ट्रैप्ड के एक दृश्य में राजकुमार राव.
मुंबई:
इस सप्ताह रिलीज हुई है विक्रमादित्य मोटवाने के निर्देशन में बनी ट्रैप्ड. राजकुमार राव और गीतांजलि थापा अभिनीत इस फिल्म को फैन्टम फिल्म्स ने प्रोड्यूस किया है. यह एक आम फिल्म नहीं है, यह लीक से हटकर है जिसमें नाच-गाना और हिंदी सिनेमा के चर्चित फॉर्मुले नहीं है. यह फिल्म जिंदा रहने की जंग की कहानी कहती है. फिल्म में राजकुमार राव अपनी गर्लफ्रेंड से जल्द से जल्द शादी करना चाहते हैं. वह अपने दोस्तों के साथ रहते हैं, शादी के बाद उन्हें रहने के लिए एक घर चाहिए होता है जल्द से जल्द और कम पैसों में. इसी जल्दबाजी में वह एक ऐसी बिल्डिंग में घर ले लेते हैं जिसमें कोई नहीं रहता और जहां आम सुविधाओं का भी अभाव है. कुछ ऐसा होता है कि राजकुमार का किरदार बिल्डिंग के 34वें माले के एक घर में फंस जाता है, वह कई दिनों तक वहां से बाहर निकलने की जद्दोजहद करता है, वहां से निकलने के लिए वह क्या तरकीबें लड़ाता है, उस दौरान उस पर क्या बीतती है और आखिर में जिंदगी की इस जंग में कौन जीतता है, यही कहानी है ट्रैप्ड की.
सबसे पहले बात करते हैं फिल्म की बुराइयों की जो कि न के बराबर हैं. इस तरह की फिल्मों में जहां फिल्म एक ही कलाकार के कंधों पर टिकी होती है वहां राइटर, डायरेक्टर और एक्टर को बड़ी सतर्कता से काम करना पड़ता है क्योंकि दर्शकों की रुचि बनाए रखने के लिए कहानी, निर्देशन और अभिनय का ग्राफ खूबसूरती से डिजाइन किया जाना आवश्यक होता है. नहीं तो दर्शक बोर हो सकता है क्योंकि इन तीनों के अलावा दर्शकों को बांध कर रखने के लिए और किसी चीज का सहारा नहीं होता है. मुझे यहीं निर्देशक और लेखक की बहुत बड़ी चूक लगी. कमरे में बंद होने के दूसरे दिन की गतिविधियों में पहले दिन के मुकाबले थोड़ी और तीव्रता लाने की जरूरत थी, पहले और दूसरे दिन की गतिविधियों में ज्यादा अंतर नजर नहीं आता. इसके अलावा यहां एक आग वाला दृश्य है, मुझे लगा कि इसे क्लाइमेक्स के आसपास होना चाहिए था. कुछ दर्शकों को यह फिल्म थोड़ी भारी लग सकती है और कई दृश्य आपका जी मिचला सकते हैं हालांकि मेरे नजरिए से यह फिल्म की खामी नहीं है.
अब बात फिल्म की खूबियों की तो फिल्म के विषय, स्क्रीनप्ले, निर्देशन और अभिनय की तारीफ करना आवश्यक है. फिल्मांकन और राजकुमार की एक्टिंग ऐसी है कि फिल्म देखते वक्त आप भी खुद को उस कमरे में बंद महसूस करने लगते हैं. आप इस किरदार के साथ सांसों की कदमताल करते हैं, परदे पर दिख रहे इस किरदार को आप पूरी तरह से महसूस करते हैं. खास बात यह है कि लॉजिक फिल्म का साथ कभी नहीं छोड़ते और तीनों ग्राफ यानी कहानी, निर्देशन और अभिनय खूबसूरती से आपको फिल्म से बांधकर रखते हैं. फिल्म का कैमरावर्क और बैकग्राउंड म्यूजिक इसे अधिक दमदार बनाते हैं. राजकुमार राव ने एक बार फिर अपने अभिनय का लोहा मनवाया है वहीं मोटवाने ने अपने निर्देशन का. फिल्म के किरदार बेहद अच्छे से गढ़े गए हैं, मसलन सिक्योरिटी गार्ड का किरदार या फिर राजकुमार के पहले कमरे में रहने वाले उनके दोस्तों का किरदार जो बिना बोले प्रभावशाली लगते हैं. तो अगर कुछ अलग हटकर देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है. मेरी तरफ से इस फिल्म को 4 स्टार्स.
सबसे पहले बात करते हैं फिल्म की बुराइयों की जो कि न के बराबर हैं. इस तरह की फिल्मों में जहां फिल्म एक ही कलाकार के कंधों पर टिकी होती है वहां राइटर, डायरेक्टर और एक्टर को बड़ी सतर्कता से काम करना पड़ता है क्योंकि दर्शकों की रुचि बनाए रखने के लिए कहानी, निर्देशन और अभिनय का ग्राफ खूबसूरती से डिजाइन किया जाना आवश्यक होता है. नहीं तो दर्शक बोर हो सकता है क्योंकि इन तीनों के अलावा दर्शकों को बांध कर रखने के लिए और किसी चीज का सहारा नहीं होता है. मुझे यहीं निर्देशक और लेखक की बहुत बड़ी चूक लगी. कमरे में बंद होने के दूसरे दिन की गतिविधियों में पहले दिन के मुकाबले थोड़ी और तीव्रता लाने की जरूरत थी, पहले और दूसरे दिन की गतिविधियों में ज्यादा अंतर नजर नहीं आता. इसके अलावा यहां एक आग वाला दृश्य है, मुझे लगा कि इसे क्लाइमेक्स के आसपास होना चाहिए था. कुछ दर्शकों को यह फिल्म थोड़ी भारी लग सकती है और कई दृश्य आपका जी मिचला सकते हैं हालांकि मेरे नजरिए से यह फिल्म की खामी नहीं है.
अब बात फिल्म की खूबियों की तो फिल्म के विषय, स्क्रीनप्ले, निर्देशन और अभिनय की तारीफ करना आवश्यक है. फिल्मांकन और राजकुमार की एक्टिंग ऐसी है कि फिल्म देखते वक्त आप भी खुद को उस कमरे में बंद महसूस करने लगते हैं. आप इस किरदार के साथ सांसों की कदमताल करते हैं, परदे पर दिख रहे इस किरदार को आप पूरी तरह से महसूस करते हैं. खास बात यह है कि लॉजिक फिल्म का साथ कभी नहीं छोड़ते और तीनों ग्राफ यानी कहानी, निर्देशन और अभिनय खूबसूरती से आपको फिल्म से बांधकर रखते हैं. फिल्म का कैमरावर्क और बैकग्राउंड म्यूजिक इसे अधिक दमदार बनाते हैं. राजकुमार राव ने एक बार फिर अपने अभिनय का लोहा मनवाया है वहीं मोटवाने ने अपने निर्देशन का. फिल्म के किरदार बेहद अच्छे से गढ़े गए हैं, मसलन सिक्योरिटी गार्ड का किरदार या फिर राजकुमार के पहले कमरे में रहने वाले उनके दोस्तों का किरदार जो बिना बोले प्रभावशाली लगते हैं. तो अगर कुछ अलग हटकर देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है. मेरी तरफ से इस फिल्म को 4 स्टार्स.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं