा, 'क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी में 'दूरदर्शन' पर विभिन्न भाषाओं की फिल्म दिखाने की परंपरा थी. मैंने इसका नाम बदलने का प्रयास किया लेकिन सरकार इसके प्रति अत्यंत अनिच्छुक रही. अंतत: यह परंपरा ही बंद हो गयी.'
सेंसरशिप की भी आलोचना कर चुके हैं गोपालकृष्णन
अडूर गोपालकृष्णन ने फिल्मों में सेंसरशिप के विचार की आलोचना की है. उन्हें लगता है कि लोकतंत्र में सेंसरशिप की बात बेतुकी है और केवल तानाशाही में इस तरह के नियम चल सकते हैं. गोपालकृष्णन ने कहा, 'मैं किसी तरह की सेंसरशिप में भरोसा नहीं करता. मैं नहीं चाहता कि यह बताया जाए कि क्या करना है और क्या नहीं करना है. लोकतंत्र में यह बहुत मूर्खतापूर्ण है. तानाशाही में ही किसी तरह की सेंसरशिप होती है.'
गोपालकृष्णन ने कहा, आप किस पर सेंसरशिप लगा रहे हैं? एक विचार पर. लेकिन लोकतंत्र विभिन्न विचारों पर काम करता है. उनके मुताबिक वह एक समय एक फिल्म अध्ययन समूह का हिस्सा थे, जिसमें श्याम बेनेगल और रमेश सिप्पी जैसे निर्देशक शामिल थे, जहां उन्होंने सेंसरशिप के मुद्दे पर चर्चा की.
उन्होंने कहा कि समिति में अधिकतर सदस्यों ने फैसला किया कि हमें इस विचार को खत्म कर देना चाहिए. फिर सिप्पी साहब ने कहा कि कृपया ऐसा मत कीजिए.
इनपुट: भाषा
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