यह ख़बर 28 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

फिल्म समीक्षा : मनोरंजक है 'शादी के साइड इफेक्ट्स'...

मुंबई:

फिल्म 'शादी के साइड इफेक्ट्स' की कहानी शुरू होती है, एक पब में चल रही पार्टी से, जहां पति का रोल कर रहे फ़रहान अख़्तर मिलते हैं उनकी पत्नी का किरदार निभा रहीं विद्या बालन से... दोनों इस वक्त तक पर्दे पर अजनबी नज़र आते हैं और एक दूसरे से फ्लर्ट करते हैं... फिर इनका रोमांस शुरू होता दिखता है लिफ्ट से और पहुंचता है होटल के कमरे तक, और तभी पता चलता है कि ये दोनों अजनबी नहीं, बल्कि पति-पत्नी ही हैं, और ऐसा ये दोनों इसलिए करते हैं, ताकि इनकी शादीशुदा ज़िन्दगी उत्साह से भरी रहे... कुछ वक्त बाद इनके बीच आती हैं इनकी बेटी और यहां से कहानी में आते हैं टि्वस्ट्स एंड टर्न्स...

इसके बाद फ़रहान कभी खुद को सबसे अच्छे पिता साबित करने में लगे दिखाई देते हैं, और कभी सबसे अच्छा पति... फिल्म का फर्स्ट हाफ बहुत अच्छा है, जहां इनकी कैमिस्ट्री बहुत अच्छी दिखी है... पहले भाग में खूब हंसी-मज़ाक भी है... पत्नी को खुश करने के कई तरीके दिखाए जाते हैं... विद्या बालन और फ़रहान का अभिनय अच्छा है।

डायरेक्टर साकेत चौधरी का कहानी कहने का तरीका भी अच्छा है, मगर इंटरवल के बाद फिल्म का मज़ा खत्म हो जाता है... कहानी में फरहान अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी को और खुशहाल बनाने के लिए राम कपूर से, जो फ़रहान की साली के पति के किरदार में हैं, सलाह लेने लगते हैं और नुस्खा फ़रहान पर उल्टा पड़ने लगता है...

इंटरवल के बाद फिल्म लंबी लगने लगती है और ऐसा लगने लगता है कि कहानी को बढ़ाने के लिए कुछ सीन्स ज़बरदस्ती डाले गए हैं... लेकिन फिर भी फिल्म को एक बार देखा जा सकता है, क्योंकि हर शादीशुदा आदमी इस कहानी से खुद को जोड़ सकता है...

कहानी में एक ऐसी हकीकत दिखाई गई है, जो आम ज़िन्दगी में आम लोग करते हैं... मसलन, घर में शांति बनाए रखने के लिए पत्नी से पति के बोले गए छोटे−मोटे झूठ... हल्के−फुल्के अंदाज़ में इस फिल्म ने यह बताया है कि शादी को बचाने के लिए अच्छी नीयत, एक-दूसरे से सच कहने की हिम्मत, और माफी मांगने या देने का माद्दा होना चाहिए...

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अगर फिल्म का सेकंड हाफ भी पहले भाग की तरह फलसफे से भरा न होकर मज़े से भरा होता तो फिल्म और भी अच्छी होती... बहरहाल, इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है - 3 स्टार...