मुंबई:
फिल्मी फ्राइडे पर रिलीज़ हुआ है एक सीक्वेल 'रॉक ऑन 2', जिसमें संगीत के तार छेड़ते नज़र आएंगे फरहान अख्तर, श्रद्धा कपूर, अर्जुन रामपाल, पूरब कोहली, प्राची देसाई, शहाना गोस्वामी, कुमुद मिश्रा और शशांक अरोड़ा... कहानी मैजिक बैंड के तीन सदस्यों की है, जो अपनी-अपनी ज़िन्दगियों में आगे बढ़ चुके हैं, लेकिन संगीत कहीं पीछे छूट गया है...
फरहान अख्तर का किरदार 'आदि' मेघालय जाकर बस चुका है, क्योंकि वह खुद को एक दर्दनाक हादसे का ज़िम्मेदार मानता है, और संगीत से दूर रहकर खुद को सज़ा दे रहा है... वैसे, वह मेघालय के उस गांव में किसानों और वहां के बच्चों और अन्य लोगों की ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन चुका है... उधर, बैंड के बाकी सदस्य चाहते हैं कि 'आदि' वापस आए और संगीत की दुनिया से फिर नाता जोड़ ले...
इसके बाद कुछ ऐसा हो जाता है कि आदि को वापस शहर आना पड़ता है और संगीत के सुरों से भी फिर रिश्ता जोड़ना पड़ता है... ऐसा क्या होता है, जो मैजिक बैंड को वापस जोड़ता है, और किस बात के पश्चाताप में तप रहा है 'आदि', यह सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी, और अब मैं सीधे चलता हूं फिल्म की खामियों और खूबियों की तरफ...
'रॉक ऑन 2' की सबसे बड़ी कमज़ोरी उसकी स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले हैं, जो एक अच्छी बन सकने वाली कहानी को भटका देते हैं और जिसके चक्कर में फिल्म गति खो देती है... फिल्म कई जगह दिशाहीन भी हो जाती है... यह बिल्कुल उस सब्ज़ी जैसी है, जिसे बनाने के लिए सारी ज़रूरी चीज़ें हैं, लेकिन किसे, कब, कितना, कहां और कैसे डालना चाहिए, वह अहम होता है, क्योंकि सब्ज़ी का स्वाद उसी पर निर्भर करता है...
स्क्रिप्ट में यह ध्यान देना बहुत ज़रूरी था की फिल्म में दिख रही घटनाएं और उनकी लंबाई कहीं कहानी को उसके लक्ष्य से भटका तो नहीं रही हैं या कोई दृश्य दर्शकों के भावनात्मक सफर में बाधा तो नहीं बन रहा है... और यहीं निर्देशक शुजात सौदागर और लेखक पुबाली चौधरी से चूक हो गई, जिसकी वजह से फिल्म लंबी लगती है और आप अंत तक खोजते रहते हैं कि फिल्म हमसे क्या कहने की कोशिश कर रही है...
ये थी फिल्म की खामियां, और अब बात करते हैं 'रॉक ऑन 2' की खूबियों की...
जैसा मैंने कहा, फिल्म की कहानी का आइडिया मुझे अच्छा लगा, और साथ ही संगीत की दुनिया को लेकर किस तरह की सोच आज के युवाओं में है या उस पीढ़ी में है, जो हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर पली-बढ़ी है... हमारे ज़माने का संगीत, तुम्हारे ज़माने का संगीत या फिर मीठा और ठहराव वाला संगीत और शोर वाला संगीत... अक्सर ये तुलनाऐं हम सुनते आए हैं, और इन ख्यालों में हमेशा जंग रही है, जिसे पर्दे पर बड़ी खूबसरती से उतारा गया है और यह 'क्लीशे' नहीं लगता... संगीत की दुनिया के बाज़ार पर भी फिल्म में बेहतरीन तंज है और फिल्म कई जगह आपके दिल को छूती भी है...
अगर मैं गानों की बात करूं, तो ये 'रॉक ऑन' की तरह हिट नहीं हो पाए, लेकिन इतना ज़रूर है कि इसके गाने भले ही पहली बार सुनने में बहुत अच्छे नहीं लगते, लेकिन धीरे-धीरे आपको गिरफ्त में ले ही लेते हैं... अभिनय की बात करें तो फरहान अख्तर का काम मुझे काफी अच्छा लगा और साथ ही अर्जुन रामपाल और पूरब कोहली ने भी उनका साथ अच्छे से दिया है... काम श्रद्धा कपूर का भी अच्छा है, लेकिन उस एक सीन में वह लड़खड़ा गईं, जब वह कॉन्सर्ट के दौरान अपने पिता से बात करती हैं... कुल मिलाकर संगीत से जुड़े लोग इस फिल्म से जुड़ाव महसूस कर सकते हैं... मुझे फिल्म ठीक लगी, और इसलिए मेरी तरफ से 'रॉक ऑन 2' की रेटिंग है - 2.5 स्टार...
फरहान अख्तर का किरदार 'आदि' मेघालय जाकर बस चुका है, क्योंकि वह खुद को एक दर्दनाक हादसे का ज़िम्मेदार मानता है, और संगीत से दूर रहकर खुद को सज़ा दे रहा है... वैसे, वह मेघालय के उस गांव में किसानों और वहां के बच्चों और अन्य लोगों की ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन चुका है... उधर, बैंड के बाकी सदस्य चाहते हैं कि 'आदि' वापस आए और संगीत की दुनिया से फिर नाता जोड़ ले...
इसके बाद कुछ ऐसा हो जाता है कि आदि को वापस शहर आना पड़ता है और संगीत के सुरों से भी फिर रिश्ता जोड़ना पड़ता है... ऐसा क्या होता है, जो मैजिक बैंड को वापस जोड़ता है, और किस बात के पश्चाताप में तप रहा है 'आदि', यह सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी, और अब मैं सीधे चलता हूं फिल्म की खामियों और खूबियों की तरफ...
'रॉक ऑन 2' की सबसे बड़ी कमज़ोरी उसकी स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले हैं, जो एक अच्छी बन सकने वाली कहानी को भटका देते हैं और जिसके चक्कर में फिल्म गति खो देती है... फिल्म कई जगह दिशाहीन भी हो जाती है... यह बिल्कुल उस सब्ज़ी जैसी है, जिसे बनाने के लिए सारी ज़रूरी चीज़ें हैं, लेकिन किसे, कब, कितना, कहां और कैसे डालना चाहिए, वह अहम होता है, क्योंकि सब्ज़ी का स्वाद उसी पर निर्भर करता है...
स्क्रिप्ट में यह ध्यान देना बहुत ज़रूरी था की फिल्म में दिख रही घटनाएं और उनकी लंबाई कहीं कहानी को उसके लक्ष्य से भटका तो नहीं रही हैं या कोई दृश्य दर्शकों के भावनात्मक सफर में बाधा तो नहीं बन रहा है... और यहीं निर्देशक शुजात सौदागर और लेखक पुबाली चौधरी से चूक हो गई, जिसकी वजह से फिल्म लंबी लगती है और आप अंत तक खोजते रहते हैं कि फिल्म हमसे क्या कहने की कोशिश कर रही है...
ये थी फिल्म की खामियां, और अब बात करते हैं 'रॉक ऑन 2' की खूबियों की...
जैसा मैंने कहा, फिल्म की कहानी का आइडिया मुझे अच्छा लगा, और साथ ही संगीत की दुनिया को लेकर किस तरह की सोच आज के युवाओं में है या उस पीढ़ी में है, जो हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर पली-बढ़ी है... हमारे ज़माने का संगीत, तुम्हारे ज़माने का संगीत या फिर मीठा और ठहराव वाला संगीत और शोर वाला संगीत... अक्सर ये तुलनाऐं हम सुनते आए हैं, और इन ख्यालों में हमेशा जंग रही है, जिसे पर्दे पर बड़ी खूबसरती से उतारा गया है और यह 'क्लीशे' नहीं लगता... संगीत की दुनिया के बाज़ार पर भी फिल्म में बेहतरीन तंज है और फिल्म कई जगह आपके दिल को छूती भी है...
अगर मैं गानों की बात करूं, तो ये 'रॉक ऑन' की तरह हिट नहीं हो पाए, लेकिन इतना ज़रूर है कि इसके गाने भले ही पहली बार सुनने में बहुत अच्छे नहीं लगते, लेकिन धीरे-धीरे आपको गिरफ्त में ले ही लेते हैं... अभिनय की बात करें तो फरहान अख्तर का काम मुझे काफी अच्छा लगा और साथ ही अर्जुन रामपाल और पूरब कोहली ने भी उनका साथ अच्छे से दिया है... काम श्रद्धा कपूर का भी अच्छा है, लेकिन उस एक सीन में वह लड़खड़ा गईं, जब वह कॉन्सर्ट के दौरान अपने पिता से बात करती हैं... कुल मिलाकर संगीत से जुड़े लोग इस फिल्म से जुड़ाव महसूस कर सकते हैं... मुझे फिल्म ठीक लगी, और इसलिए मेरी तरफ से 'रॉक ऑन 2' की रेटिंग है - 2.5 स्टार...
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